रीवाः भारतीय थल सेनाध्यक्ष उपेंद्र द्विवेदी ने मध्य प्रदेश के अपने गृहनगर रीवा में छात्रों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने भविष्य के खतरों की अप्रत्याशितता की बात की। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी नहीं पता कि कल क्या हो सकता है?
छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “आगे क्या है, भविष्य क्या है और यह क्या चुनौतियाँ लाएगा – हिंदी में हम अक्सर इसे अस्थिरता, अनिश्चितता, जटिलता और अस्पष्टता के रूप में वर्णित करते हैं। ये चार तत्व संक्षेप में बताते हैं कि हम क्या उम्मीद कर सकते हैं। चार कुछ ऐसी चीज हैं अगर आपको सरल शब्दों में बोलूं तो आगे आने वाले दिन कैसे होंगे ये ना आपको पता है ना मुझे। कल क्या होने वाला है, ये भी किसी को नहीं पता। ट्रम्प जी आज क्या कर रहे हैं, मेरे ख्याल से ट्रम्प जी को भी नहीं पता होगा कल क्या करने जा रहे हैं। जनरल द्विवेदी ने रीवा के टीआरएस कॉलेज में कहा, “मुझे नहीं पता कि वह कल क्या करने वाले हैं।”
थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने क्या कहा?
उन्होंने कहा कि सैन्य बल भी इन्हीं चुनौतियों का सामना करते हैं। चाहे वह सीमाओं पर हो, आतंकवाद, प्राकृतिक आपदाओं, साइबर युद्ध के माध्यम से हो या उपग्रहों से जुड़े अंतरिक्ष युद्ध और रासायनिक, जैविक और रेडियोलॉजिकल खतरों जैसे नए मोर्चे हों।
उन्होंने आगे कहा “फिर सूचना युद्ध है…उदाहरण के लिए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ऐसी अफवाहें फैलीं कि कराची पर हमला हुआ है। हमने भी ऐसी खबरें सुनीं और सोचा कि ये कहां से आईं और किसने इन्हें शुरू किया। चीजें कितनी तेज और भ्रामक हो सकती हैं। “
जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने ऑपरेशन सिंदूर से मिली सीख को साझा करते हुए कहा कि ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ दुश्मनों को हराने के लिए नहीं था – यह संप्रभुता, अखंडता और शांति बहाल करने के लिए भी था। उन्होंने कहा कि “जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुझसे कहा कि ऑपरेशन का नाम सिंदूर होगा तो मुझे याद आया कि कैसे कारगिल युद्ध के दौरान सेना ने अपने मिशन को ऑपरेशन विजय और वायुसेना ने ऑरेशन को सफेद सागर नाम दिया था। इस बार पीएम ने खुद ऑपरेशन सिंदूर नाम चुना। और इसका सबसे बड़ा फायदा क्या हुआ? पूरा देश एक ही नाम – सिंदूर के तले एकजुट हो गया। इस गूंज पूरे देश में भावनात्मक रूप से उठी।”
उन्होंने कहा कि किसी भी युद्ध में हमेशा एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक शामिल होता है। जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने आगे कहा कि जब भी आप हमला करते हैं या दुश्मन की गोलीबारी का सामना करते हैं तो आपको कभी नहीं पता होता कि आगे क्या होगा? हमेशा अनिश्चितता बनी रहती है – आपको नहीं पता कि आप कितने सैनिकों को खो सकते हैं, आपको क्या कार्रवाई करनी होगी या कितने नागरिक प्रभावित हो सकते हैं। इन जोखिमों के बावजूद इस ऑपरेशन के दौरान हमने यह सुनिश्चित किया कि हमारे लिए खतरा पैदा करने वाली किसी भी स्थिति या व्यवस्था पर सीधा हमला किया जाए। चाहे इसका मतलब दुश्मन के इलाके में घुसना ही क्यों न हो, हम 100 किलोमीटर अंदर तक गए और हमला किया।
सैन्य बल भी अपना रहे हैं परिवर्तन
इस दौरान उन्होंने कहा कि सैन्य बल भी परिवर्तन अपना रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि हमने नई तकनीकों को अपनाया, ड्रोन इस्तेमाल करने के लिए तैयार हुए, गोला-बारूद में सुधार किया और सटीक मिशन तैयार किए। हमने खुद को ढाला, इसलिए हमें जीत मिली।
उन्होंने इस दौरान भारतीय सभ्यता के बारे में भी बात की और कहा “हमारी संस्कृति आत्मसात करने वाली और समावेशी है, यानी जो भी आता है, हम उसे आत्मसात कर लेते हैं। हमारी जड़ें गहरी हैं, हमारी संस्कृति मजबूत है। हर पृष्ठभूमि के लोग हमारे साथ घुल-मिल गए हैं – चाहे वे विदेश से इस्लाम, ईसाई धर्म या कोई अन्य धर्म लेकर आए हों, वे सभी भारतीय सभ्यता का हिस्सा बन गए।”
जनरल द्विवेदी ने कहा कि भारत ने अपनी संस्कृति दूसरों के साथ साझा की है। बौद्ध धर्म, भारत से जापान, चीन और इंडोनेशिया तक फैला। छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने जेन-जी से भी अपील की। उन्होंने कहा कि जेन-जी तकनीकी रूप से उन्नत, सामाजिक रूप से जागरुक और वैश्विक रूप से जुड़े हुए हैं। उनके पास दुनिया भर की जानकारी है।
उन्होंने कहा कि अगर इतनी शक्तिशाली जेनरेशन को अनुशासन और सही मार्गदर्शन मिले तो भारत पल भर में कई पीढ़ियां आगे बढ़ सकता है, कई युगों आगे बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि जेन-जी आने वाले समय में भारत को आगे बढ़ाने वाला ईंधन होगा।

