नई दिल्ली: भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस-PDS) से जुड़े अनाज की बर्बादी पर हालिया एक रिपोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (आईसीआरआईईआर-ICRIER) के अध्ययन के अनुसार, पीडीएस के तहत आपूर्ति किए जाने वाले 28 फीसदी अनाज अपने असली लाभार्थियों तक कभी नहीं पहुंच पाता।
आर्थिक मामलों का अंग्रेजी अखबार द इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, इस बर्बादी से सरकार को हर साल करीब 69 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार लगभग 20 मिलियन (दो करोड़) टन चावल और गेहूं या तो खुले बाजार में पहुंचा दिया जाता है या निर्यात कर दिया जाता है। यह अनाज जिसे गरीब और जरूरतमंद लोगों के पोषण के लिए वितरित किया जाना चाहिए, भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों का शिकार हो रहा है।
खबर में बताया गया है कि भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद के प्रोफेसर अशोक गुलाटी ने इस समस्या को “वार्षिक आर्थिक रिसाव” करार दिया है।
राशन में डिजिटलीकरण और सुधारों के बावजूद समस्या बरकरार
अखबार ने अपनी खबर में बताया है कि साल 2016 में राशन दुकानों पर पॉइंट-ऑफ-सेल (POS) मशीनों के उपयोग से रिसाव को कम करने में मदद मिली थी, लेकिन यह समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।
बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने रिसाव को कम करने में सुधार दिखाया है। बिहार में यह 68.7 फीसदी से घटकर 19.2 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 69.4 फीसदी से घटकर नौ फीसदी रह गया।
दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और गुजरात जैसे राज्यों में रिसाव की दर अब भी सबसे अधिक है। उत्तर प्रदेश में भी यह समस्या चिंताजनक है, जहां 33 प्रतिशत अनाज गंतव्य तक नहीं पहुंच पाता।
रिपोर्ट में पाया गया कि बड़ी मात्रा में अनाज खुले बाजार में बेचा जा रहा है। यह गड़बड़ियां डिजिटलीकरण की कमी, खराब निगरानी और पीडीएस में ढांचागत खामियों के कारण हो रही हैं।
क्या है अनाज बर्बादी की समस्या का समाधान?
विशेषज्ञों का कहना है कि आधार कार्ड को राशन कार्ड से जोड़ने और वितरण प्रणाली को डिजिटल बनाने से थोड़ी मदद मिली है, लेकिन इसके लिए व्यापक ढांचागत सुधार जरूरी हैं।
खाद्य वाउचर या नकद हस्तांतरण प्रणाली लागू की जा सकती है। लाभार्थियों की सही पहचान और पारदर्शिता सुनिश्चित करना आवश्यक है। अनाज की डिजिटल ट्रैकिंग प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए।
भारत की पीडीएस प्रणाली दुनिया में सबसे बड़ी है। इसका उद्देश्य 800 मिलियन (80 करोड़) से अधिक लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है, लेकिन अनाज की इस बर्बादी ने गरीबों के पोषण और सरकारी संसाधनों को गहरी चोट पहुंचाई है। अब समय आ गया है कि इन खामियों को दूर किया जाए ताकि जरूरतमंदों को उनका हक सही तरीके से मिल सके।