नई दिल्ली: भारत में किसानों को सब्जियों और फलों के फाइनल प्राइस का लगभग एक तिहाई हिस्सा ही उन्हें मिल रहा है। फाइनल प्राइस का मतलब उस दाम से है जिस दाम पर एक ग्राहक कोई भी सब्जी और फल खरीदता है। यह दावा भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रकाशित शोध पत्रों की एक श्रृंखला में हुआ है।
इसका मतलब यह हुआ है कि सब्जी और फल खरीदते समय ग्राहक जो भी भुगतान करता है, उसका दो-तिहाई हिस्सा थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं जैसे बिचौलियों को जाता है।
स्टडी में यह भी खुलासा हुआ है कि किसानों की हिस्सेदारी डेयरी और पोल्ट्री जैसे क्षेत्रों में ज्यादा है जबकि सब्जी और फलों के क्षेत्र में यह कम है। डेयरी और पोल्ट्री जैसे क्षेत्रों में खरीद और मार्केटिंग सही से होती है जिससे इससे जुड़े किसानों को उनका हिस्सा सही से और ज्यादा मिलता है।
स्टडी में और क्या खुलासा हुआ है
भारत में सब्जियों में टमाटर, प्याज और आलू को टॉप से संबोधित किया जाता है। आरबीआई वर्किंग पेपर के अनुसार, भारतीय किसानों को टॉप सब्जी टमाटर के फाइनल प्राइस का लगभग 33 फीसदी, प्याज का 36 फीसदी और आलू का 37 फीसदी ही मिलता है।
वहीं अगर बात करें फलों की तो केले में किसानों को उसकी कीमत (फाइनल प्राइस) का 31 फीसदी, अंगूर का 35 फीसदी और आम के लिए 43 फीसदी मिलता है। निर्यात बाजार में आम के लिए किसानों को ज्यादा हिस्सा मिलता है। लेकिन अंगूर में यह कम होता जाता है।
स्टडी में यह दावा किया गया है कि फलों और सब्जियों के मुकाबले अनाज और डेयरी उत्पादों के लिए किसानों को ज्यादा हिस्सा मिलता है। दावा है कि अनाज और डेयरी उत्पादों के लिए अच्छी सप्लाई और स्टोरेज सिस्टम मौजूद है जिससे इससे जुड़े किसानों को ज्यादा हिस्सा मिलता है।
अंडे और चने के दाल से जुड़े लोगों को मिलता है सबसे ज्यादा हिस्सा
शोध के अनुसार, डेयरी क्षेत्र में किसानों को फाइनल प्राइस का लगभग 70 फीसदी हिस्सा किसानों को मिलता है। अंडे के कारोबार से जुड़े लोगों को इसकी कीमत का 75 फीसदी मिलता है। पोल्ट्री मांस से जुड़े किसान और एग्रीगेटरों को फाइनल प्राइस का 56 फीसदी मिलता है।
इसी तरीके से अलग-अलग दालों के लिए भी किसानों को अलग-अलग हिस्सा मिलता है। चने के दाल के कारोबार से जुड़े किसानों को फाइनल प्राइस का 75 फीसदी मिलता है। उसी तरह से मूंग वाले दाल के लिए 70 और तूल दाल से जुड़े किसानों को 65 फीसदी मिलता है।
आखिर क्यों सब्जियों और फलों में किसानों को मिलता है कम हिस्सा
शोध के अनुसार, अनाज और डेयरी प्रोडक्ट जल्दी खराब नहीं होते हैं। यही नहीं इसके लिए मार्केटिंग और स्टोर करने की सही व्यवस्था भी होती है। वहीं दूसरी ओर सब्जी और फल मौसमी होते हैं और ये जल्दी खराब हो जाते हैं। इसे ज्यादा दिन तक स्टोर भी नहीं किया जाता है।
शोध में यह भी कहा गया है कि उचित भंडारण सुविधाओं की कमी और बहुत सारे बिचौलियों की उपस्थिति के कारण इससे जुड़े किसानों को ज्यादा हिस्सा नहीं मिल पाता है।
जानकारों ने सुझाया यह उपाय
इस स्टडी के सह-लेखक और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने टमाटर, प्याज और आलू जैसे टॉप सब्जियों की कीमतों में उतार-चढ़ाव से निपटने के तरीके के बारे में भी सुझाव दिया है।
गुलाटी ने सुझाव दिया है कि कैसे सब्जियों और फलों से जुड़े किसानों का हिस्सा बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा है कि निजी मंडियों का विस्तार कर और ई-एनएएम (इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार) के इस्तेमाल को और भी बढ़ाकर इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
अशोक गुलाटी ने यह भी कहा है कि किसान समूहों को बढ़ावा देकर, वायदा कारोबार को फिर से शुरू कर और अधिक कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं का निर्माण कर किसानों के हिस्से बढ़ाया जा सकता है।
गुलाटी ने फलों के लिए भी इस तरह के सुझाव दिए हैं। उन्होंने समान रणनीतियों की सिफारिश की है जैसे भंडारण और परिवहन में सुधार करने पर जोर दिया है।
यही नहीं फलों के लिए उन्होंने फसल बीमा को बढ़ावा देने, निर्यात का विस्तार करने और आपूर्ति को ट्रैक करने और मूल्य अस्थिरता को प्रबंधित करने के लिए डिजिटल उपकरणों के इस्तेमाल करने की सलाह दी है।