लखनऊ: उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर जिलों में कांवड़ यात्रा के लिए नया मार्ग बनाने की योजना के तहत लाखों पेड़ों की कटाई की जा रही है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा गठित चार सदस्यीय की एक पैनल ने इस बारे में एक रिपोर्ट पेश की है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इन जिलों में अब तक 17,600 पेड़ काटे जा चुके हैं। राज्य सरकार ने परियोजना के लिए 33,776 पेड़ों को काटने का प्रस्ताव रखा है। अंग्रेजी वेबसाइट ‘द हिंदू’ के मुताबिक, यह मामला तब सामने आया जब एनजीटी ने एक समाचार पत्र की रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लिया है।
समाचार पत्र के खबर में बताया गया था कि उत्तर प्रदेश सरकार गाजियाबाद के मुरादनगर और मुजफ्फरनगर के पुरकाजी के बीच प्रस्तावित मार्ग के लिए तीन जिलों में 1,12,722 पेड़ काटने की योजना बना रही है।
इस पर एनजीटी ने अगस्त 2024 में इस मुद्दे पर विचार करने के लिए एक संयुक्त पैनल गठित किया। पैनल ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में बताया कि नौ अगस्त 2024 तक इन तीन जिलों में 17,607 पेड़ काटे जा चुके थे।
एनजीटी ने सरकार से मांगी है जानकारी
‘द हिंदू’ के अनुसार, परियोजना के लिए काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या को कम कर 33,776 कर दिया गया है। यह पहले की योजना से काफी कम है। एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या यह संख्या राज्य के वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 के अनुसार सही है।
साथ ही यह भी पूछा कि क्या सड़क निर्माण के लिए काटे जा रहे अन्य पौधे, पेड़ और झाड़ियां इस कानून के तहत पेड़ माने जाते हैं या नहीं।
एनजीटी ने राज्य सरकार से पर्यावरण के अतिरिक्त मुख्य सचिव से एक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है, जिसमें इस परियोजना के दौरान काटे गए पेड़ों की सही संख्या का विवरण होगा। यह जानकारी उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 के प्रावधानों के तहत दी जाएगी।
पर्यावरणीय नियमों का पूरी तरह से पालन का निर्देश
मामले की गंभीरता को देखते हुए एनजीटी ने संयुक्त समिति से कहा है कि वह जल्द से जल्द इस मुद्दे पर अंतिम रिपोर्ट पेश करें। राज्य सरकार को यह तय करना होगा कि कांवड़ मार्ग के निर्माण के दौरान पर्यावरणीय नियमों का पालन किया जाए और अधिक से अधिक पेड़ों को बचाने के लिए प्रयास किए जाएं।
मामले में एनजीटी का उद्देश्य यह है कि राज्य सरकार पर्यावरण संरक्षण के नियमों का पालन करते हुए अपने विकास कार्यों को अंजाम दे, ताकि प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन बना रहे।