एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लिए अच्छी खबर है कि इस वित्त वर्ष (FY26) में महंगाई की दर काफी कम यानी औसतन 2.1 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। यह इसलिए संभव होगा क्योंकि खाने-पीने की चीजों की कीमतें कम हो गई हैं और बाजार में मांग का दबाव भी उतना नहीं है।
केयरएज रेटिंग्स (CareEdge Ratings) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, अगर आर्थिक विकास दर वित्त वर्ष 2026 की दूसरी छमाही में थोड़ी धीमी होती है, तो महंगाई के कम होने के ये आंकड़े भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लिए ब्याज दरों में कटौती का रास्ता खोल सकते हैं।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में लगातार गिरावट के कारण अक्टूबर की खुदरा महंगाई दर सितंबर से काफी कम रह सकती है। इस साल अब तक आरबीआई ने रेपो दर में पहले ही 100 आधार अंक (बीपीएस) की कमी कर दी है, जिससे रेपो दर 5.5% पर आ गई है। कीमतों में नरमी के संकेत मिलने पर आरबीआई द्वारा इस साल आगे भी मौद्रिक नीति में ढील देने की उम्मीदें बढ़ेंगी।
डॉलर के मुकाबले रुपया दबाव में
इस बीच, आज डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया बिकवाली के दबाव में है और यह लगभग 88.80 के स्तर पर पहुँच गया है। यह दबाव इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि आज सुबह ही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) यानी खुदरा महंगाई के आंकड़े जारी होने वाले हैं।
हालांकि, रुपये पर दबाव का एक बड़ा कारण यह भी है कि अमेरिका और भारत के बीच किसी बड़े व्यापार समझौते की घोषणा नहीं हुई है, जिसके कारण विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से लगातार पैसा निकाल रहे हैं। मंगलवार को भी विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 800 करोड़ रुपये से अधिक के शेयर बेचे। रेटिंग्स एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि मैनेजबल चालू खाता घाटे और डॉलर के नरम रहने के चलते वित्त वर्ष 2026 के अंत तक रुपया 85 से 87 के बीच रह सकता है।
व्यापार मोर्चे पर, वित्त वर्ष 2026 की पहली छमाही में भारत का गैर-पेट्रोलियम निर्यात 7% बढ़ा है, हालांकि पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में कमी आई है। इस दौरान भारत को होने वाले आयात में 4.5% की मामूली वृद्धि हुई है। अमेरिका अभी भी भारतीय वस्तुओं के लिए सबसे बड़ा निर्यात बाजार बना हुआ है और हमारे कुल निर्यात का लगभग 20% हिस्सा अमेरिका को जाता है। यह रिपोर्ट बताती है कि 2025-26 में वैश्विक व्यापार की मात्रा औसतन 2.9% की दर से बढ़ेगी।

