मुंबई: अभिनेता प्रतीक गांधी और पत्रलेखा की फिल्म 'फुले' शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली थी। हालांकि दो दिन पहले ही फिल्म की रिलीज को दो हफ्ते के लिए टाल दिया गया। इसे अब महीने के आखिर में 25 अप्रैल को रिलीज किया जा सकता है। फिल्म पर जातिवाद को बढ़ावा देने जैसे आरोप और शुरू हुए राजनीतिक विवाद के बीच यह रिलीज टली है।
मिड डे की रिपोर्ट के अनुसार सेंसर बोर्ड (सीबीएफसी) ने फिल्म में कई बदलाव लाने को कहा है। साथ ही कई डायलॉग्स हटाने को कहा गया है। यह फिल्म ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले पर आधारित है। इसमें इनके समाजिक सुधार की कोशिशों और इसके लिए किए गए संघर्ष को दर्शाया गया है। फिल्म में प्रतीक गांधी ज्योतिबा फुले के किरदार में हैं। वहीं पत्रलेखा सावित्रीबाई फुले की भूमिका निभा रही हैं।
सेंसर बोर्ड ने क्या बदलाव करने को कहा है?
फुले की टीम को मनु महाराज की जाति व्यवस्था के बारे में बात करने वाले वॉयसओवर को हटाने के लिए कहा गया है। साथ ही 'मांग', 'महार' और 'पेशवाई' जैसे शब्दों को भी हटाने के निर्देश दिए गए हैं।
फिल्म के कुछ संवादों में भी बदलाव करने को कहा गया है। इसमें - 'जहां शूद्रों को......झाड़ू बांध कर चलना चाहिए' जैसे संवाद को बदलने को कहा गया है। साथ ही '3000 साल पुरानी....गुलामी' वाले संवाद को 'कई साल पुरानी' से बदला गया है। इसके अलावा भी कुछ और संवाद हैं, जिन्हें हटाने को कहा गया है। वहीं, बताया गया है कि फिल्म के निर्माताओं ने 'फुले' में किए गए ऐतिहासिक संदर्भों का समर्थन करने वाले उचित दस्तावेज भी जमा किए हैं।
फिल्म पर क्यों हुआ विवाद?
महाराष्ट्र में ब्राह्मण समुदाय के एक वर्ग ने आपत्ति जताई है कि फुले फिल्म में उन्हें गलत तरीके से दिखाया गया है। इसके बाद विवाद शुरू हुआ और फिर फिल्म की रिलीज को रोकना पड़ा। फिल्म में प्रतीक और पत्रलेखा क्रमशः 19वीं सदी के समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की भूमिका निभा रहे हैं। अनंत महादेवन द्वारा निर्देशित इस फिल्म में जातिगत भेदभाव और लैंगिक असमानता के खिलाफ उनकी लड़ाई को दिखाने की कोशिश की गई है।
अनंत महादेवन ने फिल्म की रिलीज में देरी पर क्या कहा?
गौरतलब है कि फिल्म के ट्रेलर के लॉन्च होने के बाद निर्देशक अनंत महादेवन को ब्राह्मण समुदायों से कई पत्र मिले, जिनमें फिल्म में उनसे संबंधित दृश्यों को लेकर चिंता जताई गई। इस सप्ताह की शुरुआत में एक इंटरव्यू में महादेवन ने कहा, 'ट्रेलर लॉन्च होने के बाद कुछ गलतफहमी हुई है। हम उन संदेहों को दूर करना चाहते हैं, ताकि दर्शकों की संख्या में कोई परेशानी न हो।'
महादेवन और मुअज्जम बेग द्वारा लिखी गई बायोपिक में दिखाया गया है कि कैसे समाज सुधारक और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने जातिवाद से लड़ाई लड़ी और 19वीं सदी में महिलाओं की शिक्षा का समर्थन किया। अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज और परशुराम आर्थिक विकास महामंडल उन संगठनों में से हैं, जिन्होंने फिल्म पर चिंता व्यक्त की है।
निर्देशक ने कहा, 'जब मैं (अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज के) प्रतिनिधियों से मिला और उन्हें बताया कि हमने कैसे दिखाया है कि कुछ ब्राह्मणों ने ज्योतिबा फुले को 20 स्कूल स्थापित करने में मदद की थी, तो वे खुश हुए। जब फुले ने सत्यशोधक समाज खोला, तो ये ब्राह्मण ही इसके स्तंभ थे। मैं एक ब्राह्मण हूँ। मैं अपने समुदाय को बदनाम क्यों करूँगा? हमने केवल तथ्य दिखाए हैं। यह कोई एजेंडा वाली फिल्म नहीं है।'
बताते चलें कि सीबीएफसी ने पहले फिल्म को यू सर्टिफिकेट के साथ पास किया था, लेकिन बाद में फिर इसे फिर से एडिट करने के लिए कहा।