प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल 1882 में अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (आईटीआई) द्वारा की गई थी। इस नृत्य समिति ने दुनिया भर में नर्तकियों की अद्भुत विविधता और प्रतिभा को उजागर करने के लिए 29 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस के रूप में स्थापित किया। इस तारीख को इसलिए चुना गया क्योंकि इसी दिन आधुनिक बैले के निर्माता जीन-जॉर्जेस नोवरे का जन्म हुआ था। कौन थे जीन-जॉर्जेस नोवरे और क्या थी उनकी उपलब्धि, आइए जानते हैंः
जीन-जॉर्जेस नोवरेः आधुनिक बैले के जनक
जीन-जॉर्जेस नोवरे एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी कोरियोग्राफर थे। 29 अप्रैल 1727 को पेरिस में जन्में नोवरे को बैले के जनक के रूप में जाना जाता है। उनके पिता स्विट्जरलैंड के सैनिक थे जो फ्रांस के राजा के लिए काम करते थे। नोवरे को बचपन से ही नृत्य में रुचि थी। उन्होंने मशहूर फ्रेंच डांसर लुई डुप्रे के साथ नृत्य की ट्रेनिंग ली। लुई के मार्गदर्शन में ही 1743 में पेरिस के ओपेरा-कॉमिक में उन्होंने पहली प्रस्तुति दी। इसके बाद जल्द ही वे बैले मास्टर बन गए। उन्होंने राजा लुई पंद्रहवें के लिए नृत्य किया और फिर लंदन, बर्लिन, ल्यों समेत कई यूरोपिय शहरों अपनी कला का प्रदर्शन किया। वहां से वे ड्यूक यूजीन ऑफ वुर्टेमबर्ग के दरबार में चले गए जहां उन्होंने 1763 में अपने शानदार बैले “मेडे एट जेसन” का प्रीमियर किया।
यहां से नोवरे की प्रसिद्धि तेजी से बढ़ी और अगले पचास सालों में उन्होंने महत्वपूर्ण बैले का निर्माण किया। जिनमें “मेडिए एट जस्टन” (1763), “लेस फेटेस चिनोइसेस” (1754), और “साइके एट ल’अमौर” (1760) शामिल हैं। उन्होंने स्टटगार्ट और वियना में बैले मास्टर के रूप में भी काम किया। यहां उन्हें अप्रत्यााशित सफलता मिली। 1775 में नोवरे वापस पेरिस आ गए जहां उनकी पूर्व नृत्य छात्रा रानी मैरी-एंटोनेट ने उन्हें एकेडेमी रॉयल डे म्यूजिक (पेरिस ओपेरा) में बैले मास्टर के पद पर नियुक्त किया। वे यहां 1776 से 1781 तक पद पर बने रहे। यहां रहने के दौरान उन्होंने “मेडे एट जेसन” को फिर से जीवंत किया और 1778 में “लेस पेटिट्स रिन्स” के लिए मोजार्ट (संगीकार) के साथ हाथ मिलाया।
“बैले डीएक्शन” का विकास
1760 में प्रकाशित नोवरे की किताब Lettres sur la danse et sur les ballets (1760) को बैले का क्लासिकल ग्रंथ माना जाता है। इस किताब ने बैले के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। इसमें उन्होंने नाटकीय कहानी और भावों को बैले में महत्व देने पर बल दिया। इसे उन्होंने “बैले डीएक्शन” (Ballet d’action) कहा। इसका मतलब एक ऐसा बैले से है जिसमे कहानी और विषय सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। और उन्ही के अनुसार बैले का नृत्य रचना, मंच सजावट और पोशाक तय किये जाते हैं। उन्होंने तकनीकी कौशल पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने के खिलाफ भी तर्क दिया, और इसके बजाय अभिव्यक्ति और भावना पर जोर दिया।
बैले डीएक्शन का विचार कहाँ से आया?
दरअसल 18वीं सदी के शुरुआत के एक अंग्रेज बैले मास्टर जॉन वीवर ने मूकाभिनय बैले (pantomime ballet) की शुरुआत की थी। यह एक नृत्य नाटक है जिसे बाद में पारंपरिक बैले डीएक्शन (कहानी पर आधारित बैले) के रूप में विकसित किया गया। कोरियोग्राफर एंजियोलिनी, फ्रांज हिल्वरडिंग, वैन वेवेन और खासकर नोवरे ने इस खूब पसंद किया और इसको बढ़ाया। नोवरे ने बैले को संगीत, सेट और निर्देशन से जोड़कर एक स्वतंत्र कला के रूप में मान्यता दिलाने का प्रयास किया। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात, नृत्य को क्रिया का अभिन्न अंग बनाने के लिए माइम (अभिनय) की शुरुआत करने के लिए नोवर को जाना जाता है।
जीन-जॉर्जेस नोव के बारे में अन्य जानकारियां
- वह एक कुशल नर्तक थे, लेकिन उन्हें चोटों के कारण 30 साल की उम्र में मंच छोड़ना पड़ा।
- उन्होंने कई प्रसिद्ध कलाकारों और संगीतकारों के साथ काम किया, जिनमें मोजार्ट और ग्लक शामिल हैं।
- उन्हें फ्रांस के राजा लुई XV द्वारा सम्मानित किया गया था।
- नोवरे की मृत्यु के बाद, उनकी किताब “लेट्रेस सुर ला डांसे एट सुर ले बैले” कई भाषाओं में अनुवादित की गई और इसे बैले का क्लासिक ग्रंथ माना गया।