मुंबईः पटौदी परिवार की करीब 15,000 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्तियों, जिनका संबंध अभिनेता सैफ अली खान से भी है, पर सरकार का कब्जा हो सकता है। यह कार्रवाई शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत की जा सकती है। हाल ही में, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 2015 में इन संपत्तियों पर लगाए गए स्टे को हटा दिया है, जिससे सरकार द्वारा इन संपत्तियों के अधिग्रहण का रास्ता साफ हो गया है।
कौन-कौन सी संपत्तियां हैं विवाद के केंद्र में?
इन संपत्तियों में कई महत्वपूर्ण स्थल शामिल हैं, जैसे सैफ का बचपन का घर फ्लैग स्टाफ हाउस, नूर-उस-सबह पैलेस, दर-उस-सलाम, हबीबी का बंगला, अहमदाबाद पैलेस, और कोहेफिजा संपत्ति।
बीते साल 13 दिसंबर को जस्टिस विवेक अग्रवाल ने अपने फैसले में कहा कि 2017 में संशोधित शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत विवादों को निपटाने के लिए कानूनी प्रक्रिया निर्धारित की गई है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि अगले 30 दिनों के भीतर संबंधित पक्ष अपील दायर करते हैं, तो अपील प्राधिकरण इसे सीमावधि के पहलू पर विचार किए बिना अपनी योग्यता के आधार पर सुनेगा।
क्या है पटौदी परिवार की संपत्ति का विवाद?
शत्रु संपत्ति अधिनियम के अनुसार, सरकार उन संपत्तियों पर दावा कर सकती है, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान गए व्यक्तियों की हैं। भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की तीन बेटियां थीं। इनमें से एक बेटी पाकिस्तान चली गईं, जबकि दूसरी भारत में रहीं। सैफ अली खान भारत में रहने वाली बेटी साजिदा सुल्तान के पोते हैं। हालांकि, सरकार ने पाकिस्तान जाने वाली बेटी आबीदा सुल्तान के प्रवास को आधार बनाते हुए इन संपत्तियों को “शत्रु संपत्ति” के तहत लेने की दलील दी है।
पटौदी पैलेस का किस्सा
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सैफ अली खान ने अक्सर अपने परिवार के पटौदी पैलेस को वापस पाने की बात की है। यह पैलेस उनके पिता मंसूर अली खान पटौदी द्वारा एक होटल चेन को लीज पर दिया गया था। सैफ ने 2021 में एक इंटरव्यू में बताया था, “मेरे पिता ने इसे लीज पर दिया था और फ्रांसिस (वाच्जिआर्ग) और अमन (नाथ) ने इसकी अच्छी देखभाल की। मेरी मां (शर्मिला टैगोर) का यहां एक कॉटेज था और वह हमेशा यहां आरामदायक महसूस करती थीं।”
उन्होंने यह भी साफ किया, “यह एक वित्तीय समझौता था और इसके विपरीत, मुझे इसे खरीदने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि मैं पहले से ही इसका मालिक था।”
पैलेस का इतिहास
सैफ की बहन सोहा अली खान ने हाल ही में बताया था कि पटौदी पैलेस को उनके दादा ने उनकी दादी साजिदा सुल्तान को प्रभावित करने के लिए 1935 में बनवाया था। उन्होंने कहा, “दादा-दादी के विवाह को लेकर उनके पिता (साजिदा के) सहमत नहीं थे। इस कारण दादा ने यह पैलेस बनवाया। लेकिन निर्माण के दौरान ही उनके पास पैसे खत्म हो गए। इसलिए, पैलेस के कुछ हिस्सों में संगमरमर की जगह साधारण सीमेंट का फर्श है।”
सोहा ने यह भी खुलासा किया कि उनकी मां, शर्मिला टैगोर, परिवार के हिसाब-किताब की देखभाल करती हैं। उन्होंने कहा, “मां को हर महीने का खर्च पता रहता है। उदाहरण के लिए, हम पटौदी को व्हाइटवॉश करते हैं, क्योंकि यह पेंट कराने से सस्ता पड़ता है। हम लंबे समय से कोई नया सामान नहीं खरीद रहे हैं। यहां की वास्तुकला ही इसे खास बनाती है, न कि इसके अंदर की वस्तुएं।”
आगे क्या होगा?
भोपाल कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने कहा है कि इन संपत्तियों के पिछले 72 वर्षों के स्वामित्व रिकॉर्ड की समीक्षा की जाएगी। साथ ही, उन्होंने संकेत दिया कि विवादित संपत्तियों पर रहने वाले लोग राज्य के किराया कानूनों के तहत किरायेदार माने जा सकते हैं। बता दें इस फैसले से क्षेत्र के लगभग 1.5 लाख निवासियों में अनिश्चितता फैल गई है। इन निवासियों में से कई को उजाड़े जाने का डर सताने लगा है।
एनडीटीवी से बात करते हुए एक स्थानीय निवासी सुमेर खान ने कहा, “रोक हटा दी गई है, लेकिन इन संपत्तियों को शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत विलय करना जटिल है। पटौदी परिवार के पास अभी भी अपील करने का मौका है।”
चांद मियां नाम के एक अन्य निवासी ने चिंता जताई। उसने एनडीटीवी को बताया कि “हम टैक्स तो भरते हैं, लेकिन हमारे घरों की कोई रजिस्ट्री नहीं है। नवाब के दिए गए पट्टे अभी भी मान्य होने चाहिए।” इलाके में रहने वाले नसीम खान ने कहा, “सरकार इन संपत्तियों का दावा कर रही है, लेकिन इनमें से कई संपत्तियां वर्षों पहले बेची या पट्टे पर दी जा चुकी हैं। यह मुद्दा इतना सरल नहीं है।”
हाल ही में सैफ अली खान एक जानलेवा हमले का शिकार हुए थे। घर में एक घुसपैठिये ने उनपर चाकू से कई वार किए थे जिसमें वे बुरी तरह से घायल हो गए थे। मुंबई के लीलावती अस्पताल में 5 दिनों तक इलाज चला जहां उनकी सर्जरी हुई। मंगलवार उन्हें अस्पताल से घर लाया गया।