बड़े पर्दे पर जब वी मेट, रॉकस्टार, हाईवे, तमाशा जैसी हिट रोमांटिक फिल्में देने वाले निर्देशक इम्तियाज अली अब छोटे से भी छोटे पर्दे ओटीटी पर पदार्पण कर चुके हैं। उनकी नई फिल्म अमर सिंह चमकीला नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है।
अमर सिंह चमकीला की कहानी:
यह फिल्म एक बॉयोपिक है जो पंजाबी गायक अमर सिंह चमकीला (1960-1988) के जीवन पर आधारित है। अमर सिंह चमकीला और उनकी पत्नी अमरजोत कौर की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। हत्या के वक्त अमर सिंह चमकीला की उम्र 27 साल 7 महीना थी। अमर सिंह चमकीला की हत्या की पुलिस जाँच किसी नतीजे पर नहीं पहुँची। आजतक इसकी पुष्टि नहीं हुई है कि उनकी हत्या किसने की और किसने करवायी।
अमर सिंह चमकीला जिस तरह के गाने गाते थे, उन्हें डबल मिनिंग वाले गाने कहते हैं। चमकीला ने करीब 17 साल की उम्र में स्थानीय पंजाबी गायक सुरेंद्र शिंदा की शागिर्दी से अपना म्यूजिक करियर शुरू किया था। करीब 10 सालों की संगीत यात्रा में वे अपने जॉनर के सबसे लोकप्रिय पंजाबी गायक बन गये। मशहूर संगीत कंपनी एचएमवी ने उनके एलपी रिकॉर्ड (तावा) जारी किए थे। चमकीला की अप्रतिम सफलता उनके लिए काल बन गयी। 08 मार्च 1988 को जब चमकीला और उनकी पत्नी अमरजोत कौर एक संगीत कार्यक्रम के लिए जालंधर के महेसानपुर गाँव पहुँचे तो कार से उतरते ही उन्हें अज्ञात बन्दूकधारियों ने गोली मार दी।
‘अमर सिंह चमकीला’ फिल्म की ताकत
फिल्म का निर्देशन इम्तियाज अली ने किया है। संगीत एआर रहमान ने दिया है। गीत इरशाद कामिल ने लिखे हैं। संपादन आरती बजाज ने किया है। फिल्म की कथा और पटकथा, इम्तियाज अली और साजिद अली ने मिलकर लिखी है। निर्देशन, संगीत, गीत और संपादन करने वाले सभी जन समकालीन भारतीय सिनेमा के सर्वाधिक प्रतिभाशाली कलाकार हैं, और सभी ने इस फिल्म में भी उच्च गुणवत्ता का काम किया है।
फिल्म का कैमरा वर्क सिल्वेस्टर फोन्सेका (Sylvester Fonseca) ने किया है। सिल्वेस्टर ने पुणे स्थित भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन प्रशिक्षण संस्थान (FTII) से प्रशिक्षण लिया है। एफटीआई के एडिटिंग और कैमरा विभाग ने देश के श्रेष्ठ एडिटर और कैमरापर्सन दिये हैं। इम्तियाज अली जैसा निर्देशक हो और अनुभवी प्रशिक्षित छायाकार हो तो कैमरावर्क की गुणवत्ता खराब होने का सवाल नहीं उठता।
‘अमर सिंह चमकीला’ फिल्म की कमजोरी
जिस फिल्म को अपने-अपने हुनर में माहिर कलावंतों ने बनाया हो, उसकी कमजोरी खोजना हिमाकत है लेकिन एक आम दर्शक के नजरिए से देखें तो फिल्म का पहला हॉफ थोड़ा स्लो प्रतीत हुआ। फिल्म का सेकेंड हॉफ ज्यादा रोचक है। हो सकता है कि फिल्म की गति को जानबूझकर थोड़ा मद्धम रखा गया हो लेकिन ओटीटी दर्शक को धीमी गति वाली फिल्मों की अभी आदत नहीं है। 10-20-30 सेकेंड फारवर्ड करने और 2x स्पीड पर देखने की सुविधा देने वाले ओटीटी प्लेटफॉर्म पर धीमी गति वाली फिल्मों को दर्शक को रोके रखना चुनौती जैसा है। जो दर्शक ऊबकर बीच में ड्राप करने के बजाय पूरी फिल्म देखेंगे, वे इससे निराश नहीं होंगे।
फिल्म का दूसरा कमजोर पहलू दिलजीत दोसांझ की कास्टिंग लगी। बेहतर होता कि इम्तियाज अली किसी नए अभिनेता या कम चर्चित अभिनेता को अमर सिंह चमकीला की भूमिका के लिए लेते। फिल्म में दिलजीत दोसांझ का अभिनय अच्छा है लेकिन कई जगह वे कैरेक्टर के बजाय कैरीकेचर लगने लगते हैं। दिलजीत दोसांझ के उलट परिणीति चोपड़ा हर जगह अमरजोत कौर की भूमिका में फिट लगती हैं। फिल्म के अन्य सभी कलाकारों का अभिनय सराहनीय है।
इम्तियाज अली ने फिल्म को प्रमाणिक बनाने के लिए कई जगहों पर अमर सिंह और अमरजोत कौर की वास्तविक तस्वीरों और वीडियो का प्रयोग किया है लेकिन उन्होंने जिस तरह फिल्मी कॉपी और ओरिजनल को अगल-बगल रखा है, उससे कई जगहों पर फिल्म कैरीकेचर लगने लगी है। ओरिजनल क्लिप और इमेज का प्रयोग प्रमाणिकता स्थापित करने के लिए किया जाता है लेकिन इम्तियाज अली ने इनका प्रयोग जिस तरह किया है, उससे ऐसा लगता है कि वे मूल और फिल्मी संस्करण में समानता दिखाने का प्रयास कर रहे हैं जो थोड़ा कृत्रिम लगता है।
अमर सिंह चमकीला की हत्या की गुत्थी!
फिल्म यह सवाल छोड़ जाती है कि अमर सिंह चमकीला की हत्या किसने करवायी? जब पंजाब पुलिस ने यह गुत्थी नहीं सुलझायी तो इम्तियाज अली की टीम से इसकी उम्मीद करना बेमानी है। अमर सिंह चमकीला की हत्या के पीछे कई धारणाएँ प्रचलित हैं। आइए, हम एक-एक कर तीन प्रमुख धारणाओं पर विचार करते हैं।
अमर सिंह चमकीला की हत्या के लिए सर्वप्रमुख जिम्मेदार खालिस्तानी आंतकवादियों को माना जाता है। उस दौर में पंजाब खालिस्तानी आतंकवाद चरम पर था। माना जाता है कि खालिस्तानी नेता जनरैल सिंह भिंडरावाले के सामने अमर सिंह चमकीला की पेशी हुई थी। उसने चमकीला को अश्लील गाने न गाने की चेतावनी दी थी।खालिस्तानियों के कहने पर अमर सिंह चमकीला ने कुछ भक्ति गीत भी बनाए लेकिन उनके श्रोता उनसे उसी तरह के डबल मिनिंग गानों की फरमाइश करते थे, जिनकी वजह से चमकीला मशहूर हुए थे। फिल्म में दिखाया गया है कि चमकीला ने खालिस्तानियों के कहने पर नए डबल मिनिंग गाने लिखने बन्द कर दिए लेकिन पुराने गानों को वह जनता की माँग पर गाते रहे। उनके पुराने गीतों के रिकॉर्ड भी बिकते रहे। आप कह सकते हैं कि चमकीला के लिए ‘उगलो तो अन्धा, निगलो तो कोढ़ी’ वाली स्थिति हो गयी थी। इसी कशमकश में उनकी जान चली गयी। पंजाब के मशहूर कवि अवतार सिंह संधू को भी 1988 में खालिस्तानी आतंकवादियों ने गोली मार दी थी। अभी कुछ समय पहले सिद्धू मूसेवाला की एक गैंगेस्टर ने हत्या करवा दी थी। पंजाब में कलाकारों की हत्या के इतिहास को देखते हुए, यही धारणा सच के सबसे करीब लगती है।
अमर सिंह चमकीला की हत्या के पीछे दूसरी धारणा ये है कि उनकी सफलता से जलने वाले किसी अन्य पंजाबी गायक ने उनकी हत्या करवा दी। टी सीरीज के मालिक गुलशन कुमार की हत्या भी कुछ ऐसे ही कारणों से हुई थी। संगीतकार नदीम उनकी हत्या के आरोपी थे। गुलशन कुमार की हत्या के बाद नदीम भारत छोड़कर लन्दन जा बसे तो यह कभी स्पष्ट नहीं हो सका कि नदीम की गुलशन कुमार की हत्या में क्या और कितनी भूमिका थी। फिल्म से इस सवाल का जवाब नहीं मिलता है कि चमकीला के किसी समकालीन प्रतिद्वंद्वी की पहुँच किसी गैंगेस्टर तक थी या नहीं। कम से कम फिल्म देखकर यह नहीं लगता है कि चमकीला की हत्या किसी अन्य पंजाबी गायक ने करवायी होगी।
अमर सिंह चमकीला की हत्या के पीछे तीसरी धारणा जातिगत टकराव की बतायी जाती है। जातिगत तंज और भेदभाव से अलग कोई हिंसक टकराव फिल्म में नहीं दिखाया गया है। हत्या के पीछे कास्ट एंगल मीडिया में ज्यादा उछाला जा रहा है। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि चूँकि चमकीला चमार जाति से थे, और उनकी पत्नी अमरजोत कौर किसी अन्य जाति की थीं, इसलिए अमरजोत के परिजनों ने ब्याह से नाराज होकर हत्या करवा दी। हत्या के लिए यह धारणा सर्वथा आधारविहीन प्रतीत होती है। प्रेम-विवाह विरोधी हत्याएँ मीडिया में सुर्खियाँ पाती रही हैं इसलिए कुछ मीडिया संस्थान इस एंगल को ज्यादा तूल दे रहे हैं लेकिन जिस तरह अमरजोत कौर के पिता और भाई खुद उन्हें चमकीला के साथ गाने के लिए लाते हैं और बाद में भी उनके सम्पर्क में रहते हैं, उससे कहीं से नहीं लगता है कि ऐसा कोई एंगल होगा। अमरजोत के परिजनों को उनकी हत्या करानी होती तो वे उनके बाल-बच्चे होने का इन्तजार नहीं करते। इसलिए भी यह धारणा काल्पनिक लगती है।
फिल्म देखें या न देखें?
मेरा सुझाव होगा कि फिल्म एक बार जरूर देखें। पहले हॉफ को थोड़ा स्लो है लेकिन पूरी फिल्म देखने के बाद आप निराश नहीं होंगे। अमर सिंह चमकीला, स्लो मोशन वाली खूबसूरत फिल्म है।