वॉशिंगटन: डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाले अमेरिकी प्रशासन ने बुधवार को रूस के दो सबसे बड़े तेल उत्पादकों, रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकोइल (Lukoil) पर प्रतिबंध लगा दिया। यह कदम मॉस्को के खिलाफ वाशिंगटन के अब तक के सबसे बड़े प्रतिबंधों में से एक है, जिसकी घोषणा वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट द्वारा व्लादिमीर पुतिन पर अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ बातचीत में ‘ईमानदारी से’ शामिल न होने का आरोप लगाने के बाद की गई है।
इन दो तेल कंपनियों पर अमेरिका की ओर से प्रतिबंध का असर भारत पर भी नजर आ सकता है। दरअसल, इन तेल कंपनियों से भारत भी तेल खरीदता रहा है। ब्रिटेन का फॉरेन, कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस (FCDO) पूर्व में कह चुका है अकेले रोसनेफ्ट रूस के तेल उत्पादन का लगभग आधा तथा वैश्विक आपूर्ति का लगभग छह प्रतिशत हिस्सा प्रदान करता है।
बहरहाल, बेसेंट ने फॉक्स बिजनेस को बताया, ‘राष्ट्रपति पुतिन ईमानदार और स्पष्ट तरीके से बातचीत की मेज पर नहीं आए, जैसी कि हमने उम्मीद की थी।’ उन्होंने आगे कहा कि ट्रंप ‘इस बात से निराश हैं कि हम इन वार्ताओं में कहाँ हैं।’
वॉशिंगटन और मॉस्को के बीच यूक्रेन युद्ध को खत्म करने को लेकर हो रही वार्ता विफल होने के बाद ट्रंप ने रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों – रोसनेफ्ट और लुकोइल – पर प्रतिबंध लगाया है। अमेरिका का मानना है कि इससे रूस पर युद्ध को खत्म करने का दबाव बढ़ेगा। यह घोषणा बुडापेस्ट में प्रस्तावित ट्रंप-पुतिन शिखर सम्मेलन के रद्द होने के एक दिन बाद आई है। शांति वार्ता में प्रगति न होने पर अमेरिका की निराशा के बीच इसे रद्द कर दिया गया था।
डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को व्हाइट हाउस में पुतिन की आलोचना करते हुए कहा कि वे शांति को लेकर ‘गंभीर नहीं हैं।’ ट्रंप ने आगे कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नए प्रतिबंध मामले के हल को लेकर नया रास्ता खोलेंगे।
वहीं, बेसेंट ने एक बयान में कहा, ‘राष्ट्रपति पुतिन द्वारा इस बेतुके युद्ध को समाप्त करने से इनकार करने के मद्देनजर, वित्त मंत्रालय रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगा रहा है जो क्रेमलिन की युद्ध मशीन को वित्तपोषित करती हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि वित्त मंत्रालय संघर्ष को समाप्त करने के ट्रंप के प्रयासों का समर्थन करने के लिए ‘जरूरत पड़ने पर आगे की कार्रवाई करने’ के लिए तैयार है।
रूस की तेल कंपनियों पर प्रतिबंध, भारत पर होगा असर?
अमेरिका के प्रतिबंध के ऐलान के बाद रूस की भी प्रतिक्रिया सामने आई है। रूस ने चेतावनी दी है कि इन कदमों से दुनिया में विकासशील देशों की ऊर्जा (तेल और गैस) सुरक्षा पर व्यापक असर पड़ेगा। भारत की बात करें तो वो पहले से ही रूस से तेल खरीद पर ट्रंप के निशाने पर है। यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद से भारत रूसी तेल के बड़े खरीदार के तौर पर उभरा है। चीन के बाद भारत दूसरा ऐसा देश है जो अभी रूस से सबसे ज्यादा मात्रा में कच्चा तेल खरीदता है।
भारत कहता रहा है कि उसकी अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐसा जरूरी है कि वो किफायती दर पर मिलने वाली तेल खरीदे। भारत अपनी जरूरत का लगभग 85 फीसदी तेल आयात करता है। इसमें रूस से बड़ी मात्रा में तेल आता है। भारत ने रूस से तेल आयात यूक्रेन यु्द्ध के बाद बढ़ाया है।
जहां तक रूसी कंपनियों की बात है, भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी रूसी कंपनी रोसनेफ्ट से बड़ी मात्रा में तेल खरीदते रहे हैं। पिछले ही सप्ताह ब्रिटिश सरकार ने रूसी कंपनियों से तेल खरीद को लेकर नायरा एनर्जी पर प्रतिबंध लगाए थे। ब्रिटेन की ओर से बैन की गई लिस्ट में कई रूसी कंपनियों सहित रोसनेफ्ट भी शामिल थी, जिस पर अब अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया है। इससे पहले यूरोपीय यूनियन भी भारत के नायरा एनर्जी पर प्रतिबंध लगा चुका है।
एनडीटीवी प्रॉफिट की एक रिपोर्ट के अनुसार रोसनेफ्ट के पास भारत स्थित नायरा एनर्जी लिमिटेड में भी 49.13% हिस्सेदारी है, जो गुजरात के वडिनार में 20 मिलियन टन प्रति वर्ष की क्षमता वाली भारत की दूसरी सबसे बड़ी रिफाइनरी का संचालन करती है।
‘रूस के खिलाफ सबसे बड़े प्रतिबंधों में से एक’
प्रतिबंध की आधिकारिक घोषणा से पहले बोलते हुए, बेसेंट ने इस कदम को ‘रूस के खिलाफ अमेरिका द्वारा लगाए गए सबसे बड़े प्रतिबंधों में से एक’ बताया। बेसेंट ने इसका भी जिक्र किया कि अलास्का में दोनों नेताओं की अगस्त की बैठक के दौरान, ‘राष्ट्रपति ट्रंप चले गए जब उन्हें एहसास हुआ कि चीजें आगे नहीं बढ़ रही हैं।’ उन्होंने कहा, ‘पर्दे के पीछे बातचीत हुई है, लेकिन मेरा मानना है कि राष्ट्रपति इस बात से निराश हैं कि हम इन वार्ताओं में कहां हैं।’
दूसरी ओर यूरोपीय संघ ने भी बुधवार को मास्को के खिलाफ नए प्रतिबंधों की घोषणा की, जिसमें 2027 तक रूसी तरलीकृत प्राकृतिक गैस आयात पर प्रतिबंध, रूस द्वारा उपयोग किए जाने वाले तेल टैंकरों को ब्लैक लिस्ट में डालना और रूसी राजनयिकों के लिए नए यात्रा प्रतिबंध शामिल हैं।
इसी साल जनवरी में राष्ट्रपति बनने के बाद से ट्रंप ने बार-बार नए प्रतिबंधों की धमकी दी है, लेकिन साढ़े तीन साल से चल रहे संघर्ष को खत्म करने की उम्मीद में ऐसा करने से परहेज करते रहे हैं। पिछले हफ्ते पुतिन के साथ बातचीत के बाद ऐसा लगने लगा था कि चीजें सही दिशा में आगे बढ़ेंगी। बुडापेस्ट में एक बैठक का प्रस्ताव भी रखा गया था। हालाँकि, मंगलवार को ट्रंप ने कहा कि वह एक ‘व्यर्थ की बैठक’ नहीं चाहते, जिससे शिखर सम्मेलन आखिरकार स्थगित हो गया।
इस बीच प्रतिबंधों की घोषणा के बाद कच्चे तेल की कीमतों में तुरंत उछाल आया, और अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड गुरुवार को 3% बढ़कर 64 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर कारोबार कर रहा था।