नई दिल्ली: अमेरिका में एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने जा रहे हैं। यह दूसरी बार है जब ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे। जाहिर है ट्रंप के आने के बाद अमेरिकी कूटनीति में भी कुछ बदलाव नजर आ सकते हैं। इससे पहले ट्रंप 2017 से 2021 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे। इस दौरान भारत और अमेरिका के रिश्ते किस ओर आगे बढ़े…कितने करीब और कितने दूर रहे ये दोनों देश, आईए इसे जानने की कोशिश करते हैं।
रक्षा, उर्जा क्षेत्र में बढ़ा सहयोग
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति के रूप में पहले कार्यकाल के दौरान भारत और अमेरिका के रिश्तों में पहले से ज्यादा सुधार नजर आया। दोनों देश पहले से कहीं अधिक करीब आ गए थे।
ट्रंप के सत्ता संभालने के छह महीने बाद जून 2017 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने व्हाइट हाउस का दौरा किया था। इस बैठक के दौरान, ट्रंप ने मोदी से वादा किया कि वह अपने कार्यकाल के दौरान भारत का दौरा करेंगे। यह उन्होंने तीन साल बाद पूरा किया, जब उन्होंने अहमदाबाद के नवनिर्मित नरेंद्र मोदी स्टेडियम में हजारों लोगों को संबोधित किया।
दोनों नेताओं के बीच 2017 से 2020 के बीच कई बार मुलाकात हुई। इसका सीधा नतीजा ट्रंप प्रशासन के आतंकवाद पर भारत को मजबूत समर्थन में दिखा। अमेरिका ने 2019 में पुलवामा हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) द्वारा जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी के रूप में घोषित करने का समर्थन किया। साथ ही अमेरिका ने 2018 में फाइनेंसिसयल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा पाकिस्तान को ग्रे-लिस्ट में डालने का भी समर्थन किया।
साल 2019 में अमेरिका से भारत की रक्षा खरीद सालाना 18 बिलियन डॉलर (1518 अरब रुपये) तक पहुंच गई। भारत सामरिक व्यापार प्राधिकरण (एसटीए, Strategic Trade Authorization) लाइसेंस एक्सेपसन में ऊपर उठकर टियर 1 में पहुंच गया था। इससे भारत के लिए उच्च स्तरीय अमेरिकी रक्षा प्रौद्योगिकियों का रास्त खुल गया। इससे देश की सैन्य तैयारियों में सुधार हुआ और रक्षा अधिग्रहण में विविधता आई।
इस बढ़े हुए सहयोग का प्रभाव इस बात से भी साफ दिखता है कि कैसे अप्रैल-मई 2020 में भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में झड़प के दौरान नई दिल्ली और वाशिंगटन ने सहजता से खुफिया जानकारी साझा की।
ऊर्जा क्षेत्र भी ऐसा क्षेत्र रहा जिसमें ट्रम्प 1.0 के दौरान भारत-अमेरिका संबंध बढ़े। ट्रम्प के कार्यकाल में अप्रैल 2018 में द्विपक्षीय रणनीतिक ऊर्जा साझेदारी की शुरुआत हुई, जिसमें भारत ने अमेरिका से कच्चे तेल और एलएनजी का आयात करना शुरू किया। केवल दो वर्षों में इस आयात का मूल्य शून्य से बढ़कर आज 6.7 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। इससे अमेरिका अब भारत का हाइड्रोकार्बन आयात का छठा सबसे बड़ा स्रोत बन गया है।
चुनौतियां और विवाद भी आए सामने
ट्रंप के कार्यकाल में भारत और अमेरिका कई मुद्दों पर जरूर करीब आए लेकिन कुछ मुश्किलें भी सामने आईं। ऊर्जा साझेदारी पर हस्ताक्षर हुए क्योंकि ट्रंप ने बेहद जोरदार तरीके से भारत को ईरान से तेल खरीद को रोकने पर मजबूर किया। ट्रंप इस शर्त पर टिके रहे कि वह इससे पीछे नहीं हटेंगे।
भारत के साथ ट्रंप की एक और नाराजगी टैरिफ व्यवस्था को लेकर थी। अमेरिका के भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनने और 2016-18 के बीच वस्तुओं और सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार प्रति वर्ष 10% से अधिक बढ़कर 142 बिलियन डॉलर तक पहुंचने के बावजूद, ट्रंप हमेशा भारत से बेहतर टैरिफ की बात करते हैं। यह मुद्दा उस समय भी और चर्चा में रहा जब ट्रंप ने मांग कर दी कि भारत में हार्ले डेविडसन बाइक पर टैरिफ माफ किया जाए।
इसके अलावा आप्रवासन (इमिग्रेशन) को लेकर ट्रंप का रुख भी भारत को परेशान करने वाला रहा। यहां तक कि एच1-बी वीजा का मामला भी दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में कुछ खटास लेकर आया।
इसके अलावा ट्रंप के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच शायद सबसे बड़ा विवाद तब आया जब उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच मध्यस्थता की पेशकश की। भारत कभी भी तीसरे पक्ष को इसमें शामिल नहीं करने करने पर अड़ा रहा है।
कुछ ही महीने पहले ट्रंप ने चुनाव अभियान के दौरान तो यह भी कह दिया कि पीएम मोदी ने उनसे भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने के लिए कहा था। ट्रंप के बयान से तुरंत ही व्हाइट हाउस पीछे हट गया था और कहा गया कि वाशिंगटन केवल तभी मध्यस्थता करने के लिए तैयार होगा जब दोनों पक्ष चाहें।
चीन से दोनों का 36 का आंकड़ा
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान पूरी दुनिया में चीन को एक रणनीतिक खतरे और प्रतिद्वंद्वी के रूप में मजबूती से स्थापित करने की कोशिश की। यह भी उनके कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों के लिए करीब आने की एक वजह बना। उन्होंने न केवल भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के क्वाड समूह को पुनर्जीवित किया, बल्कि ट्रंप ने इंडो-पैसिफिक में चीन के आक्रामक व्यवहार का सामना करने के लिए रणनीति भी बनाई।