Tuesday, November 18, 2025
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विरासतनामा: दिल्ली की रगों में बहते रंग- लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट

लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट में जब आप चलते हैं, तो हर दीवार पर एक कहानी बोलती मिलती है। कहीं किसी कलाकार ने लोक-कला को आधुनिक रंगों में पिरोया है, कहीं किसी ने शहर की सड़क के दृश्य को अनोखी शैली में जीवित कर दिया है।

दिल्ली के दिल में एक ऐसी जगह है जहाँ चलते-चलते अचानक लगता है कि आप रोज़मर्रा की गलियों में नहीं, बल्कि किसी खुली आसमान वाली कला-प्रदर्शनी में पहुँच गए हैं। एक मोड़ मुड़ते ही दीवारें, जिन पर कभी सिर्फ़ सरकारी क्वार्टरों के नंबर लिखे होते थे, अब विशाल रंग-चित्रों से जगमगाती दिखती हैं; जैसे शहर की दीवारों ने खुद बोलना सीख लिया हो। यह जगह है लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट।

लोधी कॉलोनी में बनाया गया यह आर्ट डिस्ट्रिक्ट, वॉल-आर्ट का नया पता है। लेकिन इस पते पर कला अचानक नहीं आई, बल्कि 2015-16 के आसपास St+art India Foundation और सरकारी एजेंसियों के साझे प्रयास से एक सपने की तरह उभरी। ऐसा सपना जो कहता है कि “कला सिर्फ़ संग्रहालयों की चीज़ नहीं, यह हर नागरिक का हक़ है और शहर की दीवारें इसका सबसे बड़ा कैनवास हैं।”

कभी ये इलाका सिर्फ़ सरकारी आवासों का शांत हिस्सा था। सरल-सीधी दीवारें, दफ्तर से लौटते बाबू और शाम को धीमे-धीमे बुझती बत्तियाँ। पर फिर आई यह कम्युनिटी ब्यूटीफ़िकेशन परियोजना, जिसने इन दीवारों को कला के ऐसे कैनवास में बदल दिया कि पूरा मोहल्ला एक लिविंग आर्टस्केप बन गया: एक ऐसी खुली कला-गैलरी जिसे टिकट या समय की नहीं, सिर्फ आपकी जिज्ञासा की ज़रूरत है।

और इसकी कहानी सिर्फ़ रंगों की नहीं, समय की भी है। लोधी कॉलोनी और उसके आसपास की हवा में इतिहास पलता है। कुछ ही कदमों पर फैले लोधी गार्डन के सल्तनत-युग के मकबरे शहर के पुराने अध्यायों की तरह खड़े हैं। वहीं दूसरी ओर आधुनिकतावादी सरकारी इमारतें हैं, जिन्होंने 20वीं सदी के दिल्ली के शहरी चरित्र को आकार दिया। इन दोनों दुनियाओं के ठीक बीचोबीच उभर आया यह रंगीन इलाका, जैसे इतिहास और आधुनिकता के बीच झूलता एक कलात्मक पुल।

लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट में जब आप चलते हैं, तो हर दीवार पर एक कहानी बोलती मिलती है। कहीं किसी कलाकार ने लोक-कला को आधुनिक रंगों में पिरोया है, कहीं किसी ने शहर की सड़क के दृश्य को अनोखी शैली में जीवित कर दिया है। 50 से ज़्यादा भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कलाकारों ने मिलकर इस जगह को वह पहचान दी जिसे आज दुनिया “भारत की पहली ओपन-एयर आर्ट डिस्ट्रिक्ट” के नाम से जानती है। यह जगह ग्रैफ़िटी, म्यूरल, वॉल पेंटिंग, हर तरह की कला का नया पता बन गई है।

सुबह और शाम यहाँ का माहौल कुछ अलग ही होता है। कैमरों की क्लिक-क्लिक, फोटो-वॉक के छोटे-छोटे ग्रुप, कुछ कॉलेज के छात्र सोशल मीडिया के लिए वीडियो बनाते हुए, कुछ पर्यटक हर पेंटिंग के सामने रुककर उसकी कहानी समझते हुए। कई गाइडेड स्ट्रीट-आर्ट वॉक भी होते हैं, जो दीवारों के पीछे छिपे विचार, कलाकारों की पृष्ठभूमि और समुदाय पर पड़े असर की कहानियाँ सुनाते हैं।

इन गलियों में कला सिर्फ़ सजावट नहीं करती, वह आसपास रहने वाले लोगों के लिए भी अपनी पहचान का हिस्सा बन चुकी है। वे गर्व से बताते हैं कि उनका इलाका अब दिल्ली के सांस्कृतिक नक्शे पर एक अहम ठिकाना बन गया है। और कहीं न कहीं यही इस पूरी परियोजना की सफलता का मूल है कम्युनिटी यानि स्थानीय समुदाय को कला के साथ जोड़ना।

लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट की तुलना दुनिया के कुछ प्रसिद्ध कला-स्थलों से भी की जाती है। जैसे न्यूयॉर्क का Welling Court Mural Project, जिसने एक साधारण मोहल्ले की शक्ल बदल दी; गोवा का Fontainhas, जहाँ पुर्तगाली रंग-रूप खुद एक जीवित कला-गैलरी बन जाते हैं; पॉन्डिचेरी का French Quarter, जिसकी इमारतों के रंग और बनावट खुद एक कहानी सुनाते हैं; और लंदन का Shoreditch, जिसे दुनिया का स्ट्रीट-आर्ट हब कहा जाता है।

इन सभी की तरह, लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट भी दिखाता है कि कैसे पब्लिक आर्ट किसी शहर की आत्मा को नई चमक दे सकती है। यह पर्यटकों को खींचती है, समुदाय को आपस में जोड़ती है, शहर को सुंदर बनाती है और रोज़मर्रा की थकान को कुछ देर के लिए कला के रंगों में डुबो देती है।

लेकिन हर सुंदर चीज़ की तरह इसे सँभाले रखना ज़िम्मेदारी भी है। दुनिया के कई आर्ट डिस्ट्रिक्ट्स में देखा गया है कि कला आने के बाद जगह महँगी हो जाती है, और स्थानीय समुदाय दब जाता है। लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट के लिए भी ज़रूरी है कि यह संतुलन बना रहे; कला सभी के लिए रहे और जो लोग यहाँ रहते हैं, उनकी हिस्सेदारी और उनकी आवाज़ भी इन रंगों के बीच जीवित रहे।

आख़िरकार, लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट हमें याद दिलाता है कि विरासत सिर्फ़ पत्थरों और गुंबदों तक सीमित नहीं। विरासत वो भी है जो ‘आज’ हम बनाते हैं, जैसे दीवारों पर उभरती नई कल्पनाएँ, शहर के बीच खुली हवा में बसी कला और वह अनुभव, जो हर राहगीर को थोड़ी देर के लिए रोक लेता है।

अगली बार जब आप इन गलियों से गुज़रें, तो किसी एक दीवार के सामने थोड़ी देर रुकिए। आप पाएँगे कि हर रंग, हर स्ट्रोक, हर आकृति आपको कुछ कहना चाहती है: दिल्ली की रफ़्तार, उसकी सांसें और उसकी कहानी…रंगों की भाषा में।

ऐश्वर्या ठाकुर
ऐश्वर्या ठाकुर
आर्किटेक्ट और लेखक; वास्तुकला, धरोहर और संस्कृति के विषय पर लिखना-बोलना।
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