Saturday, November 1, 2025
Homeभारतदिल्ली दंगा केस में सुनवाई के दौरान शरजील, उमर खालिद और गुलफिशा...

दिल्ली दंगा केस में सुनवाई के दौरान शरजील, उमर खालिद और गुलफिशा फातिमा ने SC में क्या कुछ कहा?

दिल्ली पुलिस ने खालिद, इमाम और फातिमा को दिल्ली दंगों से जुड़े बड़े षड्यंत्र के मामले में कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आपराधिक षड्यंत्र के आरोपों में गिरफ्तार किया था।

नई दिल्ली: 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में छात्र कार्यकर्ताओं और जेएनयू के पूर्व छात्रों शरजील इमाम, उमर खालिद और गुलफिशा फातिमा ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उनके खिलाफ हिंसा से जुड़ा कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है और उन पर लगाए गए साजिश के आरोप निराधार हैं।

उमर खालिद ने अदालत में कहा, “751 एफआईआर में से मेरा नाम सिर्फ एक में है। अगर यह कोई बड़ी साजिश थी, तो यह बात अपने आप में अजीब है। मेरे खिलाफ हिंसा का कोई सबूत नहीं है।”

कपिल सिब्बल ने खालिद की तरफ से क्या दलील दी?

खालिद ने न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट में 26 तारीखों पर सुनवाई समयाभाव के कारण नहीं हो सकी और 59 तारीखों पर विशेष लोक अभियोजक की अनुपलब्धता के कारण मामला आगे नहीं बढ़ पाया।

कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को उस मामले में आरोपी कैसे बनाया जा सकता है जब दंगे हुए तब वह दिल्ली में मौजूद ही नहीं थे। सिब्बल ने कहा कि खालिद के खिलाफ हिंसा के लिए हथियार या आपत्तिजनक सामग्री बरामद होने का कोई आरोप नहीं है। उन्होंने कहा, “खालिद पर हिंसा के लिए कोई फंड जुटाने या हिंसा की अपील करने का कोई आरोप नहीं है। उनके खिलाफ एकमात्र कथित प्रत्यक्ष कार्य 17 फरवरी को महाराष्ट्र के अमरावती में दिया गया उनका भाषण है।”

अदालत ने मामले की सुनवाई सोमवार, 3 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी है ताकि अन्य सह-अभियुक्तों- मीरन हैदर, मोहम्मद सलीम खान और शिफा उर रहमान तथा दिल्ली पुलिस की ओर से दलीलें सुनी जा सकें।

पुलिस ने खालिद, इमाम और फातिमा को दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश में शामिल बताते हुए यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) और आईपीसी की आपराधिक साजिश की धाराओं में गिरफ्तार किया था।

‘5 साल से जेल में, मुकदमा शुरू ही नहीं हुआ

गुलफिशा फातिमा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत को बताया कि वह 11 अप्रैल 2020 से यानी पांच साल से ज्यादा समय से जेल में हैं। उन्होंने कहा, “चार्जशीट सितंबर 2020 में दाखिल हुई थी, लेकिन हर साल एक नई पूरक चार्जशीट दी जा रही है। क्या इसे अनंत काल तक जारी रखा जा सकता है?”

सिंघवी ने आगे कहा, “अब तक आरोप तय भी नहीं हुए हैं, गवाहों की संख्या 800 से ज्यादा है। यह न्याय प्रणाली का विकृतिकरण है। आजादी का मतलब है कि बिना मुकदमे के किसी को सालों जेल में नहीं रखा जा सकता।”

शरजील इमाम के वकील ने क्या दलीलें दी?

शरजील इमाम का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने तर्क दिया कि इमाम को साजिश के लिए उत्तरदायी कैसे ठहराया जा सकता है, जबकि दंगे होने से लगभग एक महीने पहले, वह 25 जनवरी, 2020 से ही अन्य मामलों में हिरासत में थे। दवे ने बताया कि इमाम पर कथित भड़काऊ भाषणों से जुड़े अन्य मामलों में जमानत मिल चुकी है, और वह केवल इस मामले (यूएपीए) के कारण जेल में हैं।

सिद्धार्थ दवे ने कहा कि पुलिस सितंबर 2024 तक पूरक चार्जशीट दाखिल करती रही, जिससे साफ है कि जांच ही चार साल तक चलती रही।

इमाम ने 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जब दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसी तरह, उमर खालिद ने भी 10 सितंबर को हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

गौरतलब है कि फरवरी 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध के बीच उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में 53 लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों घायल हुए थे।

पुलिस के मुताबिक, इमाम ने दंगे भड़काने की बड़ी साजिश रची थी। उन्हें 28 जनवरी 2020 को बिहार के जहानाबाद से गिरफ्तार किया गया था। उनके खिलाफ दिल्ली के अलावा यूपी, असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में भी कई केस दर्ज हैं।

दिल्ली हाई कोर्ट ने 2 सितंबर को नौ अभियुक्तों, जिनमें खालिद और इमाम शामिल हैं, की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि प्रदर्शन के नाम पर साजिशन हिंसा बर्दाश्त नहीं की जा सकती।

इसी केस में अभियुक्त अन्य लोगों में मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, आतहर खान, मीरन हैदर, अब्दुल खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद शामिल हैं।

सिंघवी ने अदालत से कहा, “फातिमा इस केस में अब अकेली महिला है जो जेल में है। बाकी सभी को जमानत मिल चुकी है। अगर छह या सात साल बाद जमानत मिलती है, तो न्याय का क्या अर्थ रह जाता है? अदालत सोमवार को इस मामले की अगली सुनवाई करेगी।

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.com
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments

प्रताप दीक्षित on कहानीः प्रायिकता का नियम
डॉ उर्वशी on कहानीः इरेज़र
मनोज मोहन on कहानीः याद 
प्रकाश on कहानीः याद 
योगेंद्र आहूजा on कहानीः याद 
प्रज्ञा विश्नोई on कहानीः याद 
डॉ उर्वशी on एक जासूसी कथा