नई दिल्लीः दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार, 12 नवंबर को दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएम मोदी की स्नातक डिग्री के विवरण के खुलासे से संबंधित आदेश को चुनौती देने वाली अपील दायर करने में देरी के लिए माफी मांगने वाली याचिकाओं पर जवाब देने को कहा है।
दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने विश्वविद्यालय को याचिकाओं पर आपत्ति दर्ज कराने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा?
पीठ को बताया गया कि एकल न्यायाधीश के अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली अपीलें दायर करने में देरी हुई है। भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता प्रतिवादी (दिल्ली विश्वविद्यालय) की ओर से पेश हुए। देरी के लिए माफी मांगने वाले आवेदनों पर आपत्ति तीन सप्ताह के भीतर दर्ज की जा सकती है।
पीठ ने कहा, “यदि कोई आपत्ति हो तो अपीलकर्ताओं द्वारा दो सप्ताह के भीतर उस पर जवाब दाखिल किया जाए।” अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी 2026 को तय की है।
गौरतलब है कि एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए चार अपीलें दायर की गई हैं जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री का खुलासा करने के निर्देश देने वाले केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के फैसले को रद्द कर दिया गया था।
खंडपीठ आरटीआई कार्यकर्ता नीरज, आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह और अधिवक्ता मोहम्मद इरशाद द्वारा दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी।
इससे पहले 25 अगस्त को एकल न्यायाधीश ने सीआईसी के आदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सिर्फ इसलिए कि प्रधानमंत्री मोदी सार्वजनिक पद पर हैं उनकी सारी “व्यक्तिगत जानकारी” सार्वजनिक नहीं की जा सकती।
न्यायालय ने मांगी गई सूचना में किसी भी प्रकार के “अंतर्निहित जनहित” की संभावना को खारिज कर दिया था और कहा था कि आरटीआई अधिनियम सरकारी कामकाज में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था न कि “सनसनीखेज खबरें फैलाने के लिए।”
ज्ञात हो कि नीरज नामक व्यक्ति द्वारा आरटीआई आवेदन के बाद सीआईसी ने 21 दिसंबर, 2016 को 1978 में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों के अभिलेखों के निरीक्षण की अनुमति दे दी – जिस वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
एकल न्यायाधीश ने छह याचिकाओं पर संयुक्त आदेश पारित किया था जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा दायर याचिका भी शामिल थी। इसमें सीआईसी को चुनौती दी गई थी जिसके द्वारा विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री मोदी की स्नातक डिग्री से संबंधित विवरण का खुलासा करने का निर्देश दिया गया था।
दिल्ली विश्वविद्यालय के वकील ने क्या कहा था?
दिल्ली विश्वविद्यालय के वकील ने सीआईसी के आदेश को रद्द करने की मांग की थी लेकिन कहा था कि विश्वविद्यालय को अदालत को अपने रिकॉर्ड दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है।
एकल न्यायाधीश ने कहा था कि किसी भी सार्वजनिक पद पर आसीन होने या आधिकारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए शैक्षिक योग्यताएं किसी भी वैधानिक आवश्यकता की प्रकृति की नहीं हैं।
न्यायाधीश ने कहा था कि यदि किसी विशिष्ट सार्वजनिक पद के लिए शैक्षणिक योग्यताओं की अपेक्षा होती तो स्थिति भिन्न हो सकती थी। उन्होंने सीआईसी के दृष्टिकोण को “पूरी तरह से गलत” बताया था।
हाई कोर्ट ने सीआईसी के उस आदेश को भी खारिज कर दिया था जिसमें सीबीएसई को पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के कक्षा 10 और 12 के रिकॉर्ड की प्रतियां उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था।

