दिल्ली में लाल किले के पास कार धमाका मामले में हरियाणा के फरीदाबाद स्थित अल फलाह यूनिवर्सिटी जांच एजेंसियों के रडार पर है। मंगलवार सुबह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अल फलाह यूनिवर्सिटी और उसके ट्रस्टियों से जुड़े कुल 25 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी शुरू की। यह कार्रवाई सुबह लगभग 5 बजे हुई। ईडी ने फिलहाल आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि जांच वित्तीय लेन-देन, संदिग्ध फंडिंग और परिचालन संबंधों पर केंद्रित है।
छापेमारी दिल्ली के ओखला स्थित मुख्यालय, फरीदाबाद कैंपस और ट्रस्टियों के आवासों और कार्यालयों तक फैली हुई है। दस्तावेजों की जांच और जब्ती जारी है। एजेंसी को संदेह है कि यूनिवर्सिटी के संचालन में बड़ी वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं और संभव है कि इसी नेटवर्क से आतंक से जुड़े लेन-देन भी किया गया हो।
धमाके के बाद अल फलाह यूनिवर्सिटी जांच के केंद्र में क्यों आई
10 नवंबर को लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास कार में विस्फोट हुआ था, जिसमें 10 लोगों की मौत और कई लोग घायल हुए थे। हमले की अब तक की जांच में सामने आया है कि यह एक आतंकी मॉड्यूल द्वारा रचा गया प्लान था। इसी के बाद अल फलाह यूनिवर्सिटी अचानक रडार पर आ गई। जांच में इस बात के संकेत मिले हैं कि धमाके की साजिश यहीं से रची गई थी। हालांकि, यूनिवर्सिटी का कहना है कि कैंपस का किसी भी आतंकी गतिविधि से कोई संबंध नहीं है।
हमले में व्हाइट कॉलर मॉड्यूल का खुलासा हुआ है। यह नेटवर्क पूरे देश में सक्रिय है। हमले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) खुलासा किया है कि संदिग्ध सुसाइड बॉम्बर उमर नबी और डॉक्टर मोजम्मिल गनई, जो आतंकी मॉड्यूल का हिस्सा थे, अल फलाह मेडिकल रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े थे। दोनों के खिलाफ ठोस सबूत मिल चुके हैं और गिरफ्तारी भी हो चुकी है।
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जांच के दायरे में सिद्दीकी परिवार, कई बातें आई सामने
इधर, यूनिवर्सिटी के संस्थापक और चेयरमैन जावेद अहमद सिद्दीकी फिलहाल ईडी और दिल्ली पुलिस दोनों के निशाने पर हैं। उन्हें दिल्ली बम केस में समन भेजा गया था, लेकिन वे पेश नहीं हुए। सूत्रों के अनुसार, ईडी अब यह जांच भी कर रहा है कि इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी खड़ी करने के लिए करोड़ों रुपये कहां से आए, जबकि वे पहले धोखाधड़ी के मामलों में जेल जा चुके हैं।
सिद्दीकी परिवार की जड़ें मध्य प्रदेश के मऊ से जुड़ी हैं। वहां कायस्थ मोहल्ला में स्थित उनके पुश्तैनी घर को लोग मौलाना बिल्डिंग के नाम से जानते हैं। परिवार के मुखिया मोहम्मद हम्माद सिद्दीकी कभी शहर के काजी हुआ करते थे। लेकिन अब इसी परिवार पर शक की सुई घूम रही है।
जांच में पता चला है कि 1990 के दशक में परिवार ने एक अल-फलाह इन्वेस्टमेंट कंपनी शुरू की थी। स्थानीय सेना अधिकारियों, इंजीनियरों और दुकानदारों ने उसमें निवेश किया, लेकिन स्टॉक मार्केट क्रैश होने के बाद कंपनी डूब गई। भारी दबाव बढ़ा तो सिद्दीकी परिवार मध्य प्रदेश छोड़कर 2001 में दिल्ली आ गया।
इसके बाद जावेद सिद्दीकी ने अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया और उसी ट्रस्ट के जरिए अल फलाह यूनिवर्सिटी की स्थापना की। बताया जा रहा है कि करीब 3 लाख रुपये अब भी निवेशकों के बकाया हैं, जिनकी वसूली के लिए पुराने केस फिर खोल दिए गए हैं। जावेद के भाई हामूद अहमद सिद्दीकी को हाल ही में हैदराबाद से गिरफ्तार भी किया गया है।
संदिग्ध फंडिंग की एक लंबी चेन
फिलहाल ईडी को शक है कि यह सिर्फ वित्तीय अनियमितता का मामला नहीं, बल्कि संदिग्ध फंडिंग की एक लंबी चेन हो सकती है, जिसकी कड़ियां दिल्ली धमाके से जुड़ती हैं। धमाके के बाद से ही अल फलाह यूनिवर्सिटी जांच के केंद्र में है। एजेंसी का मानना है कि अगर दस्तावेज और डिजिटल रिकॉर्ड मिलते हैं तो जांच कई और राज्यों तक पहुंच सकती है।
सूत्रों का कहना है कि यह केस अब सिर्फ एक ब्लास्ट की जांच नहीं रहा, बल्कि एक बड़े ‘व्हाइट कॉलर नेटवर्क’ का खुलासा भी कर सकता है, जिसकी जड़ें शिक्षा, निवेश और आतंक- तीनों से जुड़ती हुई दिख रही हैं।
इस बीच एनआईए ने दो दिन में हमले से जुड़े दो आतंकियों को गिरफ्तार किया है। एजेंसी ने कश्मीर के अनंतनाग जिले के काजीगुंड निवासी 20 वर्षीय जसीर बिलाल वानी उर्फ दानिश को गिरफ्तार किया है। जसीर बिलाल इस हमले का सक्रिय सह-षड्यंत्रकारी था और उसने आतंकवादी उमर उन नबी के साथ मिलकर इस आतंकी नरसंहार की योजना बनाई थी।
इससे पहले रविवार को एनआईए ने अमीर रशीद अली को गिरफ्तार किया था, जो उस कार का मालिक था जिससे धमाका किया गया। आमिर उस कार को खरीदने में मदद करने के लिए दिल्ली आया था, जिसका इस्तेमाल विस्फोट करने के लिए वाहन-आधारित इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) के रूप में किया गया था।

