बोलते बंगले: पंडित दीन दयाल उपाध्याय की शव यात्रा क्यों निकली थी अटल जी के घर से

दीन दयाल उपाध्याय की मुगल सराय में हत्या की खबर फैलते ही सैकड़ों लोग दिल्ली में 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड के आसपास एकत्र हो गए। वहां पर दीन दयाल जी का शव ड्राइंग रूम में रखा जाता है। अगले दिन यहीं से शव यात्रा निकाली गई।

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Photograph: (X/Social Media)

आप इंडिया गेट या फिर संसद भवन से राजेन्द्र प्रसाद रोड में तीन-चार मिनट में पहुंच सकते हैं। यहां बहुत सारे सरकारी बंगले हैं। ये सांसदों और भारत सरकार के आला अफसरों को आवंटित होते हैं। पर 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड का बंगला अपने आप में विशेष है। इसकी वजह जानना चाहेंगे ? दरअसल ये बंगला 1960 के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी को आवंटित हुआ था। इधर से ही जनसंघ (वर्तमान भारतीय जनता पार्टी का पूर्ववर्ती) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 12 फरवरी 1968 को शवयात्रा निकली थी।

दरअसल पंडित दीन दयाल उपाध्याय अपने राजधानी प्रवास के दौरान अटल जी के साथ ही रहा करते थे। एक तरह से यह उनका आवास ही हो गया था।  

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जनसंघ के शिखर नेता पंडित उपाध्याय की भतीजी डॉ. मधु शर्मा ने अपनी किताब पंडित दीन दयाल उपाध्याय एक राजनीति की पाठशाला में लिखा है कि उनके पिता श्री प्रभु दयाल अपने अग्रज से मिलने दिल्ली गए थे। यह बात 11 फरवरी 1968 की है। वे जब 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड में भोजन कर रहे थे तब एक फोन आया। फोन अटल जी के सेवक बिरजू ने उठाया। उसे बताया गया कि दीनदयाल जी की हत्या हो गई है। इसके बाद बिरजू ने किसी तरह से यह जानकारी अटल जी को दी। अटल जी उस वक्त संसद भवन गए हुए थे। 

कहां से निकली थी शवयात्रा

दीन दयाल जी की मुगल सराय में हत्या की खबर फैलते ही सैकड़ों लोग 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड के आसपास एकत्र हो जाते हैं। वहां पर दीन दयाल जी का शव ड्राइंग रूम में रखा जाता है। वहां पर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उप-प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और बाकी तमाम नेता पहुंचते हैं। अगले दिन यानी 12 फरवरी 1968 को दीन दयाल जी की शवयात्रा 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड से निकलती है निगम बोध घाट के लिए। विख्यात लेखक और रेलवे बोर्ड के मेंबर रहे डॉ  रविन्द्र कुमार  उस दौर में 15 जनपथ में रहते थे। वे बताते हैं कि दीन दयाल उपाध्याय जी शव यात्रा में शोकाकुल लोगों की भारी तादाद थी। उसमें अटल जी के अलावा बलराज मधोक, नानाजी देशमुख, विजय कुमार मल्होत्रा वगैरह शामिल थे।

दीन दयाल उपाध्याय का दिल्ली में प्रवास

दीन दयाल जी ने 1940 के दशक से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए सक्रिय रूप से काम करना शुरू किया और बाद में भारतीय जनसंघ के संगठनात्मक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय, जब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दिल्ली में इसकी नींव रखी, दीन दयाल उपाध्याय को उत्तर प्रदेश का महासचिव बनाया गया। इसके बाद, वे जनसंघ के राष्ट्रीय महासचिव (1953-1967) और फिर 1967 में अध्यक्ष बने। इस दौरान, दिल्ली उनके राजनीतिक और संगठनात्मक कार्यों का केंद्र रहा।

सादगी भरा जीवन

भाजपा के बिहार से पूर्व सांसद आर.के. सिन्हा ने उपाध्याय जी के साथ बिहार में काम किया था। वे बताते हैं कि उपाध्याय जी का  जीवन अत्यंत सादगी भरा था। वे व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं से दूर रहते थे और संघ के कार्यों के लिए समर्पित थे। उनकी आवश्यकताएँ न्यूनतम थीं— “दो धोती, दो कुरते और दो वक्त का भोजन” ही उनके लिए पर्याप्त था। वे अटल जी के  सरकारी आवास के एक कमरे में रहा करते थे। उनका जीवन घुमक्कड़ और कार्य-केंद्रित था। उपाध्याय जी का जीवन सादगी का प्रतीक था। उनके सहयोगी बताते हैं कि वे व्यक्तिगत संपत्ति या भौतिक सुखों के प्रति उदासीन थे।उपाध्याय जी दिल्ली में संघ की शाखाओं और कार्यकर्ताओं के साथ सक्रिय रूप से जुड़े थे। वे नियमित रूप से शाखाओं में भाग लेते थे और कार्यकर्ताओं के साथ विचार-विमर्श करते थे।

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30 राजेन्द्र प्रसाद रोड में रहते हुए, दीन दयाल जी ने भारतीय जनसंघ को एक मजबूत राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1952 के आम चुनाव में, उन्होंने नानाजी देशमुख के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार का नेतृत्व किया, जिसका समन्वय दिल्ली से भी होता था। उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित होने वाली पत्र-पत्रिकाओं जैसे राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, और स्वदेश की स्थापना और संचालन में योगदान दिया।  दिल्ली में रहते हुए, उपाध्याय जी ने अपने दर्शन एकात्म मानववाद (Integral Humanism) को विकसित किया, जो भारतीय जनता पार्टी की वैचारिक नींव बना। इस दर्शन को उन्होंने विभिन्न लेखों और भाषणों के माध्यम से दिल्ली और अन्य स्थानों पर प्रचारित किया।

संगठन और लेखन

जानकार बताते हैं कि  दिल्ली में रहते हुए, उपाध्याय जी ने साहित्यिक कार्य भी किया। उनकी रचनाओं में सम्राट चंद्रगुप्त, जगतगुरु शंकराचार्य, और भारतीय अर्थनीति शामिल हैं। ये रचनाएँ उनके दिल्ली प्रवास के दौरान लिखी या प्रकाशित हुई थीं। दीन दयाल  जी का अधिकांश समय संगठनात्मक कार्यों, लेखन, और यात्राओं में बीतता था।

आडवाणी भी 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड में

कहते हैं कि लाल कृष्ण आडवाणी भी जब 1960 के दशक में राजस्थान से दिल्ली शिफ्ट हुए तो वे काफी समय तक अटल जी के साथ उनके 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड के बंगले में रहा करते थे। आपको अब भी राजधानी में कुछ पत्रकार,जनसंघ या फिर भाजपा के नेता वगैरह मिल जाएंगे जो बताएंगे कि अटल बिहारी वाजपेयी का राजधानी दिल्ली में पहला घर 111 साउथ एवेन्यू था। 

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वाजपेयी दिल्ली से सन 1957 में रिश्ता कायम हो गया हो था। वे तब पहली बार भारतीय जनसंघ की टिकट पर बलरामपुर से लोकसभा  का चुनाव जीते थे। उन्हें तब साउथ एवेन्यू  में फ्लैट  अलॉट मिला था। यह फ्लैट राष्ट्रपति भवन के करीब है। इसके बाद वे 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड, 6 रायसीना रोड, फिर लोक कल्याण मार्ग स्थित  प्रधानमंत्री आवास और जिंदगी के आखिरी दिन तक 6-ए कृष्ण मेनन मार्ग के बंगले में रहे।

दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर मूरत

आप जब यमुना पार से आईटीओ पर पहुंचते हैं, तब सीधी सड़क दीनदयाल उपाध्याय मार्ग की ओर बढ़ती है। यहां ही सन 1973 में पंडित दीन दयाल उपाध्याय की एक मूरत स्थापित हुई। अब इसी सड़क पर भाजपा के राष्ट्रीय और दिल्ली प्रदेश के दफ्तर भी हैं। क्या इसे इत्तेफाक मानेंगे कि दीन दयाल उपाध्याय मार्ग गुजरे कुछेक सालों के दौरान भाजपा और उससे जुड़े संगठनों का गढ़ बन गया? इसी सड़क पर प्रवासी भवन, मालवीय स्मृति भवन, संस्कृत भारती भवन वगैरह भी हैं। 

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