बोलते बंगले: माउंट एवरेस्ट पर फतेह करने वाले तेनजिंग नोर्गे के दार्जलिंग वाले घर की कहानी

तेनजिंग नोर्गे ने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दार्जिलिंग में बिताया। दार्जिलिंग उनके लिए न केवल एक घर था, बल्कि एक ऐसी जगह भी थी जहां से उन्होंने अपने पर्वतारोहण के सपनों को साकार किया।

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आप जैसे ही खूबसूरत दार्जिलिंग में पहुंचते है, तो आपको अपने स्कूली जीवन का वो दौर याद आने लगता है जब आपने तेनजिंग नोर्गे और न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी के बारे में पढ़ा था। इन दोनों ने ही संसार की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतेह किया था। आप दार्जिलिंग शहर के मुख्य बाजार में क्लॉक टावर के पास एक यादव जी की पान की दुकान में जाकर तेनजिंग नोर्गे के घर के बारे में पूछताछ करते हैं। मूल रूप से छपरा से संबंध रखने वाले यादव जी आपको तेनजिंग नोर्गे के घर और उनके दार्जिलिंग से संबंधों के बारे में विस्तार से बताने लगते हैं। यादव जी का परिवार करीब 80 साल पहले दार्जिलिंग में बस गया था।  

तेनजिंग नोर्गे ने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दार्जिलिंग में बिताया। दार्जिलिंग उनके लिए न केवल एक घर था, बल्कि एक ऐसी जगह भी थी जहां से उन्होंने अपने पर्वतारोहण के सपनों को साकार किया।

तेनजिंग नोर्गे का घर दार्जिलिंग के टू सॉन्ग बस्ती (Too Song Busti) क्षेत्र में स्थित है, जो शहर के एक शांत और पारंपरिक शेरपा समुदाय से घिरे इलाके में है। यह स्थान दार्जिलिंग के मुख्य बाजार और पर्यटन क्षेत्रों से थोड़ा हटकर है। यहां पर पहुंचकर आपको सुकून का अहसास होता है। तेनजिंग का घर हिमालय की तलहटी में बसा हुआ है, जहां से कंचनजंगा की बर्फीली चोटियों का शानदार नजारा दिखाई देता है।

कैसा डिजाइन है घर का?

तेनजिंग का घर कोई बहुत भव्य नहीं है लेकिन मजबूत संरचना वाला है, जो स्थानीय पहाड़ी शैली को दर्शाता है। यह दो मंजिला मकान है, जिसमें लकड़ी और पत्थर का उपयोग प्रमुख रूप से किया गया है, जो इस क्षेत्र की ठंडी जलवायु के लिए उपयुक्त है। घर के ऊपरी हिस्से में एक छोटा संग्रहालय बनाया है, जहां तेनजिंग ने अपने पर्वतारोहण से जुड़े उपकरण, पदक, तस्वीरें और अन्य स्मृति-चिह्न प्रदर्शित किए थे। यह संग्रहालय उनके जीवन और उपलब्धियों का एक जीवंत दस्तावेज था, जो उनके प्रशंसकों और आगंतुकों के लिए खुला रहता था। हम इस घर की दीवारों को छूते हैं। कभी इन्हें तेनजिंग नोर्गे ने भी स्पर्श किया होगा।

Tenjing House

तेनजिंग के धार्मिक विश्वास

तेनजिंग के घर के शीर्ष पर एक बौद्ध गोम्पा (श्राइन) भी है, जो उनके धार्मिक विश्वासों और शेरपा संस्कृति से उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाता है। यह स्थान उनके लिए ध्यान और शांति का केंद्र था। घर के आसपास एक छोटा सा बगीचा भी है, जहां से हिमालय का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। दार्जिलिंग के जानकार जे.एस. गुरुंग ने बताया  कि  तेनजिंग 1930 के दशक में जब दार्जिलिंग आए, तो उन्होंने यहां शेरपा समुदाय के बीच अपना जीवन शुरू किया। एवरेस्ट की ऐतिहासिक चढ़ाई (29 मई, 1953) के बाद, जब वे दार्जिलिंग लौटे, तो यह घर उनकी प्रसिद्धि और सम्मान का प्रतीक बन गया। 

तेनजिंग अपने शुरुआती जीवन में दार्जिलिंग आए थे। किशोरावस्था में वह घर से भागकर पहले काठमांडू गए और फिर दार्जिलिंग पहुंचे। उस समय दार्जिलिंग ब्रिटिश अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण आधार था, जहां से हिमालय की चोटियों पर चढ़ाई की योजना बनाई जाती थी। 19 साल की उम्र में तेनजिंग ने दार्जिलिंग में शेरपा समुदाय के बीच अपना स्थायी निवास बनाया। उन्होंने यहां तुंगसुंग बस्ती में बस गए और यहीं से अपने पर्वतारोहण करियर की शुरुआत की।

कब मिलते थे प्रशंसकों से?

तेनजिंग नोर्गे ने वर्षों इस घर को एक मिलन स्थल के रूप में भी इस्तेमाल किया। वे रोजाना सुबह 10 बजे से शाम 4:30 बजे तक अपने संग्रहालय में मौजूद रहते थे, जहां वे आगंतुकों से मिलते और अपने अनुभव साझा करते थे।

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तेनजिंग के घर के सामने विवेक शुक्ला (इस आर्टिकल के लेखक)

तेनजिंग का दार्जिलिंग स्थित घर केवल एक आवास नहीं था, बल्कि यह उनकी यात्रा का प्रतीक था—एक साधारण शेरपा से लेकर विश्व प्रसिद्ध पर्वतारोही तक। यह घर उनकी सादगी, दृढ़ता और हिमालय के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है। दार्जिलिंग में उनकी विरासत को आज भी हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट, तेनजिंग रॉक, और उनके नाम पर रखे गए अन्य स्थानों के माध्यम से याद किया जाता है।

पर्वतारोहण करियर की शुरुआत

दार्जिलिंग में रहते हुए तेनजिंग को 1935 में अपनी पहली एवरेस्ट अभियान में शामिल होने का मौका मिला, जब उन्हें एरिक शिप्टन ने एक कुली (पोर्टर) के रूप में चुना। इसके बाद उन्होंने कई अभियानों में हिस्सा लिया, जिसने उन्हें एक कुशल पर्वतारोही के रूप में स्थापित किया। दार्जिलिंग उनके करियर का आधार बना। 1953 में एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने के बाद तेनजिंग ने दार्जिलिंग में ही अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बिताया। 

1954 में भारत सरकार ने हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट (HMI) की स्थापना की, और तेनजिंग इसके पहले फील्ड ट्रेनिंग निदेशक बने। यहाँ उन्होंने कई युवा पर्वतारोहियों को प्रशिक्षित किया और दार्जिलिंग को पर्वतारोहण प्रशिक्षण का एक बड़ा केंद्र बनाने में योगदान दिया।

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तस्वीर में तेनजिंग के पुत्र जामलिंग

तेनजिंग नोर्गे का निधन 9 मई 1986 को दार्जिलिंग में एक सेरेब्रल हेमरेज से हुआ। उनकी अंत्येष्टि दार्जिलिंग में हुई। उनके अंतिम संस्कार में सारा दार्जिलिंग शामिल था। यह जानकारी यहां के ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर के एक बुजुर्ग मुलाजिम थापा जी देते हैं। यहां के लोग उन्हें अपने नायक के रूप में देखते हैं, और उनकी विरासत यहाँ आज भी जीवित है।

संक्षेप में, दार्जिलिंग तेनजिंग नोर्गे के लिए सिर्फ एक निवास स्थान नहीं था, बल्कि उनकी पहचान, करियर और परिवार का केंद्र था।

तेनजिंग का परिवार

तेनजिंग ने दार्जिलिंग में ही शादी की। उनके बच्चे भी दार्जिलिंग में पले-बढ़े। यह शहर उनके परिवार का घर बन गया। तेनजिंग के पुत्र जामलिंग बहुत मशहूर पर्वतारोही हैं। तेनजिंग नोर्गे के पुत्र जामलिंग खुद भी एक अनुभवी पर्वतारोही हैं। उन्होंने 1996 में माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की थी। उनकी यह चढ़ाई 1996 के एवरेस्ट आपदा के दौरान हुए प्रसिद्ध IMAX अभियान का हिस्सा थी। वह एक लेखक और प्रेरक वक्ता  भी हैं। उन्होंने 'टचिंग माई फादर्स सोल' (Touching My Father's Soul) नामक पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने अपनी एवरेस्ट चढ़ाई और अपने पिता की विरासत के बारे में विस्तार से बताया है। 

आप कह सकते हैं कि वह एक पर्वतारोही, लेखक और अपने पिता की पर्वतारोहण विरासत को सम्मान देने वाले और आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति हैं।

दार्जिलिंग के रमाडा होटल में काम करने वाली मैनेजर मीरा ने कहा  दार्जिलिंग में तेनजिंग की उपस्थिति ने शेरपा समुदाय को वैश्विक पहचान दिलाई। उनकी उपलब्धियों ने इस क्षेत्र को पर्वतारोहण और पर्यटन के नक्शे पर स्थापित किया।

आप कह सकते हैं कि दार्जिलिंग तेनजिंग नोर्गे के लिए सिर्फ एक निवास स्थान नहीं था, बल्कि उनकी पहचान, करियर और परिवार का केंद्र था। यहाँ से शुरू हुई उनकी यात्रा ने उन्हें विश्व प्रसिद्धि दिलाई, और उनकी मृत्यु के बाद भी दार्जिलिंग उनकी स्मृतियों को संजोए हुए है।

दिल्ली में तेनजिंग नोर्गे के नाम पर सड़क कहां

देश की राजधानी में तेनजिंग नोर्गे और सर एडमंड हिलेरी के नामों पर सड़कें भी हैं। चाणक्यपुरी में तेनजिंग नोर्गे मार्ग है। भारत सरकार ने उन्हें 1959 में ‘पद्मभूषण’ देकर सम्मानित किया था।  इस बीच, सर एडमंड हिलेरी मार्ग भी चाणक्यपुरी में है। वे  1985-1989 के बीच न्यूजीलैंड के भारत में हाई कमिश्नर थे। यहां एडमंड हिलेरी के दफ्तर के दरवाजे पर्वतारोहियों, खिलाड़ियों, लेखकों वगैरह के लिए हमेशा खुले रहते थे। वे बेहद लोकप्रिय डिप्लोमेट थे। 

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हिलेरी से लोग एवरेस्ट को फतह करने के संस्मरण सुनने के लिए खासतौर पर मिलते थे। उनका सारा जीवन प्रेरणा देने वाला रहा। हिलेरी और मशहूर कमेंटेटर जसदेव सिंह मित्र थे। जसदेव सिंह की मार्फत ही इस लेखक को हिलेरी से मिलने के मौके मिले। वे बेहद शानदार शख्स थे। उनसे मिलकर लगता था कि किसी ने ऊर्जा का संचार कर दिया है। वे अपनी उपलब्धियों का बखान करने से बचते थे। वे बेहद कुलीन और सुसंस्कृत शख्स थे। वे भारत के मित्र सच्चे मित्र थे और बात-बात में तेनजिंग नोर्गे का जिक्र करते थे।

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