आप लुटियंस दिल्ली में पृथ्वीराज रोड के गोल चक्कर को पार करके एपीजे अब्दुल कलाम रोड (पहले औरंगजेब रोड) में दाखिल होते हैं। अभी आप अपनी कार का सेकिंड गियर लगाते ही हैं कि आपको सड़क के बायीं तरफ के एक बंगले के बाहर बड़ी संख्या में सुरक्षा कर्मी नजर आने लगते हैं। आपको इतनी चाक चौबंद सुरक्षा बहुत कम जगहों में मिलेगी। 

इस बंगले का एड्रेस है 3 एपीजे अब्दुल कलाम रोड। आप रूकिए और इसकी नेमप्लेट को गौर से देखिए। उस पर लिखा है ‘पटनायक-मेहता’। इसका संबंध ओडिशा के दो मुख्यमंत्रियों क्रमश: बीजू पटनायक और नवीन पटनायक से है। मेहता से आशय गीता मेहता से है, जो बीजू पटनायक की पुत्री थीं।

कब तक रहे उस बंगले में

नवीन पटनायक की जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा 3 एपीजे अब्दुल कलाम रोड में ही गुजरा। नवीन पटनायक दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) के किरोड़ीमल कॉलेज में पढ़े। नवीन पटनायक के किरोड़ीमल कॉलेज के दिनों के मित्र और समाजवादी नेता प्रो. राज कुमार जैन बताते हैं कि नवीन पटनायक बहुत रिजर्व किस्म के इंसान थे। उनके कुछ ही मित्र थे जिनके साथ वे रहा करते थे। ये 1960 के दशक के मध्य की बातें हैं। 

Naveen patnaik with parents
Photograph: (नवीन पटनायक अपने माता-पिता के साथ)

नवीन पटनायक अपने एपीजे कलाम रोड के बंगले से ही कॉलेज आते-जाते थे। लुटियंस दिल्ली का संभवत: यही एक एरिया है, जहां पर दो-तीन एकड़ के विशाल प्राइवेट बंगले काफी संख्या में हैं। इनकी कीमत 300 करोड़ रूपये से कम होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। ओडिशा की राजनीति में कूदने से पहले वे यहां पर ही रहते थे। उस दौरान उनका अधिकतर वक्त पढ़ने-लिखने में ही गुजरता था। उनके कुछ ही मित्र थे। वे तब कभी-कभार ही अपने गृह प्रदेश ओडिशा में जाया करते थे।

किसके पास जाते शांति निकेतन में

नवीन पटनायक अब भी दिल्ली आते हैं तो वे ठहरते अपने 3 एपेजी अब्दुल कलाम वाले बंगले में ही हैं। ओडिशा भवन में तो किसी मीटिंग में ही भाग लेने के किए जाते हैं। दिल्ली में ओडिशा के बहुत से पत्रकार बताते हैं कि राजधानी में वे अपने भाई प्रेम पटनायक के शांति निकेतन स्थित घर में अवश्य जाते हैं। दोनों में बहुत करीबी संबंध हैं।

किसने खरीदा था उस भव्य बंगले को

दरअसल 3 एपीजे अब्दुल कलाम रोड के बंगले को नवीन पटनायक के पिता और ओडिशा के कद्दावर नेता बीजू पटनायक ने 1960 के आसपास खरीदा था। उन्होंने यह बंगला पंजाब के एक राज परिवार से खरीदा था। बीजू पटनायक ओडिशा के दो बार मुख्यमंत्री रहे। पहली बार 23 जून 1961 से 2 अक्टूबर 1963 तक और दूसरी बार 5 मार्च 1990 से 15 मार्च 1995 तक। 

बीजू पटनायक के 1997 में निधन के बाद उनकी पत्नी ज्ञान पटनायक ने इसी बंगले में शिफ्ट कर लिया था। पहले वह ओडिशा में ही रहती थीं। उन्हें दिल्ली इसलिए भी सही लगती थी क्योंकि उनकी पंजाबी खुखरायण खत्री बिरादरी यहां पर ही थी। आप पूछ सकते हैं कि बीजू पटनायक ने दिल्ली की इतनी पॉश जगह में इतना शानदार बंगला कैसे खरीद लिया? उनके पास पैसा कहां से आया? उन्होंने जब इसके खरीदा होगा तब भी इस की कीमत चार-पांच करोड़ रूपये से कम नहीं होगी। 

Naveen patnaik

दरअसल कम लोगों को जानकारी है कि बीजू पटनायक एक कारोबारी भी थे। उन्होंने 1947 में कलिंग एयरलाइंस की स्थापना की थी। यह एयरलाइन उनकी विमानन के प्रति रुचि और उद्यमशीलता का परिणाम थी। कलिंग एयरलाइंस के बेड़े में डकोटा (DC-3) सहित लगभग एक दर्जन विमान शामिल थे, जो उस समय के प्रमुख परिवहन विमानों में से एक थे। यह एयरलाइन मुख्य रूप से भारत के विभिन्न हिस्सों में उड़ानें संचालित करती थी और बीजू पटनायक स्वयं एक कुशल पायलट होने के नाते इसके संचालन में सक्रिय भूमिका निभाते थे।

कलिंग एयरलाइंस ने 1947 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब बीजू पटनायक ने अपने डकोटा विमान का उपयोग इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता के लिए किया। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निर्देश पर, उन्होंने इंडोनेशियाई के नेता सुकर्णों को डच शासकों के चंगुल से बचाकर भारत लाने में मदद की। इस साहसिक कार्य के लिए उन्हें इंडोनेशिया का सर्वोच्च सम्मान 'भूमि पुत्र' और मानद नागरिकता प्रदान की गई थी। 

भारत सरकार ने 1953 में कलिंग एयरलाइंस को खरीद लिया और इसका इंडियन एयरलाइंस में विलय कर दिया, जो उस समय देश की प्रमुख सरकारी विमानन कंपनी थी। एविएशन सेक्टर के जानकारों के अनुसार, कलिंग एयरलाइंस के पास अपने चरम पर 14 विमान थे।

शादी के लिए कौन गया रावलपिंडी

बीजू पटनायक 1939 में ज्ञान जी से शादी करने ओडिशा से रावलपिंडी पहुंचे थे। आप जानते हैं कि अभी कुछ दिन पहले ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने रावलपिंडी पर हमला बोला था। अपने पति की तरह ज्ञान जी भी पायलट थीं। दरअसल दोनों की सफदरजंग एयरपोर्ट से चलने वाले दिल्ली फ्लाइंग क्लब में पायलट ट्रेनिंग के दौरान मित्रता हो गई थी। उसके बाद दोनों ने विवाह करने का निर्णय लिया था। ज्ञान जी शादी के बाद उड़िया सीख गई थीं। पर कहते हैं कि उनके पुत्र नवीन पटनायक को धारा प्रवाह उड़िया बोलना कभी  नहीं आया। हालांकि कहने वाले कहते हैं कि नवीन पटनायक ठीक-ठाक पंजाबी बोल लेते हैं।

कौन था वो बेखौफ पायलट

बीजू पटनायक की शख्सियत के कई आयाम थे। वे बेखौफ पायलट भी थे। जब अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी कबायलियों ने कश्मीर पर आक्रमण किया, तो स्थिति अत्यंत गंभीर हो गई थी। भारत सरकार ने कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद भारतीय सेना को हवाई मार्ग से भेजने का निर्णय लिया। बीजू पटनायक, जो एक कुशल पायलट थे, ने स्वेच्छा से इस मिशन में भाग लिया। उन्होंने 27 अक्टूबर 1947 की सुबह दिल्ली से श्रीनगर के लिए पहली डकोटा (DC-3) उड़ान भरी, जिसमें सिख रेजिमेंट की पहली टुकड़ी के सैनिक थे।

यह मिशन बेहद जोखिम भरा था क्योंकि श्रीनगर हवाई पट्टी पर दुश्मन का कब्जा हो सकता था। उन्होंने कम ऊंचाई पर उड़ान भरते हुए हवाई पट्टी का जायजा लिया और सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित की। बता दें कि

रावलपिंडी उस समय आक्रमणकारियों के लिए एक प्रमुख आधार और समन्वय केंद्र था। कबायली हमलावर, जिन्हें पाकिस्तानी सेना का समर्थन प्राप्त था, रावलपिंडी के रास्ते ही कश्मीर में दाखिल हुए थे और वहीं से उन्हें रसद और निर्देश मिल रहे थे। उनकी इस उड़ान ने कश्मीर को बचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कब से इजरायल एंबेसी

बीजू पटनायक के जीवनकाल में ही उनके आलीशान बंगले के एक हिस्से पर इजरायल एंबेसी शुरू हो गई थी। इजरायल एंबेसी के यहां होने से इधर दिन-रात बड़ी संख्या में सुरक्षा कर्मी तैनात रहते हैं। इतनी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था तो अन्य किसी एंबेसी की नहीं होगी। कहते हैं कि बीजू पटनायक के निधन के बाद उनके परिवार ने अपने बंगले के एक भाग को इजरायल एंबेसी को दे दिया।  

पटनायक परिवार ने दूसरा हिस्सा अपने पास ही रखा। इसके आसपास कई बार बम विस्फोट की घटनाएं भी हो चुकी हैं। इजराईल एंबेसी यहां पर आने से पहले बाराखंभा रोड के गोपालदास बिल्डिंग की छठी मंजिल में हुआ करती थी। इससे पहले शायद ही किसी देश की एंबेसी किसी गगनचुम्बी बिल्डिंग से काम करती हो।

कौन थीं ज्ञान पटनायक

ज्ञान साहनी का जन्म एक पंजाबी खुखरायण खत्री परिवार में हुआ था। वो शादी के बाद ज्ञान पटनायक हो गई थीं। उनके जीवन का अंतिम वक्त 3 एपीजे अब्दुल कलाम रोड में ही बीता। खुशवंत सिंह कहते थे कि “खुखरायण पंजाबी खत्रियों का एक गोत्र है, इसमें कोहली भी शामिल हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कोहली ही थे। इनके अलावा इसमें साहनी, घई, चंडोक, चड्ढा, आनंद, सब्बरवाल, सूरी, भसीन शामिल हैं। ये एक-दूसरे से वैवाहिक रिश्ते कायम करने को प्राथमिकता देती हैं।” 

खुखरायण समाज में हिन्दू और सिख दोनों हैं। ये सब पाकिस्तान के लाहौर, भेरा, रावलपिंडी, झेलम जैसे शहरों से से आए थे। ज्ञान पटनायक एक साहसी और प्रेरणादायक महिला थीं, जिन्होंने अपने समय में कई उल्लेखनीय कार्य किए। ज्ञान पटनायक भारत की पहली महिला पायलटों में से एक थीं और उन्होंने अपने पति बीजू पटनायक के साथ मिलकर कई साहसिक उड़ानें भरी थीं। वो एक कुशल पायलट थीं और उनके साहस और दृढ़ता की कहानियां प्रेरणादायक हैं।

Gyan Patnaik
Photograph: (ज्ञान पटनायक और बीजू पटनायक)

 ज्ञान पटनायक ने अपने परिवार को मजबूती प्रदान की और अपने बेटे नवीन पटनायक को नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया। नवीन पटनायक  ने अपनी मां के प्रभाव को कई बार स्वीकार किया है। ज्ञान पटनायक का व्यक्तित्व और उनके योगदान ने उनके परिवार और समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ा। जानकारों ने बताया कि ज्ञान पटनायक अपने घर में काम करने वालों को अपने परिवार का हिस्सा ही समझती थीं।

कौन थीं बेटी गीता मेहता

गीता मेहता (1943 - 16 सितंबर, 2023)  बीजू पटनायक और उनकी पत्नी ज्ञान पटनायक की बेटी थीं।  गीता मेहता एक प्रख्यात लेखिका, वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) फिल्म निर्माता और पत्रकार थीं। उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं में 'कर्मा कोला', 'स्नेक एंड लैडर्स', 'ए रिवर सूत्र', 'राज', और 'द इटरनल गणेशा' शामिल हैं। उनका जन्म 1943 में दिल्ली में हुआ। उन्होंने 1965 में प्रसिद्ध अमेरिकी प्रकाशक सोनी मेहता से विवाह किया। उनके एक बेटे हैं। 

Gita Patnaik
Photograph: (गीता पटनायक)

गीता मेहता ने अपनी लेखन शैली और भारतीय संस्कृति, परंपराओं, और आधुनिकता के बीच टकराव को दर्शाने वाली रचनाओं के लिए ख्याति प्राप्त की। गीता मेहता शादी के बाद भी दिल्ली में होती तो 3 एपीजे कलाम रोड के बंगले में ठहरतीं। गीता मेहता का निधन उनके पिता के घर में ही हुआ। वो 80 वर्ष की थीं। वो अपने भाई नवीन के साथ घनिष्ठ संबंध रखती थीं और समय-समय पर ओडिशा की यात्रा करती थीं।

अब आप जब कभी एपीजे अब्दुल कलाम रोड  से गुजरें तो एक बार पटनायक खानदान के बंगले को देखना ना भूलें।