क्या चोटी के लेखक सलमान रुश्दी को कभी दिल्ली के अपने शानदार बंगले में रहना नसीब होगा? एक अरसे से यह सवाल बना हुआ है कि ‘मिडनाइट चिल्ड्रन’ और ‘सेटेनिक वर्सेज’ जैसे चर्चित उपन्यासों के लेखक सलमान रुश्दी कभी उस दिल्ली में रहेंगे जिससे उनका परिवार का संबंध था। वे अपने पिता अनीस अहमद के राजधानी के पॉश फ्लैग स्टाफ रोड पर स्थित 4 नंबर के बंगले को लेने के लिये कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
यह करीब एक एकड़ में फैला हुआ है। इसके आगे बड़ा सा बगीचा है। इसमें ड्राइंग रूम के अलावा 5 अन्य कमरे हैं। राजधानी के सिविल लाइंस मेट्रो स्टेशन से कुछ ही दूर है फ्लैग स्टाफ रोड। सिविल लाइंस के ही एक एक घर में बाबा साहेब अँबेडकर ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष गुजारे थे।
रुश्दी के बगल में एक मुख्यमंत्री
दरअसल घने पेड़ों की हरियाली से लबरेज फ्लैग स्टाफ रोड के बंगले कई-कई एकड़ में फैले हैं। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सरकारी आवास भी फ्लैग स्टाफ रोड पर ही हैं। पर इधर का 4 नंबर का बंगला अपने आप में खास है। यह बंगला उपन्यासकार सलमान रुश्दी के पिता अनीस अहमद का रहा है। इसमें उनके माता-पिता और परिवार के बाकी सदस्य कई सालों तक रहे।
कौन थे सलमान रुश्दी के पिता
सलमान रुश्दी के पिता अनीस अहमद दिल्ली में वकालत करते थे। वे दीवानी के मामलों में जिरह करना पसंद करते थे। वे तीस हजारी में प्रैक्टिस किया करते थे। उन्होंने सन 1946 फ्लैग स्टाफ रोड का बंगला खरीदा था। वे पहले सपरिवार बल्लीमरान में ही रहते थे। दिल्ली जाकिर हुसैन कॉलेज के लंबे समय तक प्रिंसिपल रहे प्रो. रियाज उमर बताते हैं कि पैसा आया तो अनीस अहमद ने सुंदर सा बंगला खरीद लिया। वे एंग्लो अरेबिक स्कूल के मैनेजमेंट से भी जुड़े हुए थे।
प्रो. रियाज उमर
अनीस अहमद हमेशा वेल ड्रेस रहना पसंद करते थे। अनीस अहमद दिन भर की मारामारी के बाद शाम में कनॉट प्लेस के मरीना होटल (अब रेडिसन ब्लू होटल) में ही गुजारना पसंद करते थे। इसी होटल में गांधी जी का हत्यारा नाथूराम गोडसे भी ठहरा था। यहां से ही गोडसे गांधी जी को मारने 30 जनवरी 1948 को तीस जनवरी मार्ग गया था।
अनीस अहमद ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। अनीस अहमद की साहित्य और संस्कृति के प्रति गहरी रुचि थी। सलमान रुश्दी के लेखन में उनके पिता का प्रभाव देखा जा सकता है, विशेष रूप से उनकी पुस्तकों में पारिवारिक और सांस्कृतिक पहचान के विषयों में।
कौन थी सलमान की मां
सलमान रुश्दी की माता का नाम नैजिन था। वे एक शिक्षिका थीं और एक संवेदनशील, बुद्धिमान व्यक्तित्व की धनी थीं। नैजिन का जन्म एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार में हुआ था, और उनकी शादी अनीस रुश्दी से हुई थी। सलमान ने अपनी माँ के बारे में कई बार बात की है और उनके मजबूत व्यक्तित्व का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
कब चले गए थे लंदन
कहते हैं, अनीस अहमद 1960 के दशक में लंदन चले गए। वे देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान नहीं गए थे। लंदन से कभी-कभार ही दिल्ली आते। सलमान रुश्दी का 1947 में लंदन में जन्म हो चुका था। अनीस अहमद 1970 में दिल्ली आए। यहां उनका कुनबा और तमाम दोस्त थे ही। तब उन्होंने राजपुर रोड के एक प्रॉपर्टी डीलर लज्जा राम कपूर की मध्यस्थता से अपना बंगला स्वाधीनता सेनानी और कारोबारी भीखूराम जैन को 300 रुपए मासिक रेंट पर दे दिया।
क्यों चलता है बंगले पर विवाद
भीखू राम जैन का परिवार बढ़ रहा था। इसलिए उन्होंने 4 फ्लैग स्टाफ रोड के बंगले को तुरंत किराए पर ले लिया ताकि परिवार के कुछ मेंबर वहां पर शिफ्ट कर लें। पर इस डील के चंदेक दिनों के बाद अनीस अहमद फिर से भीखूराम जैन से मिले। उनके साथ लज्जा राम कपूर भी थे। उन्होंने जैन से अपने बंगले को खरीदने की पेशकश की। 1980 में चांदनी चौक से लोकसभा के लिए चुने गए भीखूराम जैन आखिर अनीस अहमद के बंगले को खरीदने के लिए राजी हो गए। तय हुआ कि वे 3.75 लाख रुपए में बंगला खरीद लेंगें। उन्होंने 50 हजार रुपए बयाना अनीस अहमद को दे दिया। शेष रकम 15 महीने में दी जानी थी। अनीस अहमद बयाना लेकर एक बार जो लंदन गए तो वे फिर कभी नहीं लौटे। वहां पर ही उनकी मृत्यु हो गई।
यह सारा किस्सा एक बार भीखूराम जैन ने इस लेखक को अपने राजपुर वाले बंगले में सुनाया था। भीखूराम जैन ने बताया था कि उन्होंने अनीस अहमद को बार-बार भारत बुलाया ताकि डील को अंतिम रूप दिया जा सके। पर अनीस नहीं आए। वे तब कोर्ट गए। ताजा सूरते हाल यह है कि 4 फ्लैग स्टाफ रोड के बंगले के स्वामित्व को लेकर विवाद जारी है। अब भीखूराम जैन, अनीस अहमद और लज्जाराम कपूर को गुजरे हुए भी एक जमाना हो गया है। बहरहाल, 4 फ्लैग स्टाफ रोड बंगले के मालिकाना हक के लिए आधी सदी से केस चल रहा है।
कौन थे भीखूराम जैन
हो सकता है कि नौजवान पीढ़ी भीखूराम जैन से पूरी तरह से परिचित ना हो। उनके जीवन काल में ही उनका घर लैंडमार्क बन गया था। वे गांधी जी के आहवान पर स्वाधीना आंदोलन में कूदे थे। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया। वे 1980 में चांदनी चौक लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर निर्वाचित हुए। वे जीवनभर समाज सेवा और शिक्षा के प्रसार-प्रचार के लिए सक्रिय रहे। वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित हिन्दू कॉलेज की मैनेजिंग कमेटी से दशकों जुड़े रहे।
भीखूराम जैन दिल्ली नगर निगम के भी लंबे समय तक मेंबर रहे। उनके नाम पर राजपुर रोड की एक सड़क का नाम 2008 में भीखूराम जैन रोड रखा गया था। भीखूराम जैन दावा करते थे कि अगर अनीस अहमद ने मान लिया होता कि वे उनके साथ इसलिये डील नहीं कर रहे क्योंकि उन्हें किसी अन्य से बेहतर पैसा मिल रहा है, तो वे उनके ऊपर केस नहीं करते। हालांकि वे कभी सलमान रुश्दी से नहीं मिले थे।
भीखूराम जैन के बाद कौन लड़ता केस
जैन साहब के बाद उनके पुत्र नरेन केस को लड़ रहे हैं। वे दिल्ली के मशहूर कारोबारी हैं। कुछ समय तक आम आदमी पार्टी (आप) में भी रहे हैं।
वे सलमान रुश्दी पर हुए जानलेवा हमले से आहत हैं। कह रहे थे- ये गलत हुआ है। बता दें कि सलमान रुश्दी का हिमाचल प्रदेश के सोलन में उपायुक्त रेजिडेंस के पास एक बंगला भी है, जिसमें करीब 11 कमरे, हॉल, बेड रूम, किचन वगैरह है। वे यहां साल 2002 में आखिरी बार आये थे। इस बंगले को एक केयरटेकर देखता है।
किससे प्रेरित फ्लैग स्टाफ
फ्लैग स्टाफ रोड राजधानी दिल्ली का बेहद खास एरिया है। इसका नाम "फ्लैग स्टाफ टावर" से प्रेरित है, जो 1828 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा निर्मित एक संरचना थी। यह टावर दिल्ली के उत्तरी रिज क्षेत्र में स्थित है और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जब ब्रिटिश परिवार वहां शरण लेने गए थे। फ्लैग स्टाफ टावर एक संरक्षित स्मारक है। इधर ब्रिटिश काल के कई बंगले और इमारतें हैं, जो सिविल लाइन्स की औपनिवेशिक विरासत को दर्शाती हैं।