शताब्दी के बहाने अमरकांत

अमरकांत के जन्म शताब्दी समारोह के निमित्त दिनांक 26-27 जुलाई 2025 को सी. एम. कॉलेज परिसर, प्रयागराज में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। पांच सत्रों में विभाजित इस आयोजन में इलाहाबाद शहर और देशभर से कई रचनाकार साथी आये थे। यहां अमरकांत के व्यक्तित्त्व, कथा-साहित्य और पत्रकारिता पर विस्तार से चर्चा हुई। अमरकांत का जन्म बलिया में हुआ था पर उनकी कर्मभूमि यह इलाहाबाद ही रही। वे 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल रहें। आज़ादी का महास्वप्न और उसके अवरोधों को अमरकांत ने बहुत निकट से देखा इसलिए उनकी रचनाधर्मिता इनकी गूंजों से बनी है। इस महत्वपूर्ण आयोजन पर पढ़िए केतन यादव की रिपोर्ट-

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“तुम्हारी कलम में कहानियाँ धड़कती रहीं 
  विचार को उकसाने वाली, अब
  मगर सट्टा तो बल्ले पर ही लगाया जा सकता है 
  कलम पर नहीं ।

  और विचार को उकसाना 
  वैसे भी कहाँ मुफ़ीद है 
  पैसा लगाने वालों को ? ” 
      - राजेंद्र कुमार ( अमरकांत, गर तुम क्रिकेटर होते ! ) 

जब अमरकांत जन्मशती आयोजन के लिए निकला तो सुबह ‘हर कोशिश एक बगावत है’ कविता संग्रह की इस कविता को देखकर निकला। वहाँ भी उद्घाटन सत्र की समाप्ति महाविद्यालय के एक अध्यापक डॉ रंजीत सिंह ने इस कविता के पाठ से की। आज प्रो. राजेंद्र कुमार गंभीर स्वास्थ्य कारणों से इलाहाबाद न होकर आगरा हैं और हर आयोजन की तरह इस आयोजन में भी आँखें उनकी सघन उपस्थिति को तलाश रही थीं। 

दिनारंभ - सत्रारंभ 

उद्घाटन सत्र का संचालन साथी डॉ प्रेमशंकर कर रहे थे मंच पर हिंदी विभाग सीएमपी कॉलेज की संयोजक सरोज सिंह, अमरकांत जी के पुत्र अरविंद विंदु जी , कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो अजय प्रकाश खरे, कवि हरीशचंद्र पाण्डे और अध्यक्षता कर रहे अली अहमद फातमी साहेब मौजूद थे। हरीशचंद्र पाण्डे जी ने अपने स्वागत वक्तव्य में प्रलेस जलेस जसम और सी एम पी के इस साझा उपक्रम का जिक्र करते हुए महाविद्यालय के प्रति आभार प्रगट किया। उन्होंने बताया कि जनवादी लेखक संघ लखनऊ और पटना में भी अमरकांत  के जन्मशती पर आयोजन हुये। बया, बनास जन और अनहद का विशेषांक, प्रयाग पथ में भी अमरकांत पर अंक प्रस्तावित है। कृति बहुमत और आजकल में भी सामग्री आ रही।

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हरीशचंद्र जी ने कहा कि अमरकांत को हिंदी का मैक्सिको गोर्की भी कहा गया। साहित्यिक उठापठक से वे हमेशा दूर रहे। आम पाठकों की लेखकीय स्वीकार्यता उन्हें पहले ही प्राप्त हो चुकी थी। अमरकांत श्रीराम वर्मा नाम से ग़ज़लें लिखते थे। आगरा से इलाहाबाद में ग़ज़लकार बन कर आए और यहाँ कथाकार व्यक्तित्व को प्राप्त हुए। इलाहाबाद में कमलेश्वर, मार्कंडेय, शेखर जोशी आदि कथाकार इनके साथी बने। 

प्रधानाचार्य प्रो अजय प्रकाश खरे ने अपने साहित्यिक रुझानों के विषय में बताया और कार्यक्रम के लिए आभार जताया। इसके बाद मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया ने अपना मुख्य वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा अमरकांत जी आधा जीवन इलाहाबाद में बिताए। बलिया में पैदा हुए पर कर्मभूमि लेखन भूमि इलाहाबाद रही। निम्न मध्यवर्ग से मध्यवर्ग में आने की वह छटपटाहट जो हम लिए रहते हैं उनकी कथा संवेदना रही। अमरकांत के पात्रों में जीवटता दिखाई देती है। राजेंद्र यादव ने कहा था कि अमरकांत व्यक्तित्व के नहीं अस्तित्व के लेखक हैं।

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ममता जी ने कहा अमरकांत के ऊपर गांधी का खूब असर था। 'इन्हीं हथियारों से' में गांधी के सत्य और अहिंसा के हथियार हैं। पात्रों में करुणा और व्यंग्य का अद्भुत मेल है। उनके पात्र केवल दयनीय या महनीय नहीं हैं। इस तरह वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया ने अपने पूर्वज कथाकार को आदरपूर्वक स्मरण किया। अध्यक्षीय संबोधन में फातमी जी ने कहा कि अमरकांत इलाहाबाद में छोटे-छोटे किराए के मकानों में रहते थे। छोटे-छोटे किराए के मकान में रहने वाला कथाकार बड़ी-बड़ी कथाएँ लिखता था। प्रेमचंद के कथा साहित्य के भीतर का क्रूर यथार्थ अमरकांत के सपाटबयानी में कॉम्पलेक्स रिएलिटी में आता। आभार ज्ञापन प्रो सरोज सिंह जी ने किया जो कि हिंदी विभाग सीएमपी महाविद्यालय की विभागाध्यक्षा भी हैं। 

प्रथम सत्र - अमरकांत व्यक्तित्व और कृतित्व 

इस सत्र का संचालन प्रकर्ष मालवीय कर रहे थे। पहले वक्ता संजीव कुमार जी ने कहा अमरकांत के कला कौशल और उनके कलाकुशलता पर बात होनी चाहिए। ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं है, जो सृजन के साथ अभिग्रहण के स्तर पर भी नयी कहानी है। एक संरचनात्मक बदलाव जो नयी कहानी से पहले और बाद में आई। पहले की कहानियों का संक्षेपण हो सकता था पर नयी कहानी में वह नहीं होता... जहाँ एक निश्चित अर्थ का अंत नहीं होता। जहाँ अंत और शुरुआत में वैसा तुक न हो जो पहले में था।

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कथा-आलोचक संजीव कुमार ने आगे कहा संरचनात्मक रूप से सौ प्रतिशत नयी कहानी निर्मल वर्मा के यहाँ हैं बाकि लगभग सबके यहाँ एक मिक्सअप आता है, अमरकांत के यहाँ भी। कहानियाँ परिणति पक्ष प्रधान और प्रक्रिया पक्ष प्रधान दो तरीके या प्रकार की हो सकती हैं। उन्होंने कहा इतिहास मोड़ों का आख्यान होता है सीधे रास्तों का बयान नहीं, उनकी कहानियाँ मोड़ों की हैं। अमरकांत को बाइपास करके नहीं आगे बढ़ा जा सकता। अमरकांत की कथाभाषा बहुत अभिव्यंजक है, वह बहुत अलग नहीं है पर कल्पनाशीलता को दृष्टि देने वाली है। लगभग सभी कहानियों में पशु संसार से रूपक और मुहावरे दिखते हैं। 

अगले वक्ता कथाकर रणेंद्र ने विभिन्न कहानियों से और पात्रों के माध्यम से अमरकांत के व्यक्तित्व और नयी कहानी के कथा परिदृश्य का वर्णन किया। कवि हरीशचंद्र पाण्डे ने तमाम जीवन संदर्भ और निजी जीवन के सहारे व्यक्तित्व का रेखांकन पेश किया। ग़ज़ल से कहानी तक की यात्रा बताई। हरीशचंद्र जी ने बताया कि जब वे इलाहाबाद में आख़िरी किराए के मकान को  खोजने गये तो मकान मालिक ने जब जाना कि कथाकार अमरकांत रहने आने वाले हैं तो उन्होंने चौंककर कहा कि बस यहीं रहेंगे वे, फाइनल। और किराया भी नहीं पूछा। अमरकांत श्रीराम वर्मा नामके कवि भी थे और अमरकांत का नाम भी अभी वही था। इसको लेकर खूब भ्रम हुआ, जबतक अमरकांत जी ने अपना यह नाम नहीं बदला। 

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सत्राध्यक्ष रामजी राय ने कहा यथार्थ की परतों के भीतर उतरकर अमरकांत द्वंद रचते थे। अमरकांत का मानना था हर रचना सर्जना नहीं हो सकती है। सर्जनात्मक राजनीति और सर्जनात्मक साहित्य की भूमि एक होती है, क्योंकि दोनों यथार्थ में बदलाव की प्रक्रिया से गुजरते हैं। अमरकांत को पढ़ते समझते हुए वैचारिक यात्रा भी समृद्ध होती है। महाविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य डॉ दीनानाथ द्वारा आभार ज्ञापन किया गया। 

पहले दिन का आयोजन अमरकांत की कहानी 'डिप्टी कलक्टरी' का मंचन वाराणसी के 'गौरी कलामंच: के रंगकर्मी साथियों की नाट्य प्रस्तुति के साथ हुआ। 

आयोजन के पहले दिन प्रो अनीता गोपेश, अरिनिंदम घोष, प्रो अल्पना वर्मा, प्रो अर्चना खरे, प्रो आभा त्रिपाठी, प्रो दीनानाथ जी, मनोज पांडेय, प्रो चंद्रकला त्रिपाठी, रणेंद्र, सुधांशु मालवीय, प्रकर्ष मालवीय, प्रो संजीव  कुमार , बसंत त्रिपाठी, डॉ लक्ष्मण प्रसाद त्रिपाठी, रामजी राय, प्रो हेरंब चतुर्वेदी, संध्या नवोदिता आदि शहर के बौद्धिक समाज और नागरिक समाज के साथ शोधार्थी विद्यार्थी  भी मौजूद थे।

अपने उरूज पर शताब्दी समारोह : दूसरे दिन की बात 

द्वितीय सत्र - अमरकांत और हिंदी कहानी 

इस सत्र का संचालन कथाकार शिवानंद मिश्र कर रहे थे। सबसे पहले वक्ता रामायन राम ने अपने वक्तव्य में कहा-' अमरकांत ने कहानी में शहरी उच्च मध्यवर्ग की चालाकियों का पर्दाफाश किया। कथा में यह काम अमरकांत कर रहे थे और कविता में मुक्तिबोध। अमरकांत अपनी कहानियों अधिकांशत: दलित दमित पात्र रखकर कुलीनवर्ग की संकीर्णताओं को रचते।' रामायन जी ने कहा कि विश्वनाथ त्रिपाठी सहित सभी आलोचकों ने 'ज़िंदगी और जोंक' के पात्र की तुलना कहीं न कहीं सद्गति के घीसू माधो से की है। लेकिन अमरकांत कफ़न की परंपरा के नहीं सद्गति की परंपरा के कथाकार हैं। अमरकांत की कई कहानियों में कोई कथानक नहीं है। वे कथातत्व की परवाह किये बगैर साधारण कथा शिल्प में लिख जाते। इस साधारणता के परिप्रेक्ष्य में वे गोर्की से अधिक चेखव के नजदीक मालूम होते है। कुहासा, दलील, पलाश के फूल, जिंदगी और जोंक जैसी कहानियाँ सद्गति के पात्रों के परिणति के करीब हैं।

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अगले वक्ता कथाकार मनोज पांडेय ने कहा-' अमरकांत की बहुत कहानियाँ बाद के नयी पीढ़ी के कथाकारों को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं। इसके साथ 'नौकर की बात' जैसी कई कहानियों के उदाहरण के माध्यम से टुच्चेपन कमीनेपन के मध्यवर्गीय प्रवृत्तियों का विवेचन किया। रणविजय सिंह सत्यकेतु ने कहा कि वे बदलाव और आमूलचूल परिवर्तनों की ओर ले जाते कथाकार थे जो नयी सोसाइटी बनाना चाहते हैं। समय के साथ वे और बड़े कथाकार के रूप में हमारे सामने आते  हैं।

अगले वक्ता राकेश बिहारी जी ने कहानियों के भीतर के अमरकांत का सूक्ष्म विश्लेषण करते हुए कहा 'शताधिक कहानियों के भीतर के अमरकांत कितने भिन्न-भिन्न अमरकांत हैं , इसकी पड़ताल करने की कोशिश होनी चाहिए। अमरकांत का लंबा सक्रिय लेखकीय जीवन रहा। अमरकांत के दोपहर के भोजन के समानांतर और प्रतिलोम के रूप में  उनकी 'मूस' कहानी दिखाई देती है। अमरकांत के कथाओं को स्त्री पात्रों के माध्यम से एक समकालीन विमर्श  के रूप में देखा जा सकता है। अमरकांत हमारे बीच कलाहीन कलावंत की तरह उपस्थिति होते हैं और वह किसी जादू से कम नहीं।' साहित्यकार नलिन रंजन सिंह ने कहा अमरकांत दयनीयता के साथ अंतर्द्वंद्व को उकेरने वाले कथाकार थे । नयी कहानी में किसी के पास भी सिद्धेश्वरी जैसा मध्यवर्गीय स्त्री चरित्र नहीं है। आज़ादी के मोहभंग की प्रवृत्ति कहानियों में सबसे पहले अमरकांत ही पहचानते हैं। 'मौत का नगर' सांप्रदायिकता पर लिखी कई कहानियों पर भारी है।

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अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ कथाकार संस्कृतिकर्मी अनीता गोपेश ने व्यक्तिगत और निजी जीवन प्रसंगों के माध्यम से अमरकांत के व्यक्तित्व का रेखांकंन रखा। डिप्टी कलक्ट्त्रे और दोपहर के भोजन पर नाट्य मंचन तैयार करने का जिक्र किया। इस सत्र का आभार ज्ञापन आभार ज्ञापन प्रो आभा त्रिपाठी किया। 

तीसरा सत्र - अमरकांत और हिन्दी उपन्यास 

इस सत्र का संचालन संध्या नवोदिता कर रही थीं। इस सत्र के पहले वक्ता वरिष्ठ कथा-आलोचक वीरेंद्र यादव थे। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा अमरकांत की राजनीतिक चेतना का निर्माण पहले हुआ था साहित्यकार वे बाद में बने। इन्हीं हथियारों के माध्यम से दलित सवाल ज्वंत ढंग से प्रस्तुत। अमरकांत दलित मेहनकश और अल्पसंख्यकों के प्रति भी गहरे रूप से प्रतिबद्ध रहे। 

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अगले वक्ता अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से प्रो कमलानंद झा ने ‘इन्हीं हथियारों से ' उपन्यास के बहाने वेश्याओं की समस्या, आज़ादी की चिंता बलिया की जीवंतता आदि बिंदुओं पर बात रखी। गोपाल प्रधान ने कहा नई कहानी के सीमांत पर रखकर अमरकांत को ठीक से समझा जा सकता है। आजादी को नष्ट करना हो तो महोत्सव और अमृतकाल मनाओ। उन्होंने आगे कहा कि यह धारणा बना ली गई है कि उपन्यास में व्यक्ति चरित्र हो जबकि अच्छे उपन्यासों में समूह चरित्र हैं। प्रतिरोध का सौंदर्य ही सौंदर्य का मानक होना चाहिए। प्रेमचंद भी साहित्यकार की प्रतिबद्धता की माँग करते थे। अमरकांत ऐसे ही कथाकार थे।

वक्ता प्रकर्ष मालवीय ने कुछ उपन्यासों के उदाहरण के माध्यम से अमरकांत के जीवन चरित्र और व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। प्रो चंद्रकला त्रिपाठी ने कहा बाहर की दुनिया और भीतर की दुनिया के चित्रण में वे भीतर की दुनिया के अंतर्द्वंद्वों को दिखाते थे। उनका यथार्थ इतना रॉ है, इतना ऑर्गेनिक है कि उसे क्या कहा जाए यह समस्यापूर्ण बात है। सत्र के अध्यक्ष प्रो प्रणय कृष्ण ने कहा नयी चुनौती पत्रिका ने सबसे पहले अमरकांत पर विशेषांक निकाला था। स्मृतिहीन बनाने की जो राजनीति औपनिवेशिक समय में ब्रिटिश हुकुमत कर रही थी वही आज एनसीआरटी आदि पाठ्यक्रमों से चीजों को हटाकर नव उदारीकरण के दौर में किया जा रहा है। उन्होंने प्रश्न रखा कि क्या औरत और आदमी के बीच का परायापन-अकेलापन एक ही होता है?‘ 'चुटकीभर सेंदुरा लगवता ए बाबा हो गइल बिटिया पराई' ' का परायापन क्या है? सुंदर पांडेय की पतोहू की स्त्री का परायापन उसमें व्यक्त होता है। 

चौथा सत्र - अमरकांत और हिंदी पत्रकारिता 

जिसका संचालन केके पांडेय कर रहे थे। पहले वक्ता धनंजय चोपड़ा ने अमरकांत के लिए पत्रकारीय आवारागी नामक विशेषण का प्रयोग किया। अमृत प्रभात उनके समय आर्थिक तंगी से गुजर रहा था पर कंटेंट की तंगी से नहीं। अमरकांत भी खबरों के लेखक थे। धनंजय चोपड़ा अमरकांत जी के पड़ोसी भी थे। धनंजय जी ने कहा 'अमरकांत मूलत: पत्रकार थे। विवेक सत्रांशु ने कहा 'वे पत्रकारिता के अंतरविरोधों और विडंबनाओं को उद्धृत करने वाले पत्रकार लेखक थे।' अमरकांत जी ने अस्थायित्व देखते हुए उस दौर में पत्रकारिता में आने को कभी  प्रोत्साहित नहीं किया। 

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संचालक केके ने पत्रकारिता वाली बात का प्रतिआख्यान करते हुए यह कहा कि वह जोखिमभरा क्षेत्र है परंतु वह सबसे अधिक आवश्यक है आज के समय में। यही वह क्षेत्र है जिसमें आम जनजीवन से जुड़ने का सबसे अधिक मौका मिलता है। सुधांशु मालवीय ने अमरकांत पर संस्मरणात्मक रूप से बात रखी। और इसके पश्चात अमरकांत जी के पुत्र अरविंद विंदु जी ने अपने पिता को याद करते हुए कुछ बातें रखीं। इस सत्र और समारोह के आख़िरी वक्ता सत्राध्यक्ष गोपाल रंजन जी ने कहा वे कढ़ाई बुनाई का विशेषांक भी बहुत करीने से करते थे। यह गुण मंगलेश डबराल में भी था। खबर लिखने की कला से वे किसी भी लेख और कहानी को एक तेवर दे देते थे। पहले आप मैनेजमेंट को मना कर सकते थे आज वह दौर नहीं। 

आयोजन समिति की ओर से आखिरी आभार ज्ञापन सुरेंद्र राही जी ने दिया । इस प्रकार दो दिवसीय अमरकांत शताब्दी समारोह उनके कथा व्यक्तित्व को और उन्हें ढंग से समझने के संकल्प के साथ खत्म हुआ।

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