मुंबई के बांद्रा उपनगर में स्थित 'रफी विला' मोहम्मद रफी का आशियाना था, जहां उन्होंने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण दशक बिताए। यह बंगला उनके लिए सिर्फ एक घर नहीं था, बल्कि एक ऐसी जगह थी जहां उनकी संगीत साधना, पारिवारिक जीवन और सामाजिक संबंधों का संगम होता था। रफी विला की दीवारें उनकी आवाज की तरह ही गूंजती थीं, और यह स्थान उनके प्रशंसकों, सहकर्मियों और परिवार के लिए एक तीर्थस्थल की तरह था।
रफी साहब की आवाज और उनके गाने आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। उनके गाए गीत, जैसे "सुहानी रात ढल चुकी" (दुलारी) और "शाम फिर क्यों उदास है दोस्त" (आसपास), उनके आखिरी गीतों में से एक, रफी विला की यादों को और भी गहरा करते हैं। यह बंगला न केवल एक भौतिक स्थान है, बल्कि एक ऐसी भावना है जो रफी साहब की कला और उनके व्यक्तित्व को आज भी जीवित रखती है।
रफी साहब को घरों और कारों का बड़ा शौक था, जैसा कि उनके बेटे शाहिद रफी ने एक साक्षात्कार में बताया था। उनके इस शौक का एक नमूना था रफी विला, जो न केवल एक शानदार बंगला था, बल्कि उनकी सादगी और स्वाद को भी दर्शाता था। यह बंगला उस समय के हिसाब से आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित था, लेकिन रफी साहब की विनम्रता और सादगी ने इसे और भी खास बना दिया।
परिवार और रफी विला
रफी साहब एक समर्पित पारिवारिक व्यक्ति थे। उन्होंने दो शादियां की थीं, और उनकी दूसरी पत्नी बिलकिस बानो के साथ उनके सात बच्चे थे—चार बेटे (सईद, खालिद, हामिद, और शाहिद) और तीन बेटियां (परवीन, नसरीन, और यास्मीन)। रफी विला उनके परिवार का केंद्र था, जहां बच्चे बड़े हुए, और जहां रफी साहब अपने व्यस्त रिकॉर्डिंग शेड्यूल के बीच परिवार के साथ समय बिताते थे। उनकी बहू यास्मीन खालिद रफी ने एक बार बताया कि रफी साहब बेहद विनम्र और कम बोलने वाले व्यक्ति थे। घर में बच्चों के लिए वे सिर्फ 'अब्बा' थे, न कि वह महान गायक, जिन्हें दुनिया 'शहंशाह-ए-तरन्नुम' कहती थी।
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रफी विला में उनके बच्चों की परवरिश हुई, और यह स्थान उनके लिए एक सुरक्षित आश्रय था। शाहिद रफी ने एक साक्षात्कार में बताया कि जब उनके पिता का निधन हुआ, तब उन्हें एहसास हुआ कि रफी साहब कितनी बड़ी शख्सियत थे। घर में उनकी सादगी ऐसी थी कि बच्चे उनके स्टारडम से अनजान थे। रफी विला में उनके बच्चों ने उनके साथ बिताए पल, जैसे कि उनके साथ संगीत सुनना, उनके गाने सुनकर बड़े होना, और उनके साथ छोटी-छोटी बातें साझा करना, आज भी उनकी यादों का हिस्सा हैं।
1974 में रफी साहब के 50वें जन्मदिन पर रफी विला में एक विशेष समारोह आयोजित किया गया था। इस अवसर पर उनकी बहू यास्मीन ने उन्हें फूलों का गुलदस्ता भेंट किया था, और उनकी पत्नी बिलकिस बानो भी इस समारोह का हिस्सा थीं। यह पल रफी विला की यादों का एक सुनहरा हिस्सा है, जो उनके परिवार के प्यार और उनके प्रति सम्मान को दर्शाता है।
संगीत और रफी विला
रफी विला न केवल उनका घर था, बल्कि यह उनकी संगीत साधना का भी गवाह था। रफी साहब की आवाज की रिहर्सल और उनकी रिकॉर्डिंग की तैयारियां अक्सर घर पर ही होती थीं। यद्यपि उनकी अधिकांश रिकॉर्डिंग स्टूडियो में होती थी, लेकिन रफी विला में संगीत की चर्चाएं और रिहर्सल का माहौल हमेशा रहता था। संगीतकार जैसे नौशाद, शंकर-जयकिशन, और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे दिग्गजों के साथ उनकी मुलाकातें और चर्चाएं भी इस बंगले में होती थीं।
रफी साहब की आवाज में एक विशेष लोच थी, जो अलग-अलग अभिनेताओं के लिए अलग-अलग रंग लाती थी। चाहे वह शम्मी कपूर की जोशीली ऊर्जा हो, दिलीप कुमार की भावनात्मक गहराई, या जॉनी वॉकर का हास्य, रफी साहब की आवाज हर किरदार को जीवंत कर देती थी। रफी विला में उनके इस हुनर की झलक देखने को मिलती थी, जब वह गाने की तैयारी करते थे। वह न तो शराब पीते थे, न सिगरेट, और न ही पान खाते थे, जिससे उनकी आवाज की शुद्धता बनी रहती थी।
रफी विला में संगीत का माहौल केवल उनके गायन तक सीमित नहीं था। उनके बच्चे और परिवार के सदस्य भी संगीत के प्रति रुझान रखते थे। उनके बेटे शाहिद रफी ने 2010 में मोहम्मद रफी अकादमी की स्थापना की, जो भारतीय शास्त्रीय और समकालीन संगीत प्रशिक्षण के लिए समर्पित थी। यह अकादमी रफी साहब की विरासत को आगे बढ़ाने का एक प्रयास था, और इसका विचार भी रफी विला में ही जन्मा था।
रफी साहब की मेहमाननवाजी
रफी विला में आने वाले मेहमान हमेशा रफी साहब की सादगी और मेहमाननवाजी से प्रभावित होते थे। वह एक शर्मीले और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे, जो अपने प्रशंसकों और सहकर्मियों के साथ हमेशा सम्मान और स्नेह से पेश आते थे। उनके घर में आने वाले लोग, चाहे वह संगीतकार हों, अभिनेता हों, या आम प्रशंसक, सभी को एक समान आदर और प्यार मिलता था। उनके बेटे शाहिद ने बताया कि रफी साहब को लोग भगवान की तरह पूजते थे, और उनकी आवाज में सरस्वती का वास माना जाता था।
रफी विला में कई बार छोटे-छोटे समारोह और संगीतमय सभाएं भी होती थीं, जहां रफी साहब अपने दोस्तों और सहकर्मियों के साथ समय बिताते थे। संगीतकार नौशाद के साथ उनका विशेष रिश्ता था, और नौशाद ने रफी साहब की आवाज को 'फरिश्ते की आवाज' कहा था। नौशाद ने रफी साहब के लिए कई नज्में और शेर लिखे, जो उनकी आवाज और व्यक्तित्व के प्रति उनके प्रेम को दर्शाते हैं। इन मुलाकातों का केंद्र अक्सर रफी विला ही होता था।
रफी विला और उनकी अंतिम यात्रा
31 जुलाई 1980 को रफी साहब का निधन एक हृदयघात के कारण हुआ, और उस दिन मुंबई में भारी बारिश हो रही थी। उनकी अंतिम यात्रा रफी विला से शुरू हुई, और इसमें करीब 10,000 लोग शामिल हुए थे। यह दृश्य रफी साहब की लोकप्रियता और लोगों के दिलों में उनकी जगह को दर्शाता है।
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मनोज कुमार ने उस दिन कहा था, "सुरों की मां सरस्वती भी आज आंसू बहा रही हैं।" रफी विला उस दिन न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे देश के लिए शोक का केंद्र बन गया था।
उनकी अंतिम यात्रा की रिकॉर्डिंग को एक हिंदी फिल्म में भी इस्तेमाल किया गया था, जो रफी साहब की लोकप्रियता का एक और प्रमाण है। रफी विला, जो कभी हंसी, संगीत और प्यार से भरा रहता था, उस दिन खामोश हो गया था, लेकिन उनकी आवाज की गूंज आज भी वहां महसूस की जा सकती है।
रफी विला की विरासत
रफी विला आज भी मोहम्मद रफी की यादों का एक जीवंत प्रतीक है। यह स्थान उनकी सादगी, उनके संगीत और उनके परिवार के प्यार का गवाह है। उनके निधन के बाद, उनके परिवार ने इस बंगले को संजोकर रखा, और यह आज भी उनकी विरासत को जीवित रखता है। बांद्रा में 'पद्मश्री मोहम्मद रफी चौक' उनके सम्मान में बनाया गया है, जो रफी विला के आसपास ही है।
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मोहम्मद रफी का मुंबई का बंगला, रफी विला, उनकी जिंदगी का एक अनमोल हिस्सा था। यह वह स्थान था जहां उनकी संगीत साधना, पारिवारिक जीवन, और सादगी का संगम होता था। रफी विला की दीवारें उनकी आवाज की तरह ही गूंजती थीं, और यह स्थान उनके प्रशंसकों और परिवार के लिए एक तीर्थस्थल की तरह था। उनकी अंतिम यात्रा से लेकर उनके जन्मदिन समारोह तक, रफी विला ने उनके जीवन के कई महत्वपूर्ण पलों को देखा।
आज, जब रफी साहब हमारे बीच नहीं हैं, उनकी आवाज और रफी विला की यादें हमें उनकी विरासत से जोड़े रखती हैं। यह बंगला केवल एक घर नहीं, बल्कि एक ऐसी कहानी है जो मोहम्मद रफी के संगीत, सादगी और प्रेम को हमेशा जीवित रखेगी।