गोवा के इतिहास में पुर्तगाली अध्याय का विस्तार 450 वर्षों का है जिसमें पुर्तगाली नाविक वास्को डे गामा का दक्षिण भारत के कलीकट तट पर आना, अफोंसो डी अल्बुकर्क के नेतृत्व में पुर्तगाली सेना का गोवा पर कब्जा करना और गोवा को एक व्यापारिक केंद्र और पुर्तगाल के एशियाई साम्राज्य का महत्वपूर्ण नौसैनिक अड्डा बनाना शामिल रहा है. भारत के इस तटीय हिस्से पर पुर्तगाली प्रभाव आज तक देखने को मिलता है, चाहे वह सांस्कृतिक प्रभाव हो या वास्तुकला से संबंधित भौतिक प्रभाव. यूं कहना भी गलत नहीं होगा कि गोवा के शरीर में आज भी पुर्तगाली आत्मा बसती है. 

पुर्तगाली शासकों ने गोवा से मसालों का निर्यात तो शुरू किया ही, साथ ही गोवा की सरज़मीं पर अपने ईसाई मत और संस्कृति का आयात भी किया. पुर्तगालियों ने यहाँ गिरिजाघरों और किलों का निर्माण किया, जिनमें से कई आज भी मौजूद हैं और उनकी वास्तुकला पर यूरोपीय प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है. उदाहरण के लिए, अगुआड़ा किला और बॉम जीसस जैसे कई पुराने गिरिजाघर आज तक पुर्तगाली राज की निशानियों के रूप में मौजूद हैं. किलों और गिरजों के अलावा पुर्तगाली जीवनशैली और वास्तुकला का जीवंत उदाहरण रहे हैं यहां के पुर्तगाली बंगले, जो आज गोवा के भौतिक धरोहर के तौर पर देश विदेश में मशहूर हैं.

निर्माण शैली में पश्चिमी और पूर्वी विरासत का सह-अस्तित्व

गोवा की वास्तुकला को देखें तो लगता है मानो अरब सागर के तट पर पुर्तगाली और भारतीय निर्माण-शैली का संगम हो गया हो. इन दो धाराओं के मिलन से उपजी यहां की अनूठी वास्तुकला आज भी दो अलग-अलग संस्कृतियों के सह-अस्तित्व की कहानी कहती है. 

गोवा के बंगलों की बात करें तो ये बंगले अपने चटक रंगों के लिए भी खास हैं. हरियाली पृष्ठभूमि पर अपने चमकीले रंगों से अलग पहचान बनाने वाले इन बंगलों में अदभुत आकर्षण है, जिसके चलते सैलानी बड़ी संख्या में इन बंगलों को देखने आते हैं और इनके साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं. 

इन पुर्तगाली शैली के बंगलों में बरामदों का भी खास महत्व है. ऊष्म वातावरण में घर के आगे बने ये बरामदे न सिर्फ घर के अंदरुन के लिए एक बफर का काम करते हैं बल्कि सामाजिक मेलजोल और सुस्ताने के लिए भी मुफ़ीद ठिकाना होते हैं. यहां बैठने के लिए बनाए गए बेंच और सुंदर नक्काशीदार रेलिंग गोवा के बंगलों की विशिष्ट पहचान भी है. 

इन बंगलों के भीतर एक आंगन भी होता है, जो घर के विभिन्न हिस्सों को जोड़ता है और कमरों में धूप और हवा का संचार करता है. इन आंगनों में कुएं या छोटे बगीचे भी देखने को मिलते हैं. 

इन बंगलों की ऊंची छतें इन्हें हवादार बनाती हैं. साथ भी बड़ी खिड़कियां और दरवाजे भी हवा की आवाजाही में मददगार होते हैं. गोवा के बंगलों में खिड़की के पल्लों में शीशों की बजाए शंखों के खोल और सीपियां लगाई जाती हैं ताकि कमरों की निजता भी बनी रहे और हवा भी आती जाती रहे; साथ भी सुलभ होने के चलते शीशे की बनिस्पद सीपियों-शंखों का खर्च कम बैठता है. गौरतलब है कि गोवा में शीशे का चलन 19वीं शताब्दी के बाद ही शुरू हुआ और इसीलिए पहले से इस व्यावहारिक तकनीक को खिड़कियों में इस्तेमाल किया जाता रहा है. 

गोवा के इन बंगलों के निर्माण में स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री जैसे कि लेटराइट पत्थर और लकड़ी का उपयोग ज़्यादा किया जाता था. चूने के प्लस्तर का भी उपयोग होता था और छतों पर मिट्टी की बनी मंगलोरियन टाइलों को लगाया जाता था, जिससे छत से बारिश का पानी भी आसानी से बहे और हवा भी आती जाती रहे. 

इन बंगलों में सजावटी टाइलें भी लगाई जाती थीं, जिन्हें हाथ से रंगा जाता था. ये टाइलें azulejos कहलाती हैं और इनके सौंदर्य के चलते इन्हें बरामदों, दीवारों और रसोईघरों की शेल्फों पर आज तक लगाया जाता है. इन टाइलों को बनाने की विधा पुर्तगालियों द्वारा गोवा लाई गई. 

गोवा के इन बंगलों में फर्नीचर और आज सज्जा के सामान में भी यूरोपीय असर बड़ा गहरा रहा है. फर्नीचर का बुनियादी आकार और संरचना अक्सर यूरोपीय डिजाइनों से प्रेरित होती थी, लेकिन कारीगर भारतीय डिज़ाइन, जैसे कि फूल, पत्तियां, जानवर और धार्मिक प्रतीक जोड़ देते थे. 

फर्नीचर में जटिल नक्काशी और जड़ाई का काम भी होता था. हाथी दांत, सीप और विभिन्न प्रकार की लकड़ियों का उपयोग करके सुंदर पैटर्न बनाए जाते थे. कैथोलिक धर्म के प्रभाव के कारण, स्थानीय कारीगरों द्वारा विशेष प्रार्थना कुर्सियाँ भी बनाई जाती थीं, जिनमें बैठने के लिए नीची सीट और कोहनी या बाइबिल रखने के लिए ऊपर एक सहारा होता था। 

कंटडोर (Contador) एक प्रकार की यूरोपीय शैली की डेस्क होती थी जिसमें लिखने की जगह के साथ-साथ कागजात और अन्य सामान रखने के लिए दराज और खाने बने होते थे. Cadeira de Barcos नाव के आकार की कुर्सी हुआ करती थी. कुछ पुराने बंगलों में एंटीक या विंटेज झूमर भी होते हैं जो बंगले की ऐतिहासिक विरासत को दर्शाते हैं। ये अक्सर पीतल, लोहे या जटिल नक्काशी वाले लकड़ी के बने होते हैं। जिन बंगलों में पुर्तगाली वास्तुकला का प्रभाव अधिक होता है, उनमें अक्सर पारंपरिक क्रिस्टल या कांच के झूमर देखे जा सकते हैं। 

गोवा के पुराने पुर्तगाली प्रभाव वाले बंगलों में, छोटा निजी प्रार्थना कक्ष या चैपल हुआ करता था. इसमें एक वेदी (altar) होती थी जिस पर ईसा मसीह, मदर मैरी या अन्य संतों की मूर्तियाँ या तस्वीरें रखी जाती थीं। मोमबत्तियाँ, फूल और धार्मिक पुस्तकें भी यहाँ रखी जाती थीं।

पुर्तगाली संस्कृति में सामाजिक समारोहों, नृत्यों और पार्टियों का महत्वपूर्ण स्थान था इसीलिए गोवा के पुराने और बड़े बंगलों में बॉलरूम भी हुआ करता था. बड़े बंगलों में बॉलरूम का निर्माण यूरोपीय परंपरा का हिस्सा था, जिसे स्थानीय अभिजात वर्ग ने भी अपनाया. यह एक ऐसा स्थान था जहाँ परिवार और मित्र मिलकर नृत्य, संगीत और भोजन का आनंद लेते थे. ऐसे बॉलरूम में पियानो, दीवारों पर सजीले वॉलपेपर और लकड़ी के फर्श देखने को मिलते हैं, और इनकी साजसज्जा बिल्कुल यूरोपीय शैली से मेल खाती है। 

सांझी विरासत की निगेहबानी 

आज कई पुर्तगाली बंगलों को विरासत स्थलों के रूप में संरक्षित किया गया है, जबकि कुछ को बुटीक होटल या गेस्ट हाउस में तब्दील कर दिया गया है, जिससे सैलानियों को गोवा के इस अनूठे पहलू का अनुभव करने का अवसर मिलता है. 

चांडोर में स्थित ब्रगांज़ा हाउस (Braganza House) गोवा के सबसे बड़े और सबसे प्रसिद्ध हेरिटेज बंगलों में से एक है। सन 1590 में बना  फिगुएरेडो हाउस (Figueiredo House) लोटोलिम में स्थित एक खूबसूरत हवेली है, जो अब एक संग्रहालय और होमस्टे है। कासा अराउजो अल्वायर्स (Casa Araujo Alvares) लोटोलिम में स्थित लगभग 200 साल पुराना एक शानदार बंगला है, जिसमें 'सिंघम' जैसी फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। 

इसी तरह कासा डी मीरांडा (Casa De Miranda) गोवा के मशहूर कार्टूनिस्ट/आर्टिस्ट मारियो मीरांडा का पुश्तैनी बंगला है, जहां श्याम बेनेगल कृत 'त्रिकाल' नामक फिल्म की शूटिंग भी हो चुकी है. पणजी स्थित फोंटेनहास एक लैटिन क्वार्टर के रूप में जाना जाता है जहां की घुमावदार गलियों में पुर्तगाली युग के घर और बंगले आज भी जस के तस हैं. साथ ही यह एक यूनेस्को विश्व धरोहर क्षेत्र भी है. 

यूनेस्को और इंटैक जैसे संस्थानों के संरक्षण के अलावा गोवा सरकार का पर्यटन विभाग और अन्य स्थानीय संस्थाएँ भी इन बंगलों के रख रखाव और प्रचार प्रसार में शामिल हैं। इन हेरिटेज संपत्तियों को बचाए रखते हुए सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हेरिटेज वॉक भी आयोजित की जाती हैं ताकि स्थानीय निवासी और पर्यटक गोवा की इंडो-पुर्तगाली विरासत से वाबस्ता हो सकें. 

कण कण में बसी कहानियाँ 

कभी रिहायशी रहे इन बंगलों ने समय के साथ अपना स्वरूप बदला और आज ये सांस्कृतिक धरोहर और इतिहास के परिचायक के रूप में बुलंद खड़े हैं.  इन बंगलों के सजे सजाए कमरे चाहे आज सूने हैं लेकिन इनमें दर्ज इतिहास की गूंज आज भी हर आने जाने वाले को महसूस होती है. इन बंगलों की दीवारों पर आज भी अतीत के हस्ताक्षर बाकि हैं. इन खाली बरामदों में आज भी मागोवा की गलियों और ग्रामीण झुरमुठों में इन बंगलों को ढूंढना किसी ख़ज़ाने की खोज जैसा ही रोमांचक होता है. समय के साथ जर्जर पड़ते इन बंगलों को संस्थागत बैसाखियों का भी सहारा है.ज़ीह की परछाईं सुस्ता रही है. सुनने वाले आज भी इन बंगलों के कण कण में बसी कहानियां सुन लेते हैं.