न्यूयॉर्क: केन्या के प्रतिष्ठित साहित्यकार न्गुगी वा थ्योंगो ( Ngũgĩ wa Thiong'o) का बुधवार को निधन हो गया। वे 87 साल के थे। थ्योंगो के नाम दर्जनों उपन्यास, लेख और संस्मरण दर्ज हैं जिसमें उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से लेकर आजादी के बाद भी अपने देश की सरकारों के शासन के तहत हुए अत्याचारों तक को दर्शाया। वे केन्या में असहमति की मुखर आवाज माने जाते रहे। 

केन्या की आजादी के बाद देश में बनी सरकार के कामकाज को लेकर कई बार मुखर आलोचक रहे थ्योंगो को इस वजह से जेल भी जाना पड़ा। उन्हें दो दशक तक निर्वासित भी रहना पड़ा। रॉयटर्स समाचार एजेंसी के अनुसार किशोरावस्था में ब्रिटेन से स्वतंत्रता के लिए माउ माउ के सशस्त्र संघर्ष को देखने के अनुभव से प्रभावित होकर थ्योंगो ने अपने लेखन में औपनिवेशिक शासन के साथ-साथ उस केन्याई अभिजात वर्ग पर भी जमकर निशाना साधा जिन्होंने ब्रिटिश शासन के कई तौर-तरीके और विशेषाधिकार एक तरह से विरासत में मिले थे।

जब बिना किसी आरोप के रखा गया जेल में

दिसंबर 1977 में थ्योंगो को किसानों और मजदूरों द्वारा उनके नाटक "नगाहिका नेंडींडा" (मैं जब चाहूँ शादी करूँगा) का प्रदर्शन करने के बाद बिना किसी आरोप के एक साल के लिए जेल में बंद कर दिया गया था। थ्योंगो ने बाद में बताया कि नाटक में केन्याई समाज में असमानताओं की आलोचना की गई थी, जिससे नाराज होकर अधिकारियों ने थिएटर को ध्वस्त करने के लिए तीन ट्रक में भरकर पुलिस भेजी थी। 

थ्योंगो को 1982 में निर्वासन में जाना पड़ा, जब उन्हें राष्ट्रपति डैनियल अराप मोई की योजनाओं के बारे में गुप्त तरीके से पता चला। मोई की योजना कथित तौर पर थ्योंगो को गिरफ्तार करने और मारने की थी। बाद में थ्योंगो कैलिफोर्निया-इरविन विश्वविद्यालय में अंग्रेजी और तुलनात्मक साहित्य के प्रोफेसर बन गए।

मोई के दो दशक से अधिक समय तक सत्ता में रहने के बाद पद छोड़ने पर थ्योंगो का भी निर्वसन खत्म हुआ। मोई पर अपने दो दशक के शासन मेबड़े पैमाने पर राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी, हत्याएं और यातनाएं देने जैसे आरोप हैं।

मौजूदा राष्ट्रपति ने दी थ्योंगो को श्रद्धांजलि

केन्या के वर्तमान राष्ट्रपति विलियम रुटो ने हाल के वर्षों में खराब स्वास्थ्य से जूझने और अमेरिका में हुई थ्योंगो की मृत्यु पर शोक प्रकट किया है और उन्हें श्रद्धांजलि दी है।

रुटो ने अपने एक्स अकाउंट पर कहा, 'केन्याई साहित्य के इस दिग्गज ने आखिरी बार अपनी कलम नीचे रख दी है। हमेशा साहसी, उन्होंने हमारी स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय के साथ-साथ राजनीतिक और आर्थिक शक्ति के उपयोग और दुरुपयोग के बारे में हमारी सोच पर एक अमिट प्रभाव डाला।'

साल 2004 में हालांकि केन्या लौटने पर थ्योंगो ने कहा कि उन्हें मोई से कोई शिकायत नहीं है। लेकिन उन्होंने तीन साल बाद रॉयटर्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि केन्याई लोगों को उस दौर में हुए अत्याचारों को नहीं भूलना चाहिए।उन्होंने कहा था, '22 साल की तानाशाही के परिणाम लंबे समय तक हमारे साथ रहेंगे और मैं नहीं चाहता कि हम उस दौर में वापस लौटें।' 

थ्योंगो के चर्चित उपन्यास

थ्योंगो की सर्वाधिक प्रसिद्ध कृतियों में उनका पहला उपन्यास 'वीप नॉट चाइल्ड' शामिल है, जिसमें माउ माउ संघर्ष का वर्णन है। इसके अलावा "डेविल ऑन द क्रॉस" भी शामिल है, जिसे उन्होंने जेल में रहते हुए टॉयलेट पेपर पर लिखा था।इसके अलावा 'द विजार्ड ऑफ द क्रो', 'पेटल्स ऑफ ब्लड' भी उनका प्रसिद्ध उपन्यास है।

1980 के दशक में उन्होंने अंग्रेजी छोड़कर अपनी मातृभाषा गिकुयु (Gikuyu) में लिखना शुरू कर दिया था और कहा कि वे केन्या के पूर्व औपनिवेशिक आयातित भाषा को अलविदा कह रहे हैं।

अपने पिता की चार पत्नियों में से तीसरी पत्नी से पैदा हुए पाँच बच्चों में से एक थ्योंगो नैरोबी के उत्तर में कामिरीथु गाँव में पले-बढ़े। उन्होंने उस दौर में एक अच्छी माने जाने वाली औपनिवेशिक शिक्षा प्राप्त की और उस समय उनका नाम जेम्स थ्योंगो था।

थ्योंगो की प्रशंसक दुनिया भर में रहे। जॉन अपडाइक से लेकर चिमामांडा न्गोजी अदिची जैसे लेखकों ने उनकी प्रशंसा की। अमेरिकी के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी एक बार थ्योंगो की 'इतिहास की घटनाओं का व्यक्तिगत जीवन और रिश्तों पर पड़ने वाले प्रभाव की एक सम्मोहक कहानी' कहने की क्षमता की प्रशंसा की थी। 

थ्योंगो को 2009 में 'बुकर पुरस्कार' के लिए चुना गया था। वे 2012 में नेशनल बुक क्रिटिक्स सर्किल पुरस्कार के लिए फाइनलिस्ट थे और चार साल बाद पाक क्योंग-नी साहित्य पुरस्कार (Pak Kyong-ni Literature Award) के विजेता बने।