खलील जिब्रान को पढ़ना कुछ ऐसा है जैसे अपनी ही आत्मा से दो चार होना। आप अपनी हर उलझन का हल उनकी सूक्तियों में ढूंढ़ सकते हैं। इस लिहाज से खलील जिब्रान को पढ़ना किसी अच्छे डॉक्टर या फिर मनोचिकित्सक से मिलने जैसा भी है। खलील का लेखन जीवन को समझने की एक मुकम्मल कुंजी है। उसे पढ़ पाने की एक ज्ञात लिपि। खलील इसीलिए हर देश और हर भाषा के इतने अपने हुए। हर इंसान को उनकी बात अपनी बात लगी। चाहे उनकी लघुकथाएं हों या सूक्तियां, प्रेम और दोस्ती सहित जिंदगी के तमाम अनुभवों की वे कम-से-कम शब्दों में कुछ इस तरह व्याख्या करते हैं कि वह बहुत सहजता से सबके दिलों में उतर जाए।

प्रेम और दोस्ती पर तो उन्होंने इतना कुछ और कुछ इस तरह लिखा कि उसे जितना भी पढ़ो वह कम ही जान पड़ता है। यह लिखना हर बार एक नई व्याख्या, सन्दर्भ और दर्शन के साथ हुआ- ‘प्यार के बिना जीवन उस वृक्ष की तरह है, जिस पर फल नहीं लगते’ या फिर ‘आपका दोस्त आपकी जरूरतों का जवाब है’ जैसी उनकी न जाने कितनी पंक्तियां हैं जो कई पीढ़ियों के लिए बोध-वाक्य बन गईं। 

इन दो बहुत प्यारे रिश्तों को खलील जिब्रान ने बड़ी सहजता और गरिमा से परिभाषित किया तो शायद इसलिए कि ये दोनों रिश्ते हमेशा उनके भी जीवन का आधार रहे। खलील जिब्रान अगर खलील जिब्रान बन पाये तो इसमें इनकी कम बड़ी भूमिका नहीं थी। खासकर उनके जीवन में आई कुछ स्त्रियों की। इनमें उनकी मां और दो बहनें भी सम्मिलित थीं। इसके अलावा मित्र और प्रेमिका के रूप में उनकी जिंदगी में आई तीन और स्त्रियां भी उनका आधार स्तंभ रहीं- कवियत्री जोसफीन, शिक्षिका एलिजाबेथ मैरी और प्रबुद्ध अरबी लेखिका और आलोचक मे जैदा।

जीवन और उसके दर्शन को अपनी लघु-कथाओं में पिरोने वाले इस लेखक का जीवन कितना मुश्किल रहा होगा, यह उनके अनुभवों के निचोड़ से भी समझा जा सकता है। खलील जिब्रान का कहना था- ’मेरी सबसे बड़ी पीड़ा शारीरिक नहीं आंतरिक है। मेरे अंदर कुछ विशाल है, मैंने इसे हमेशा महसूस किया है। पर मैं इसे व्यक्त नहीं कर पाता। मेरे अन्दर एक विशाल 'मैं' है, जो अंदर बैठे-बैठे मेरे लघु रूपों को तमाम चीजें करते हुए देखता रहता है।’

चित्रकार, मॉडल, कवि, लेखक और संपादक तक खलील जिब्रान की जिन्दगी के बहुत सारे पड़ाव रहे। इनमें उनके व्यक्तित्व के अलग-अलग रंग दमकते रहें। एक लिहाज से ये सभी उसी विशालता को किसी भी तरह व्यक्त कर पाने की कोशिश का एक छोटा सा टुकड़ा भर थे जिसमें वे खुद को कभी भी कामयाब नहीं समझ पाए। 

खलील जिब्रान के जीवन में तकलीफें

कई तकलीफें थी उनकी जिंदगी में। 10 साल की छोटी सी उम्र में एक बड़े पत्थर से गिरने के कारण बाएं कंधे का बार-बार परेशान करनेवाला असहनीय दर्द। 39 की उम्र तक आते आते दिल की बीमारी, फिर जिगर का कैंसर और इस सबसे आगे मानसिक अस्पताल में होनेवाला उनका इलाज।

खलील जिब्रान के खलील जिब्रान होने में एक नहीं उन कई औरतों का बड़ा योगदान रहा है, जो वक्त- वक्त पर उनकी जिंदगी का हिस्सा हुईं। पर इस सबसे भी आगे कहीं उनकी वह बेचैनी थी, जिसमें उन्हें यह लगता रहा था कि वे खुद को व्यक्त नहीं कर पा रहे। अपनी क्षमताओं को जानते और उन पर भरोसा रखते हुए भी उसे एक आकार न दे पाने की कशमकश और बेचैनी ज्यादा तकलीफदेह थी जिब्रान के लिए। 

यह उनकी दृष्टि में उनकी विफलता थी और उनकी मानसिक विकलता का भी एक बहुत बड़ा कारण भी। अपनी तीसरी और अंतिम प्रेमिका मे जैदा से उन्होंने अपने इस दर्द को कुछ इस तरह बयान किया था- ‘मैं एक ऐसा ज्वालामुखी हूं, जिसका मुंह हमेशा बंद रहता है।'

दरअसल इतनी प्रसिद्धि और कई प्रसिद्ध किताबों- 'दी मैडमैन", 'दी फॉरनर', 'दी प्रॉफेट' और 'सैंड एंड फोम' के आने के बावजूद उनकी विकलता कभी कमती नहीं थी। जेब में रखी जा सकने और एक बैठक में पढ़ी जा सकने वाली इन किताबों की योजना को पूरा कर लेने पर भी खलील का सबसे बड़ा सपना था, ईसा मसीह की जिन्दगी पर एक ऐसी किताब लिखना, जैसी अबतक किसी ने भी नहीं लिखी हो। उनका यह सपना कभी पूरा न हो सका।

कहावत है कि हर सफल और प्रसिद्द व्यक्ति के पीछे किसी औरत का हाथ होता है। वह नींव की ईंट बनकर गड़ी होती है, उस प्रसिद्धि की इमारत के नीचे। तभी जाकर कहीं कोई व्यक्ति उस तरह सफल होता है। खलील जिब्रान के सन्दर्भ में भी यह उक्ति बिलकुल सच जान पड़ती है। बल्कि यह कहें तो और सही होगा कि खलील जिब्रान के खलील जिब्रान होने में एक नहीं उन कई औरतों का बड़ा योगदान रहा है, जो वक्त- वक्त पर उनकी जिंदगी का हिस्सा हुईं।

खलील जिब्रान के जीवन में जोसेफीन और मैरी

सबसे दिलचस्प बात यह कि इनके संबंधों का मुख्य आधार इनके बीच का पत्र-व्यवहार रहा। जोसेफीन और मैरी इनसे उम्र में बहुत बड़ी थीं। उनके विवाह के प्रस्ताव को इन दोनों के द्वारा ठुकराये जाने का यह भी एक बहुत बड़ा कारण था। खलील जिब्रान जिन्दगी भर कुंआरे ही रहें।

जोसेफीन का उनकी जिंदगी में तब आना हुआ था, जब वे मात्र एक चित्रकार थे। उनकी मां और बहनों को तब यह लगने लगा था कि उनकी कला में सिर्फ पश्चिमी मानकों का ही समावेश न हो। वे अपनी परंपरा और विरासत से भी जुड़ें, जिसके तार उनकी जन्मभूमि लेबनान से जुड़ते थे। 

मुश्किल यह थी कि तब तक उनकी मां उनके अन्य भाई- बहनों के साथ उन्हें अमेरिका लेकर आ चुकी थी। पिता को खलील के कलाकार होने से चिढ थी। वह मां ही थी जो किसी तरह छोटे मोटे काम करके भी उनकी शिक्षा और उनके भीतर के कलाकार, दोनों को प्रोत्साहित करती रहती। उनके गैर जिम्मेदार पिता शराब के नशे के आदी थे। गबन के आरोप में वे जेल भी जा चुके थे। खलील अरबी बोल भर सकते थे।

विधिवत शिक्षा न पाने के कारण उन्हें अरबी भाषा पढ़ना-लिखना तक नहीं आता था। मां ने उनके भविष्य के लिए एक बार फिर खलील को उनके पिता के पास लेबनान भेजना तय किया।

मृग मरीचिका बना रहा प्रेम

प्रेम पर सबसे बेहतर लिखने वाले खलील जिब्रान की जिंदगी में एक भी मुकम्मल प्रेम कहानी नहीं थी। वे जिंदगी भर जिस प्यास के पीछे भागते रहे वह सामने होकर भी उनके लिए मृग मरीचिका ही बनी रही। वहां जाने से पहले खलील की मुलाक़ात जोसेफीन से हो चुकी थी। जाने के पहले उन्होंने जोसेफीन की एक तस्वीर बनाई थी और उसे जोसेफ़ीन के पास भिजवा दिया था। 

उनके लेबनान आने के तीन महीने बाद उन्हें जोसेफीन का पहला पत्र मिला। नौ साल तक चलते इस पत्र-व्यवहार ने खलील को पिता के बुरे व्यवहार को सहने और शिक्षा में अपनी रुचि बनाये  रखने का साहस दिया। आनंद, पीड़ा, निराशा और दुःख यानी प्रेम के सभी रंग इस एक रिश्ते में जिब्रान को हासिल हुए। 

जोसेफीन के लिए अगर वे उसके ’नौजवान पैगंबर’ और 'जीनियस दोस्त' थे तो खलील जिब्रान के लिए वे उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शक। उनके पुस्तक ‘दी प्रॉफेट’ के शीर्षक का श्रेय जोसेफीन को ही जाता है, क्योंकि ये शब्द उनकी एक लंबी कविता से लिए गए थे और  ये कविता उन्हें ही इसे समर्पित भी की गयी थी।

विवाह से इनकार करने के बाबजूद जोसेफीन उनकी तरक्की की राह को हरदम संवारती रही। वह जोसेफीन द्वारा ही लगवाई हुई उनके चित्रों की प्रदर्शनी थी जिसमें उनकी मुलाकात 'एलिजाबेथ मैरी' से हुई। मेरी वहां एक शिक्षिका या फिर जज के रूप में जोसेफीन के आमंत्रण पर पहुंची थीं। खलील के चित्रों से वे इतनी प्रभावित हुईं कि उनकी जिंदगी में उन्होंने जोसेफीन की जगह ले ली। 

दो वर्षों के लिए उन्हें चित्रकला सीखने इटली भेजना हो या फिर उनकी किताबों या फिर प्रदर्शनी की रूपरेखा, मैरी की जिन्दगी का मूल मकसद अब हर तरह से उनकी प्रगति और उनका सम्मान था। यहां तक की शादी का प्रस्ताव नहीं स्वीकारने और एक अन्य लेखिका के खलील की जिंदगी में आ जाने के बावजूद मैरी प्रेयसी के पद से जरूर विस्थापित हुई हों, उनकी जिन्दगी से जोसेफीन की तरह नहीं निकाली जा सकीं। इसका प्रमाण जिब्रान की मृत्यु के बाद उनके स्टूडियो और उनके महत्वपूर्ण सामानों का मैरी के नाम किया जाना है। 

ऐसे सुंदर सम्बन्ध के असफल होने का एक कारण उम्र के 10 वर्ष के अंतराल के अलावा यह भी रहा कि खलील को हमेशा यह लगता रहा कि वे अपनी हर जरूरत (खासकर आर्थिक) के लिए मैरी पर आश्रित हैं। हालांकि मैरी ऐसा नहीं समझती थीं और वे हर जरूरतमंद की मदद को तत्पर रहतीं, पर जिब्रान को यह लगता रहा कि उनके संबंधों पर इस बात का प्रभाव पड़ सकता है। 

अपनी वसीयत में उन्होंने अपनी सारी महत्वपूर्ण चीजें मैरी के नाम कर दीं। यह भाव कुछ हद तक कर्ज मुक्ति का भी रहा हो शायद। हालांकि मेरी तब तक जिंदगी में आगे निकल चुकी थीं। वे बाकायदा शादी-शुदा थीं। तब वसीयत में मिले अपने पत्रों को एक बार उन्होंने नष्ट कर देना चाहा। लेकिन फिर उन्हें ऐतिहासिक महत्व का जानकर इन्हें पुरातत्व विभाग को सौंप दिया।

खलील की किताबों के लिए मैरी ने सीखी थी अरबी

मैरी के साथ जिब्रान के रिश्ते में सबसे बड़ी यह भी दिक्कत रही कि अपने जी जान से उनको संवारने में लगे होने के बाबजूद जिब्रान उन्हें एक लेखक के बतौर नहीं देख पाते थे। हालांकि केवल खलील की किताबों को पढ़ने, समझने और सुधारने की खातिर मैरी ने अरबी भाषा सीखी थी।

इस साहित्यिक शून्यता को ‘मे जैदा‘ ने उनकी जिदगी में आगमन से पूरा किया। वे प्रबुद्ध लेखिका और महिलाओं के अधिकार की प्रबल समर्थक थीं। यह सम्बन्ध भी पत्राचार से ही शुरू हुआ था। मैरी के बदले अब जैदा ने उनकी रचनाओं के संपादन, संयोजन और सलाहकार का दायित्व संभाल लिया था। यह रिश्ता शायद बराबरी का था। यहां खलील को कोई घुटन नहीं महसूस हो रही थी। 

खलील पर लिखे मैरी के लेखों ने अगर खलील को अरब के साहित्य समाज में उनका वर्तमान दर्जा दिलाया तो 'मे जैदा' का कद भी एक आलोचक के रूप में कद्दावर इन्हीं कारणों से हो सका। लेकिन इस बार 'मे' के साथ विवाह प्रस्ताव को स्वीकारने-अस्वीकारने की स्थिति आने से पहले ही खलील जिब्रान 10 अप्रैल 1931 को कैंसर के कारण दम तोड़ चुके थे। खलील की ही तरह आजीवन अविवाहित रहीं मे जैदा ने अपना अंतिम वक़्त एक मानसिक चिकित्सालय में गुजारा। इस यंत्रणा से वे बमुश्किल आजाद हो सकीं।

यानी प्रेम पर सबसे बेहतर लिखनेवाले खलील जिब्रान की जिंदगी में एक भी मुकम्मल प्रेम-कहानी नहीं थी। वे जिंदगी भर जिस प्यास के पीछे भागते रहे वह सामने होकर भी उनके लिए मृग मरीचिका बनी रही।