वे लंबे समय तक सत्ता के गलियारों में रहे, पर उनका घर किसी सियासी नेता के घर से हमेशा अलग ही नजर आया। वहां पर कभी नेताओं, कार्यकर्ताओं या फरियादियों की भीड़ नजर नहीं आई। हम बात कर रहे आर.के.धवन और उनके राजधानी के 151 गॉल्फ लिंक्स के बंगले की। आर.के. धवन का व्यवस्थित घर था, जो उनकी निजी जिंदगी की गोपनीयता और अनुशासित जीवनशैली को दर्शाता था। यूं तो इंदिरा गांधी के बहुत करीबी और विश्वासपात्र थे, पर आर.के.धवन की बात ही अलग थी। एक उनका घर था और दूसरा इंदिरा गांधी का 1 सफदरजंग रोड का बंगला। उनका सारा समय इन दोनों में ही बीतता था। उनके साथ पहले उनकी मां रहती थी। फिर पत्नी भी आ गई।
किस से की शादी
आर.के धवन ने 2012 में, 74 वर्ष की आयु में अपनी लंबे समय की मित्र अचला मोहन से विवाह किया, जो उनसे 15 वर्ष छोटी थीं। यह विवाह उनके जीवन में एक नया अध्याय लेकर आया, और उनका घर इस नए रिश्ते का साक्षी बना। अचला के साथ उनका रिश्ता 1973 से था, और 1990 में अचला के भारत लौटने के बाद दोनों ने 22 साल तक साथ रहने के बाद शादी का फैसला लिया। उनका घर, जो पहले एक अविवाहित व्यक्ति की सादगी को दर्शाता था, अब एक पारिवारिक जीवन का केंद्र बन गया।
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बेचते थे रूमाल और कंघियां
देश के बंटवारे के बाद आर.के.धवन का परिवार सरहद के उस पार के पंजाब के चिन्नोट शहर से कुरुक्षेत्र में आकर बसा। फिर उनका परिवार दिल्ली के करोल बाग में आया। यहां पर आर.के.धवन ने अपनी स्कूली शिक्षा को पूरा करते हुए हिन्दी-अंग्रेजी टाइपिंग और शॉर्ट हैंड सीखी। उस जमाने में टाइपिंग और शॉर्ट हैंड जानने वाले को नौकरी मिल जाया करती थी। महाशय दी हट्टी (एमडीएच) के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी ने मुझे एक बार बताया था कि आर.के.धवन करोल बाग में रुमाल और कंघिया भी बेचते थे ताकि घर वालों को कुछ कमा कर दे सकें। महाश्य जी और धवन साहब करोल बाग में पड़ोसी थे। दोनों के बहुत घनिष्ठ संबंध थे।
कैसी बदली किस्मत
कहते हैं कि एक दिन धवन साहब के मामा और कांग्रेस के नेता य़शपाल कपूर ने उन्हें प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के तीन मूर्ति स्थित कार्यालय में बुलाया। कपूर साहब वहां पर नौकरी करते थे। दरअसल उस दिन नेहरू जी के स्टाफ का हिन्दी टाइपिस्ट अवकाश पर था। उसी दिन कुछ जरूरी लेटर हिन्दी में टाइप होने थे। इसलिए उन्हें बुलाया गया। आर.के.धवन सही वक्त पर तीन मूर्ति पहुंच गए। वहां उन्होंने हिन्दी में पत्र टाइप किए। उनकी टाइपिंग में कोई गड़बड़ नहीं थी। बस, उन्हें नेहरू जी के दफ्तर में नौकरी मिल गई। उसके बाद तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कैसे इंदिरा जी की गुड बुक्स में आए
नेहरू जी की मृत्यु के बाद आऱ.के.धवन श्रीमती इंदिरा गांधी के स्टाफ में रख लिए गए। पर एक घटना ने उनकी किस्मत बदल दी। दिल्ली कांग्रेस के कद्दावर नेता और धवन साहब के करीबी रमेश दत्ता बताते थे कि एक बार इंदिरा गांधी को अपना चश्मा नहीं मिल रहा था। वह परेशान हो रही थीं। उन्हें संसद में जाना था। जब इस बात का धवन साहब को पता चला तो उन्होंने अपने कमरे से उन्हें एक नया चश्मा दे दिया।
यह देखकर इंदिरा जी खुश हो गई। पूछने पर धवन साहब ने बताया कि उन्होंने इंदिरा जी के नंबर वाले दो तीन नए चश्में करोल बाग के पंजाब मोंगा आप्टिक्लस से बनवाकर अपने पास रख लिए थे ताकि कि कभी भी अगर उनका चश्मा गुम हो जाए तो उन्हें दिक्कत न हो।
इस घटना के बाद धवन साहब इंदिरा गांधी की गुड्स बुक्स में आ गए। उन्हें इंदिरा जी ने अपने निजी स्टाफ में रख लिया। इंदिरा गांधी के आदेश-निर्देश उन्हीं के माध्यम से मंत्रियों को मिलते। इंदिरा गांधी के करीबी होने के बाद वे करोल बाग से दिल्ली के सबसे पॉश गॉल्फ लिंक्स एरिया में शिफ्ट कर चुके थे।
क्यों खास है गोल्फ लिंक्स
अब जान लेते हैं है कि आर.के.धवन का गॉल्फ लिंक्स कैसा है। इंडिया गेट के करीब ही है गोल्फ लिंक्स। इसके जैसे पॉश एरिया सारे हिन्दुस्तान में बहुत कम होंगे। गोल्फ लिंक्स एक गेटेड कॉलोनी है, जिसमें लगभग 212 प्लाट हैं, जिनका आकार 350 से 1600 वर्ग गज तक है। छोटे घर सेंट्रल एवेन्यू के साथ पेड़ों से घिरी सड़कों पर हैं, जबकि बड़े भूखंड बाहरी परिधि पर स्थित हैं। यहाँ स्वतंत्र बंगले, विला, और कुछ फ्लैट्स उपलब्ध हैं।
अधिकांश घर आधुनिक सुविधाओं जैसे बड़े लॉन, पार्किंग, और नौकरों के लिए अलग क्वार्टर्स के साथ हैं। गोल्फ लिंक्स भारत के सबसे महंगे रियल एस्टेट क्षेत्रों में से एक है। यहाँ उद्योगपति, वरिष्ठ कॉर्पोरेट अधिकारी, वकील, राजनयिक, और मशहूर हस्तियाँ रहती हैं।
यहाँ की सड़कें पुराने पेड़ों से सजी हैं, और सुबह-सुबह पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती है। कॉलोनी में एक छोटा क्लब, सामुदायिक केंद्र, और बच्चों के लिए पार्क हैं। कोई व्यावसायिक गतिविधि या बाजार न होने से यहाँ शांति बनी रहती है। यह क्षेत्र उच्च वर्ग के लिए है, जहाँ लोग शांत और विलासितापूर्ण जीवन जीते हैं। सुबह और शाम को लोग टहलते, साइकिल चलाते, या पालतू जानवरों के साथ समय बिताते हैं।
इमरजेंसी में थे जलवे
आर.के.धवन के राजनीतिक करियर का स्वर्णिम काल था इमरजेंसी का दौर और फिर श्रीमती गांधी के 1980 के लोकसभा चुनावों में विजय के बाद सत्तासीन होने का समय। उनकी सरकार और कांग्रेस पार्टी में तूती बोलती थी। उन्हें श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद देश का सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था। कहते हैं कि जब इंदिरा गांधी देश में इमरजेंसी लगाने के संबंध में कांग्रेस के बड़े नेता और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के साथ मंत्रणा कर रही थीं, तब आर.के.धवन वहां मौजूद रहते थे।
आर.के.धवन नेहरू-गांधी परिवार के प्रति सदैव निष्ठावान रहे। वे नरसिंह राव की कैबिनेट में शहरी विकास मंत्री भी रहे। कुछेक सालों को छोड़ भी दें, तो सितारे कभी डूबे ही नहीं।
उनके सामने हुई थी इंदिरा जी की हत्या
31 अक्तूब 1984 को जिस वक्त इंदिरा गांधी को गोली मारी गई थी उस समय आर.के.धवन, दिल्ली पुलिस के एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट और कुछ और अधिकारी घटनास्थल पर मौजूद थे। धवन तथा भट्ट के नेतृत्व में सुरक्षाकर्मियों ने हत्यारों को दबोचा था।
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आर.के.धवन के लंबे समय तक करीबी रहे दिल्ली भोजपुरी समाज के नेता अजीत दूबे कहते हैं कि वे जीवन भर विनम्र रहे। विनम्रता उनके व्यक्तित्व का आभूषण ही थी। वे अपनी मां की जीवनभर श्रवण की तरह सेवा करते रहे। उनका पूरा नाम राजिंदर कुमार धवन था। हांलांकि उन्हें सब आर.के. धवन के नाम से ही जानते थे।
धवन की शख्सियत में कई पहलू थे। वे एक कुशल प्रशासक थे, जिन्हें इंदिरा गांधी के “द्वारपाल” के रूप में जाना जाता था। उन्होंने संजय की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पहचाना और उनके लिए विशेष व्यवस्थाएं कीं, जैसे प्रधानमंत्री निवास में एक विशेष टेलीफोन लाइन की स्थापना।
राजेश खन्ना को लड़वाया नई दिल्ली से चुनाव
आर.के.धवन ने ही एक दौर के सुपर स्टार राजेश खन्ना को 1991 के लोकसभा में नई दिल्ली सीट से भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया था। राजेश खन्ना के मीडिया सचिव रहे सुनील नेगी बताते हैं कि धवन साहब राजेश खन्ना के चुनाव की कैंपेन खुद देख रहे थे। तब उनके घर में राजेश खन्ना काफी आते-जाते थे।
हालांकि वह चुनाव राजेश खन्ना कुछ वोटों से हार गए थे। उसके बाद जब नई दिल्ली सीट पर उप चुनाव हुआ तब भी धवन साहब सारी कैंपेन को देख रहे थे। स चुनाव में हिंदुस्तान के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना आराम से जीत गए थे। धवन साहब के कहने पर ही राजेश खन्ना की पत्नी डिंपल कपाड़िया और उनकी दोनों बेटियों ने भी कैंपेन में भाग लिया था।
राजनीतिक योगदान और विरासत
धवन साहब ने न केवल इंदिरा गांधी के साथ काम किया, बल्कि राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के कार्यकाल में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे राज्यसभा सांसद रहे और कांग्रेस के सिद्धांतों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को हमेशा सराहा गया। धवन का जीवन सादगी, समर्पण और सत्ता का एक अनूठा संगम था।
उनका घर उनकी निजी जिंदगी की गोपनीयता और सादगी का प्रतीक था, जबकि उनकी शख्सियत वफादारी, प्रभाव और प्रशासनिक कुशलता का पर्याय थी। इंदिरा गांधी के साथ उनके रिश्ते ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक विशेष स्थान दिलाया। धवन का निधन 6 अगस्त 2018 को एक युग का अंत था, लेकिन उनकी विरासत कांग्रेस और भारतीय राजनीति में हमेशा जीवित रहेगी। उनकी शवयात्रा उनके गॉल्फ लिंक्स वाले घर से ही निकली थी।