बोलते बंगले: इंदिरा गांधी क्यों रही ग्यारह मूर्ति के पास 12 विलिंगडन क्रिसेंट में?

प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद इंदिरा गांधी को अपना सरकारी आवास 1 सफदरजंग रोड खाली करना पड़ा था। इसके बाद उन्हें 12 विलिंगडन क्रिसेंट का बंगला आवंटित किया गया था।

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आप जब राजधानी में सरदार पटेल मार्ग से ग्यारह मूर्ति से मदर टेरेसा क्रिसेंट की तरफ बढ़िए। आपको सड़क के दायीं तरफ 12 नंबर का बंगला दिखाई देता है। इसका संबंध देश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से भी है। इसमें वह कुछ समय तक सपरिवार रही हैं। वह समय उनकी सियासी जिंदगी का सबसे कठिन था। श्रीमती गांधी 1977 में सत्ता से हटने के बाद मौजूदा 12 मदर टेरेसा क्रिसेंट में रहती थीं। वह जब इधर रहा करती थीं तब इस सड़क को बिलिंगडन क्रिसेंट कहा जाता था। इंदिरा गांधी 1977 के आम चुनावों में  रायबरेली से चुनाव हार गईं थीं। उनके पुत्र संजय गांधी अमेठी से चुनाव हार गए थे।

प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद श्रीमती गांधी को अपना सरकारी आवास 1 सफदरजंग रोड खाली करना पड़ा। श्रीमती गांधी को पूर्व प्रधानमंत्री के तौर पर 12 विलिंगडन क्रिसेंट का बंगला आवंटित किया गया। यह राष्ट्रपति भवन के बेहद करीब है। वह जनवरी 1980 में फिर से प्रधानमंत्री बनने तक इसी घर में रहीं। यानी इस घर में वह ढाई साल के आसपास रहीं थीं। 

गांधी परिवार की करीबी पुलपुल जयकर (Pupul Jayakar) ने  "इंदिरा गांधी: एक जीवनी" (Indira Gandhi: A Biography) में विस्तार से लिखा है कि 1977 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद इंदिरा गांधी इसी 12 विलिंगडन क्रिसेंट में रहीं। उन्होंने बताया है कि कैसे इंदिरा गांधी 1 सफदरजंग रोड से 12 विलिंगडन क्रिसेंट में शिफ्ट हुईं और कैसे यह छोटा सा घर उनके सत्ता से बाहर रहने के दौरान राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया। 

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जयकर बताती हैं कि यह ( श्रीमती गांधी) के लिए एक कठिन दौर था, लेकिन उन्होंने यहीं से अपनी राजनीतिक वापसी की रणनीति बनाई। पुपुल जयकर लिखती हैं कि 12 विलिंगडन क्रिसेंट में इंदिरा जी अपने परिवार के साथ समय बिताती थीं। जयकर ने इस स्थान को उनके जीवन की सादगी और उनके व्यक्तित्व की जटिलता के बीच एक संतुलन के रूप में देखा।

कैथरीन फ्रैंक ने "इंदिरा: द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी" (Indira: The Life of Indira Nehru Gandhi) में बताया है कि  चुनाव हारने के बाद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री आवास खाली करना पड़ा और उन्हें 12 विलिंगडन क्रिसेंट आवंटित किया गया। फ्रैंक इस दौर को इंदिरा गांधी के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ मानती हैं, जहाँ उन्हें व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों स्तरों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

कौन रहते हैं विलिंगडन क्रिसेंट में?

विलिंगडन क्रिसेंच में आमतौर पर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, भारत सरकार के सचिव स्तर या समकक्ष रैंक के अधिकारी, सशस्त्र सेनाओं के आला अफसर, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) रहते हैं। ये बंगले टाइप VII और टाइप VIII श्रेणी के हैं, जो सरकारी आवासों में सर्वोच्च श्रेणियां हैं। इनका आवंटन संपदा निदेशालयलों के मंत्रालय द्वारा निर्धारित नियमों और पात्रता के आधार पर किया जाता है।

12 विलिंगडन क्रिसेंट में कौन-कौन रहता था

श्रीमती गांधी के साथ 12 विलिंगडन क्रिसेंट  में उनके दोनों पुत्र राजीव और संजय के अलावा उनकी बहुएं सोनिया और मेनका भी रहते थे। इनके अलावा, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी रहा करते थे। उपर्युक्त बंगला लुटियंस दिल्ली के हृदय में है। पर यह 1 सफदरजंग रोड की तुलना में तो बहुत छोटा था।  भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त एम.एस. गिल  को 12 विलिंगडन क्रिसेंट तब आवंटित हुआ था जब वे केन्द्रीय मंत्री थे। उन्हें जब यह बंगला रहने के लिए मिला तो बहुत सारे लोगों ने उन्हें बताया था कि इधर ही श्रीमती गांधी भी पहले रही थीं।

कौन-कौन आता था?

श्रीमती गांधी से देश के तमाम कांग्रेसी नेता 12 विलिंगडन क्रिसेंट में मिलने-जुलने के लिए आया करते थे।1 सफदरजंग रोड की तरह यहां पर भी श्रीमती गांधी से मिलने के लिए पहले उनके सचिव आर.के.धवन से मिलना होता था। वे सुबह आठ बजे से लेकर रात के आठ- नौ बजे तक रहा करते थे। उनके अलावा, दिल्ली कांग्रेस के अर्जुन दास और रमेश दत्ता, राम बाबू शर्मा जैसे तमाम नेता भी यहां आते-जाते रहते थे। ये सब श्रीमती गांधी के घर का कामकाज भी देखते थे।

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अर्जुन दास

दरअसल 1977 की हार के बाद इंदिरा गांधी के लिए यह समय राजनीतिक रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण था। वह अपनी और कांग्रेस पार्टी को फिर से स्थापित करने के लिए काम कर रही थीं। 12 विलिंगडन क्रिसेंट में वह अपने समर्थकों, पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिलती थीं।

कौन थे अर्जुन दास और रमेश दत्ता

अर्जुन दास और रमेश दत्ता दिल्ली कांग्रेस के दिगगज नेता थे। इनकी श्रीमती गांधी के प्रति वफादारी निर्विवाद थीं। अर्जुन दास का दफ्तर लक्षीमीबाई मार्केट के डाक खाने के साथ ही था। वे संजय गांधी के करीबी थे। जब आईएनए मार्केट बनी तो अर्जुन दास नौजवान थे और उन्होंने वहां कार-स्कूटर रिपेयरिंग की वर्कशॉप शुरू कर दी। उनका काम काज तेजी से चल निकला। अर्जुन दास अपने धंधे के साथ-साथ स्थानीय राजनीति में भी सक्रिय हो गए। उनका देखते देखते दिल्ली कांग्रेस में रुतबा बढ़ने लगा। अब वे वर्क शॉप में कम ही बैठते। 

उन्होंने ही लक्ष्मी बाई नगर में संजय गांधी झील बनवाई थी। 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों को भड़काने के आरोप अर्जुन दास पर भी लगे। वह पंजाब में आतंकवाद का दौर था। अर्जुन दास की 3 सितंबर, 1985 को हत्या कर दी गई। उनकी हत्या से आईएनए मार्केट के उनके साथी-सहयोगी दहल गए। इतने बरस गुजर जाने के बाद भी आईएनए मार्केट में अर्जुन दास को लोग याद करते हैं। उनके अनुज अशोक आहूजा  दिल्ली विधान सभा के सदस्य रहे।

उधर, रमेश दत्ता भी कमाल के नेता थे। नगर निगम के लिए वे 1971 में पहली बार मिन्टो रोड से निर्वाचित हुए थे। फिर वे बार-बार इस सीट चुने जाते रहे। रमेश दत्ता दिल्ली के उपमहापौर भी रहे। उनके राजनीतिक कद को उपमहापौर के पद से मापा नहीं जा सकता है। रमेश दत्ता के चाहने वाले सारी दिल्ली में थे। उन्होंने अपना कभी कुछ नहीं बनाया। वे अविवाहित रहे। 

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रमेश दत्ता

रमेश दत्ता को दिल्ली उनके काम और फक्कड़पन की वजह से जानती थी। वे मस्त इंसान थे। उन्हें किसी स कोई गिला नहीं था। इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी समेत सभी शिखर कांग्रेसी नेताओं की रैली में भीड़ जुटाने का काम रमेश दत्ता किया करते थे। वे छोटे से नोटिस पर सैकड़ों लोग लेकर कहीं भी पहुंच सकते थे। उन्होंने नेहरु ब्रिगेड नाम की एक संस्था बनाई हुई थी। उसके कार्यकर्ता कांग्रेस की दिल्ली में होने वाली हरेक बड़ी रैली में मौजूद रहते थे। उन्होंने अपने पास आए किसी इंसान को निराश नहीं किया। वे हमेशा लोगों के साथ खड़े रहते थे।

इंदिरा गांधी, 1, सफदरजंग रोड

हालांकि इंदिरा गांधी के जीवन का लंबा वक्त 1, सफदरजंग रोड के बंगले में ही गुजरा। यह लुटियंस दिल्ली में स्थित है और राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और अन्य महत्वपूर्ण सरकारी भवनों के निकट है। इंदिरा गांधी ने अपने दो कार्यकाल (1966-1977 और 1980-1984) के दौरान इस आवास में समय बिताया। यह उनका न केवल निवास स्थान था, बल्कि राजनीतिक गतिविधियों, बैठकों और रणनीति निर्माण का केंद्र भी था। 

इस बंगले का बगीचा काफी प्रसिद्ध था, जहाँ इंदिरा गांधी अक्सर टहलती थीं। यहीं पर 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या हुई थी।

Indira Gandhi Memorial

इंदिरा गांधी की 1, सफदरजंग रोड को उनके ही सुरक्षा गार्डों, बेअंत सिंह और सतवंत सिंह, द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह घटना सुबह करीब 9:20 बजे बगीचे में उस रास्ते पर हुई, जहाँ वे एक साक्षात्कार के लिए जा रही थीं।  इंदिरा गांधी की हत्या के बाद यह बंगला कुछ समय के लिए खाली रहा। बाद में इसे इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट के तहत एक स्मारक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया।

इंदिरा गांधी मेमोरियल म्यूज़ियम: यह संग्रहालय जनता के लिए खुला है और यहाँ इंदिरा गांधी के जीवन, उनके राजनीतिक करियर, व्यक्तिगत सामान, तस्वीरें और दस्तावेज़ प्रदर्शित किए गए हैं। उनकी हत्या की जगह को भी संरक्षित किया गया है, जहाँ कांच का एक ढांचा बनाया गया है। 

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