ऐतिहासिक धरोहर हमारे लिए न सिर्फ गुज़रे ज़माने के मीलपत्थर हैं बल्कि भविष्य का रास्ता दिखाने वाले प्रकाशस्तंभ भी हैं. इन ऐतिहासिक धरोहरों का बचाव और रख-रखाव हमें हमारी पहचान और जड़ों से जोड़े रखने का काम करता है. पुरानी इमारतों, कलाकृतियों, शिलालेखों आदि को धरोहर संरक्षण की शब्दावली में मूर्त या भौतिक विरासत कहा जाता है. दुनियाभर में बिखरे अतीत के इन भौतिक अंशों को चिन्हित कर इनकी उम्र नापना और देखने सीखने के लिए इनका संरक्षण करना कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के जिम्मे है.
विरासत की निगरानी में तैनात इदारे
संयुक्त राष्ट्र के अधीन आने वाली संस्था यूनेस्को मुख्यत: विश्व धरोहर के संरक्षक के रूप में काम करती आई है. किसी भी भौतिक या संस्कृतिक धरोहर को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर उसके विकास और बचाव के लिए फंडिंग देने से लेकर उसके प्रचार प्रसार में यूनेस्को की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. आज तकरीबन 163 मुल्कों में फैली 1223 विरासती साइट हैं, जिन्हें यूनेस्को विश्व धरोहरों में शुमार किया जा चुका है.
इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद (ICOMOS) एक संगठन है जो विश्वव्यापी सांस्कृतिक धरोहरों के सुरक्षा और संरक्षण हेतु कार्यरत है। यह यूनेस्को को विश्व धरोहर स्थलों को सूचीबद्घ करने में सलाहकार की भूमिका निभाता है।
इसी तरह 'हेग कन्वेंशन' और 'ब्लू शील्ड' जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकॉल 'सशस्त्र संघर्ष' के दौरान सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए लागू किए गए हैं.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) व्यापक पुरातात्विक खुदाई करता है, अनेक ऐतिहासिक स्थलों का रखरखाव और संरक्षण करता है और महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोजों को मान्यता देता है। इस मूल संस्थान की तर्ज पर विभिन्न राज्यों के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग अपने अपने भूभागों में स्थित धरोहरों पर शोध, उत्खनन और संरक्षण करते हैं.
फ्रांसीसी वास्तुकार ली क़ारबुज़िये द्वारा डिज़ाइन किए गए शहर चंडीगढ़ को यूं तो आधुनिक विरासत के तौर पर ही देखा जाता है लेकिन चंडीगढ़ का एक हिस्सा, कैपिटल कॉम्प्लेक्स, भी यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची में शामिल है. चंडीगढ़ शहर के मूर्त विरासत के मामलों को देखने वाली प्राथमिक एजेंसी चंडीगढ़ हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी (सीएचसीसी) है। सीएचसीसी एक महत्वपूर्ण सलाहकार की भूमिका निभाती है और विरासत मामलों और चंडीगढ़ मास्टर प्लान में संशोधनों पर फैसले लेती है, लेकिन अंतिम निर्णय लेने का अधिकार चंडीगढ़ प्रशासन के पास है। एक और दिलचस्प आयाम यह है कि चंडीगढ़ के विरासती संरक्षण में, विशेष रूप से वास्तुकार ली क़ारबुज़िये के भवनों और कृतियों के संरक्षण से संबंधित चर्चाओं और फैसलों में फ्रांस सरकार और विभिन्न फ्रांसीसी संस्थाएं भी चंडीगढ़ प्रशासन के साथ सक्रिय रूप से शामिल रहती हैं।
इसी तरह गैर सरकारी संस्थाएं जैसे इनटैक और द्रोणा, धरोहरों के सूचीकरण, दस्तावेज़ीकरण और संरक्षण कार्य के लिए समर्पित रहती हैं. इन संस्थाओं द्वारा शहरी विरासत के बचाव के लिए हेरिटेज बाय- लॉ का खाका भी खींचा जाता है, जिन्हें नगरीय विकास कमेटियों और सरकारों के साथ मिलकर लागू करवाना इनका काम है. इतिहास और धरोहरों के प्रति आम जन में जागरूकता जगाने के लिए यह इदारे हेरिटेज वाक्स (धरोहरों की सैर) भी आयोजित करते हैं.
इसी क्रम में भारत के संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई "एक विरासत को अपनाओ" (adopt a Heritage) योजना चलाई गई है जिसका उद्देश्य है संरक्षित स्मारकों के रख रखाव और पर्यटकीय अनुभव को बेहतर बनाने के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं के बीच सहयोग (पीपीपी) को बढ़ावा देना। इसी योजना के अंतर्गत दिल्ली का लाल किला डालमिया ग्रुप द्वारा बतौर Monument Mitra गोद लिया गया.
विश्व विरासत के संरक्षण की बात होती है तो आगा खान सांस्कृतिक ट्रस्ट का नाम आना भी लाज़िम है क्योंकि यह संस्था इस्लामी इमारतों व समुदायों के भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक सुधार हेतु कार्यरत है। आगा खान फाउंडेशन द्वारा शहरी नवीनीकरण परियोजना के तहत हुमायूं के मकबरे और सुंदर नर्सरी के आसपास स्थित विभिन्न अलग-अलग विरासत स्थलों को पुनर्जीवित और एकीकृत करने का काम किया गया है।
सफ़ेद हाथी और दिखाने के दांत
यूं तो इन संरक्षक संस्थाओं ने दुनियाभर में फैले धरोहरों के बचाव, रख रखाव और प्रचार के लिए खूब काम किया है लेकिन कई मौकों पर ऐसे संस्थान धरोहरों के बचाव में अक्षम भी साबित हुए हैं.
तालिबान ने 21 साल पहले अफ़गानिस्तान के बामियान में छठी शताब्दी की बुद्ध प्रतिमाएं नष्ट कर दी थीं। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने छठी शताब्दी के स्मारक हागिया सोफिया को संग्रहालय से वापिस मस्जिद के रूप में परिवर्तित किया। हालही में रूसी हमलों के बाद से यूक्रेन में लगभग 53 सांस्कृतिक स्थल क्षतिग्रस्त हो गए हैं। पिछले कुछ वर्षों से इराक की सांस्कृतिक विरासत निमरुद, हत्रा और सीरिया के पलमायरा पर हमला किया गया और इन धरोहरों को आंशिक रूप से नष्ट कर दिया गया। इन सभी विरासत केंद्रों को या तो यूनेस्को विश्व धरोहरों के तौर पर मान्यता दी गई थी या अस्थायी रूप से धरोहर के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। मगर देखा जाए तो निंदात्मक बयान जारी करने के अलावा यूनेस्को इस ह्रास के बारे में कुछ ठोस नहीं कर पाया है, जो साबित करता है कि यह संस्थान एक अप्रभावी इदारा है.
आज राजनीतिक और सांप्रदायिक प्रोत्साहनों के चलते ताज महल और कुतुब परिसर जैसे धरोहरों को तोड़ने या कब्जाने के लिए आए दिन प्रदर्शन हो रहे हैं, ऐसे में यूनेस्को जैसा संस्थान मूक गवाह बने रहने के अलावा कुछ बुनियादी सुरक्षा के इंतज़ाम कर पाने में भी लाचार दिखाई पड़ता है.
यूनेस्को जैसे संस्थान पर राजनीतिक पक्षपात के इल्ज़ाम भी लगने लगे हैं. फिलिस्तीन में यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में पाँच स्थल शामिल हैं, जिनमें से चार पश्चिमी तट पर और एक गाजा पट्टी में है। इज़राइल का तर्क है कि यूनेस्को इस क्षेत्र, विशेष रूप से यरुशलम के साथ उसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को नज़रअंदाज़ करता है। नतीजतन, 2019 में, इज़राइल ने इसी का हवाला देते हुए यूनेस्को से खुद को अलग कर लिया।
'हेग कन्वेंशन' और 'ब्लू शील्ड' जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकॉल में भी धरोहरों के ह्रास के लिए दंड का प्रावधान केवल 'संघर्ष की स्थितियों' में लागू होता है। अलबत्ता, शांति काल में होने वाले धरोहरों के विनाश के खिलाफ सज़ा का प्रावधान इसमें शामिल नहीं है. इस शर्त से संरक्षण का दायरा मेहदूद ही होता है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीन भी कई धरोहरों के आने और सीमित मानव संसाधन के चलते यह संस्थान भी विरासती इमारतों की सुचारू देखरेख में अयोग्य ही साबित होता आया है. कितने ही पुरातत्विक विशिष्टता के स्थल आज भी इसके संरक्षण दायरे से बाहर हैं और कितने ही संरक्षित धरोहरों पर अवैध कब्जे हो चुके हैं. कई धरोहर तो सांस्थानिक उपेक्षा के चलते धीरे धीरे गिर भी चुके हैं जिसके बावजूद यह संस्थान बेसुध और बेबस जान पड़ता है. इस संस्थान पर हालही में बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा सरकारी दबाव में पुरातत्व सर्वेक्षण और संरक्षण करते हुए सांप्रदायिक पक्षपात करने का इल्ज़ाम भी लगाया जा रहा है.
चंडीगढ़ शहर के कुछ बुद्धिजीवियों का मत है कि चंडीगढ़ को धरोहर कहना और आधुनिक बताना पारस्परिक विरोधाभासी विचार हैं. इनका मानना है कि धरोहर का तग़्मा लगाने के चलते चंडीगढ़ एक जीवित संग्रहालय में तब्दील हो चुका है, जिसमें बदलते युग के साथ परिवर्तन की कोई संभावना नहीं है. कई समूहों का यह भी कहना है कि फ्रांसीसी सरकार की चंडीगढ़ शहर के धरोहर से जुड़े मामलों में मदालखत भारत की संप्रभुता पर सवालिया निशान भी दागती है. अकेले चंडीगढ़ शहर में ही धरोहरों से जुड़े मामलों पर फैसले और निगेहबानी करने के लिए कई संस्थाएं कार्यरत है लेकिन विडंबना देखिए कि बावजूद इसके तस्कर यहां से कार्बुजिये और पियर जॉनरे द्वारा डिज़ाइन किया गया फर्नीचर गैरकानूनी तरीके से विदेशों में नीलाम कर रहे हैं और एजेंसियां खाली हाथ मल रही हैं.
आमदम गुफ्तम बर्खास्तम
ऐसा लगता है कि सरकारी संस्थानों की सुस्त कार्यप्रणाली अब निजी संस्थानों की तरफ भी रुख कर रही है. धरोहरों के संरक्षण में तैनात यह एजेंसियां न तो पुरातात्विक एहमियत वाले धरोहरों को लेकर संजीदा दिखाई देती हैं, न मौजूदा सूचीबद्ध विरासती साइटों के रख रखाव को पुख्ता रख पा रही हैं. इन संस्थानों के वार्षिक सम्मेलनों में सदस्य जुटते हैं, मिलते बात करते हैं, साथ निवाला तोड़ते हैं और उम्मीदों और वादों के साथ वापिस रवाना होते हैं मगर धरोहरों के हालात वहीं के वहीं रहते हैं और संस्थागत लापरवाही के चलते ये ऐतिहासिक निशानियां एक एक करके जमींदोज़ होती चली जाती हैं. ऐसे में इन संस्थानों की तरफ से एक रस्मी फातेहा पढ़कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाया जाता है.
ऐसे ही बचे हुए लावारिस धरोहरों पर नशेड़ियों, कब्जेदारों और खरपतवार का स्थाई जमावड़ा बना रहता है, इतिहास पर नित नए दावे रोज होते रहते हैं और संरक्षण संस्थानों के भीतर आंतरिक चुनावों और फंडिंग पर चर्चाएं उसी गति से चलती रहती है।