साउथ दिल्ली के एलिट फ्रेंड्स कॉलोनी के ए-50 नंबर के बंगले के आसपास अब पहले वाली रौनक नजर नजर नहीं आती। यहां पर एक जमाने में शक्तिशाली नेताओं, अभिनेताओं, बड़े उद्योगपतियों, असरदार सरकारी बाबुओं वगैरह का दिन-भर आना जाना लगा रहता था। ये सब योग गुरु से चंदेक मिनट मिलकर अपने को धन्य महसूस करते थे। दरअसल ए-50 आशियाना था धीरेन्द्र ब्रहमचारी का। यहीं उनका परिवार भी रहता था। तब उनके पूरे जलवे थे। उनके भव्य व्यक्तित्व को देखकर उनसे कोई भी प्रभावित हो जाता था।
अपनी ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करने वाले लम्बे धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने अपने शरीर को देखने लायक बना रखा था। वह धीरे धीरे चर्चा के केंद्र में आने लगे। उनके बंगले के बाहर उनकी नेम प्लेट पर हिन्दी में ‘धीरेन्द्र ब्रहमचारी’ लिखा हुआ था। वे अपने घर के ड्राइंग रूम में मिलने वालों को वक्त देते थे। ड्राइंग रूम में उनकी बहुत सारी फोटो लगी हुईं थीं।
किसकी थी घर तक एंट्री
धीरेन्द्र ब्रहमचारी की पहुंच प्रधानमंत्री आवास 1 सफदरजंग रोड तक थी। यह सारा देश जानता था। वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के योग गुरु थे। वे लगभग रोज ही इंदिरा गांधी को योग करवाने जाते थे। उनके शिष्य बाल मुकुंद भी 1 सफदरजंग रोड जाते थे। धीरेन्द्र ब्रहमचारी 1978 से 1983 के दरम्यान दूरदर्शन पर योग की पाठशाला भी चलाते थे। उसमें वे अपने शिष्य बाल मुकुंद से विभिन्न योग क्रियाएं करने के लिए कहा करते थे।
कुछ साल पहले तक महिपालपुर में एकाकी जीवन गुजार रहे बाल मुकुंद ही धीरेन्द्र ब्रहमचारी के साथ आर.के धवन, बूटा सिंह, यशपाल कपूर वगैरह की भी योग की क्लास लिया करते थे। उन्होंने अपने तमाम शिष्यों में बाल मुकुंद को दूरदर्शन पर योग पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम के लिए चुना था। बाल मुकुंद की धीरेन्द्र ब्रहमचारी के फ्रेंड्स कॉलोनी वाले बंगले में भी एंट्री थी। उन्होंने एक बार बताया था कि फ्रेंड्स कॉलोनी में धीरेन्द्र ब्रहमचारी के भाई बंधु भी रहते थे।
जब दूरदर्शन पर छाए थे
धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले योग कार्यक्रम से उन्हें सारा देश जानने लगा था। उसी कार्यक्रम की बदौलत ही उन्हें अखिल भारतीय पहचान मिली।
बाल मुकुंद बताते थे, ''गुरुजी मौन प्रिय थे और उनका योग का ज्ञान असाधारण था। वे अंजान लोगों के लिए भी बहुत मददगार थे, हालांकि बाद में उन्होंने उन लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया जो उनके पास बार-बार मदद मांगने आते थे।'' अपने टीवी पर आने वाले शो के दौरान एक महिला प्रस्तोता, डॉली दर्शकों के प्रश्न धीरेन्द्र ब्रहमचारी से पूछती थी और वे उनके उत्तर देते थे। वे डॉली को डॉली जी कहते थे।
31 अक्तूबर 1984 के बाद क्या हुआ
कहते हैं कि वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता। श्रीमती गांधी की 31 अक्टूबर, 1984 को जघन्य हत्या के बाद धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के सितारे गर्दिश में चले गए। इंदिरा गांधी की हत्या से धीरेन्द्र ब्रहमचारी टूट गए। उनकी देखरेख में ही इंदिरा गांधी की अत्येष्टि हुई। संजय गांधी की अत्येष्टि की भी व्यवस्था धीरेन्द्र ब्रहमचारी देख रहे थे। इसके साथ ही उनके सितारे गर्दिश में आने लगे। दूरदर्शन पर उनका कार्यक्रम बंद हो गया था।
कहते हैं कि राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनते ही उनका कार्यक्रम बंद करवा दिया था। अब वे घर में ही रहन लगे थे। घर से बाहर कम ही निकलते। उनसे मिलने वालों की संख्या घटते-घटते खत्म हो गई। कहते ही हैं कि दिल्ली तो चढ़ते सूरज को सलाम करती है। अब धीरेन्द्र ब्रहमचारी सत्ता प्रतिष्ठान से दूर हो गए तो उनसे सबने दूरी बना ली।
कब आए दिल्ली में
बिहार के मधुबनी से संबंध रखने वाले धीरेन्द्र ब्रहमचारी नेहरू 1958 में ही दिल्ली आ गए थे। उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह ज्ञात है कि उन्होंने कम उम्र में ही योग और ध्यान का अभ्यास शुरू कर दिया था। उन्होंने स्वामी कार्तिक महाराज से योग की शिक्षा प्राप्त की। वे योग विद्या में निपुण थे। उस दौर में योग को लेकर आज की तरह की जागरूकता भी नहीं थी। वे गजब के महत्वाकांक्षी शख्स थे। वे जुगाड़ करके तीन मूर्ति भवन में प्रवेश पा गए।
वहां वे पंडित नेहरू की पुत्री इंदिरा गांधी को योग की बारीकियां समझाने लगे। वे बाद के दौर में इंदिरा गांधी के सलाहकार की भूमिका में आ गए थे। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी उन्हें एक आध्यात्मिक सलाहकार और विश्वासपात्र मानती थीं। हालांकि इंदिरा गांधी शायद ही कभी उनके फ्रेंड्स कॉलोनी वाले घर में गईं। आपातकाल के दौरान, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का प्रभाव चरम पर था, और उन पर सत्ता के दुरुपयोग के कई आरोप लगे। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी अपने जीवनकाल में कई विवादों में घिरे रहे। उन पर भूमि हड़पने, अवैध हथियार रखने और वित्तीय अनियमितताओं के भी आरोप लगे।
कब वक्त ही वक्त था
धीरेन्द्र ब्रहमचारी के पास इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद समय ही समय था। अब इस बेदिल दिल्ली ने उनसे दूरियां बना ली थीं। उनसे उनके गिने-चुने मित्र मिला करते थे। वे मीडिया से भी खफा रहते थे कि क्योंकि वह उनको लेकर तमाम नेगटिव खबरें छापता था। पर वे कुछ खेल पत्रकारों को अपने घर में बुलाकर कहने लगे थे कि योग को देश में खेल का दर्जा मिले तो बात बने। उन्हीं के प्रयासों से सरकारी स्कूलों में योग को एक विषय के रूप में मान्यता मिली। जिसकी वजह से बड़ी संख्या में योग जानने वालों को सरकारी स्कूलों में नौकरी भी मिल गई।
विश्व यतन योग आश्रम में कौन
राजधानी के दिल में स्थित गोल डाकखाना से चंद कदमों की दूरी पर स्थित सरकारी कर्मियों के फ्लैटों के पार्क में सुबह योग करने वाले अधिकतर उत्साही लोगों को मालूम नहीं है कि उनके घरों के पास कभी विश्व यतन योगाश्रम में देश के पहले सेलिब्रेटी योग गुरु धीरेन्द्र ब्रह्मचारी अपने शिष्यों को योग की बारीकियां सीखा रहे होते थे। उस दौर में यहां कारों की लाइनें लग जाया करती थीं। इधर ही देश की नामवर हस्तियां योग गुरु से मिलने आती थीं। लंबे कद और काले केश वाले धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का कसरती बदन था। उन्हें देखकर कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। उनका व्यक्तित्व सच में बड़ा ही चुंबकीय था।
कैसे पहुंचे शिखर पर
पूर्व आईएएस अधिकारी और लेखक अमिताभ पांडे बताते हैं-“ मेरे पिता 1958 में दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव थे और हम 221 राउज एवेन्यू, (अब गांधी शांति प्रतिष्ठान) में रहते थे। मेरे पिताजी के एक साहयक एक दिन एक योग गुरु को हमारे घर लाए ताकि वे हमें योग से परिचित करा सकें। कुछ महीनों तक वे नियमित रूप से हमारे घर आकर हमें योग की शिक्षा देते रहे। कुछ समय के बाद वे धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के रूप में प्रख्यात हुए। मेरे पास अभी भी उनके द्वारा दी गई 'सूक्ष्म व्यायाम' नाम की एक किताब कहीं है। वह बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे।"
किस पर डलवाया दबाव
अपनी आत्मकथा, 'मैटर्स ऑफ डिस्क्रिशन' में, पूर्व प्रधानमंत्री आई.के. गुजराल लिखते हैं, "जब मैं श्रीमती इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में निर्माण और आवास मंत्रालय देख रहा था, तो योग गुरु धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने मुझ पर गोल डाकखाना के पास के एक खाली प्लाट को योग आश्रम के लिए देने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया था। जब मैं उनके दबाव में नहीं झुका, तो एक दिन उन्होंने मुझे फोन करके धमकाया कि अगर मैंने उनके अनुरोध पर कार्रवाई नहीं की, तो वे यह सुनिश्चित करेंगे कि मुझे कैबिनेट से हटा दिया जाए या पदच्युत कर दिया जाए।”
एक हफ्ते बाद जब केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ, तो गुजराल को हटा दिया गया और उमा शंकर दीक्षित को उनकी जगह लाया गया। दीक्षित ने भी उन्हें खुश नहीं किया, हालांकि अंत में उन्हें वहां एक प्लॉट मिल गया। आपको अब भी बहुत से लोग मिल जाएंगे जो धीरेन्द्र ब्रहमचारी को इसलिए याद करते हैं कि उन्हीं के प्रयासों से पूरे भारत में केंद्रीय विद्यालयों ने योग शिक्षकों की भर्तियां शुरू हुईं।
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धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का 9 जून, 1994 को जम्मू में एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया था। हालांकि, उनकी मृत्यु के बाद से भारत में ना जाने कितने योग गुरु आए और उभरे, लेकिन धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का कद सबसे ऊँचा बना रहा। उनकी मृत्यु के बाद, ये सवाल पूछे जाते रहे कि कैसे एक योग गुरु फ्रेंड्स कॉलोनी में एक भव्य घर खरीद सकता है और कई निजी विमान रख सकता है, जबकि उसका कोई दूसरा व्यवसाय नहीं था?
खैर, अब धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के बंगले आसपास रहने वाले भी कई लोगों को नहीं पता कि यहां रहता था भारत का ताकतवर योग गुरू।