अभी चंदेक दिन पहले अखबारों में एक छोटी सी खबर छपी कि बसपा की लीडर सुश्री मायावती अपनी 11 सरदार पटेल मार्ग की कोठी में शिफ्ट हो रही हैं। आज से बीसेक साल पहले इस कोठी को कहा जाता था ‘शमा घर’। यह आशियाना था दिल्ली से प्रकाशित होने वाली उर्दू-हिन्दी की मशहूर पत्रिकाओं शमा, सुषमा, बानो वगैरह के मालिक देहलवी खानदान का। देहलवी खानदान 1950 के दशक में दिल्ली-6 को छोड़कर सरदार पटेल मार्ग की शानदार कोठी में रहने के लिए आ गया था। इसे कुछ लोग 'शमा कोठी' भी कहते थे। ये दिल्ली के सांस्कृतिक जीवन की एक बेहद खास जगह हुआ करती थी।
शमा घर में मुशायरे और फिल्मी सितारे
शमा घर, जो 11 सरदार पटेल मार्ग पर स्थित थी, में देहलवी कुनबा एक छत के नीचे रहा करता था। इस बंगले में नियमित रूप से मुशायरे, कव्वाली, और साहित्यिक गोष्ठियाँ आयोजित होती थीं, जिनमें उस दौर के बड़े शायर और फिल्मी सितारे शामिल होते थे। सादिया देहलवी ने अपनी किताब Jasmine and Jinns : memories and recipes of my Delhi में लिखा है कि शमा घर में इस्मत चुगताई, कैफी आजमी, सरदार जाफरी, मजरूह सुल्तानपुरी, और कृष्ण चंदर जैसे शायर और साहित्यकार का आना-जाना लगा रहता था। इसके अलावा, फिल्मी दुनिया के सितारे जैसे मीना कुमारी, दिलीप कुमार, राज कपूर, नर्गिस, सायरा बानो, देव आनंद, शशि कपूर, धर्मेंद्र, वहीदा रहमान, कमाल अमरोही, और महबूब खान भी यहाँ नियमित रूप से आते थे।
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इस लेखक को 1990 के दशक में कई बार शमा घर में जाने का मौका मिला। वहां पर जाना इसलिए होता था क्योंकि सादिया देहलवी के भाई फहीम देहलवी से मेरे घनिष्ठ संबंध थे। उस दौर में शमा घर में हमेशा रौनक रहा करती थी। मेहमानों का स्वागत किया जाता था।
शमा घर में आयोजित होने वाली महफिलों ने दिल्ली के सांस्कृतिक परिदृश्य को समृद्ध किया। यहाँ घंटों शेरो-शायरी, समाज, और विभिन्न मुद्दों पर चर्चाएँ होती थीं। इस माहौल ने सादिया की शख्सियत को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मील का पत्थर थीं शमा-सुषमा
शमा पत्रिका की शुरुआत 1938 में हाफिज युसुफ देहलवी ने की थी। वे देहलवी परिवार के प्रमुख और सादिया देहलवी के दादा थे। यह उर्दू की एक साहित्यिक और सांस्कृतिक मासिक पत्रिका थी, जो जल्द ही अपनी गुणवत्ता और सामग्री के लिए प्रसिद्ध हो गई। शमा में फिल्मी दुनिया के अलावा गजलें, कविताएं, कहानियां और भी छपती थीं। इसने उर्दू साहित्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उस दौर के कई बड़े साहित्यकारों और फिल्मी हस्तियों से इसका गहरा नाता रहा।
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सुषमा और बानो जैसी अन्य पत्रिकाएँ भी देहलवी परिवार के प्रकाशन घराने का हिस्सा थीं। सुषमा भी फिल्मी पत्रिका थी। यह हिंदी पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय थी, जबकि बानो विशेष रूप से महिलाओं के लिए समर्पित थी। इन पत्रिकाओं में सामाजिक मुद्दों, महिलाओं के अधिकारों, और सांस्कृतिक विषयों पर लेख छपते थे। इनका संपादन देहलवी परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता था। इसका दफ्तर आसफ अली रोड में हुआ करता था।
मशहूर लेखक फिरोज बख्त अहमद कहते हैं कि शमा और सुषमा का प्रभाव इतना व्यापक था कि इसके नाम पर देहलवी परिवार के बंगले को 'शमा कोठी' और ‘शमा घर’ कहा जाने लगा। यह बंगला अपनी भव्यता की वजह से मशहूर था।
जानकार बताते हैं कि शमा कोठी को बसपा नेता मायावती ने 2001 में खरीद लिया, जिसके बाद देहलवी परिवार निजामुद्दीन ईस्ट और गुरूग्राम में रहने लगा। इस बंगले का बिकना देहलवी परिवार और दिल्ली के सांस्कृतिक इतिहास के लिए एक बड़ा धक्का बदलाव था। इसके साथ ही देहलवी खानदान की पत्रिकाएं भी बंद हो गईं।
पंजाबी मुसलमान देहलवी परिवार
देहलवी खानदान दिल्ली के पंजाबी सौदागरन समुदाय से ताल्लुक रखता था। इस परिवार ने न केवल पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान दिया, बल्कि साहित्य, संस्कृति और सामाजिक कार्यों में भी अपनी छाप छोड़ी। हाफिज युसुफ देहलवी, परिवार के संस्थापक और शमा पत्रिका के प्रकाशक, ने उर्दू साहित्य को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। उनके बेटे, युनूस खान देहलवी, जो सादिया के पिता थे, ने महज 13 साल की उम्र में बच्चों के लिए उर्दू पत्रिका ‘खिलौना’ शुरू की थी। खिलौना के पुराने पाठक और दिल्ली-6 के बिजनेसमैन मोहम्मद तकी कहते हैं कि यह पत्रिका बच्चों के साहित्य को समर्पित थी और उस समय काफी लोकप्रिय थी।
देहलवी परिवार की पत्रिकाएँ न केवल साहित्यिक थीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलावों को भी दर्शाती थीं। मोहम्मद तकी कहते हैं कि उनके रिश्तेदारों के घर में शमा, सुषमा या खिलौना अवश्य आती थीं। अब आसफ अली रोड में इनके दफ्तर को देखकर मन उदास हो जाता है।
अगर बात बानो की करें तो इसका संपादन सादिया देहलवी ने किया। सादिया देहलवी (1957-2020) देहलवी परिवार की एक प्रमुख सदस्य थीं, जिन्होंने लेखिका, स्तंभकार, इतिहासकार, और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनका बचपन शमा कोठी में बीता। सादिया का व्यक्तित्व विद्रोही और स्वतंत्र सोच वाला था। उन्होंने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन अपनी शर्तों पर जीवन जीने का साहस दिखाया।
सादिया का व्यक्तिगत जीवन उनकी स्वतंत्र और विद्रोही सोच को दर्शाता है। उन्होंने दो शादियाँ कीं, जिनमें से एक शादी एक पाकिस्तानी व्यक्ति से हुई थी। यह शादी कुछ सालों तक चली, लेकिन पाकिस्तान का रूढ़िगत सामाजिक ढांचा उन्हें पसंद नहीं आया, और वे दिल्ली लौट आईं। उनकी पहली शादी तब हुई थी, जब वे 20 साल की भी नहीं थीं। सादिया ने अपने जीवन को अपनी शर्तों पर जीने का फैसला किया, जो उस समय के लिए एक साहसिक कदम था।
खुशवंत सिंह के साथ सादिया
सादिया देहलवी और मशहूर लेखक खुशवंत सिंह की दोस्ती दिल्ली के साहित्यिक और सांस्कृतिक हलकों में प्रसिद्ध थी। खुशवंत सिंह ने एक जगह लिखा है- "सादिया देहलवी ने मुझे भरपूर प्यार दिया।" सादिया का निकाह खुशवंत सिंह के सुजान सिंह पार्क वाले घर में हुआ था, जिसकी व्यवस्था उनकी करीबी दोस्त कामना प्रसाद ने की थी।
अगर बात फिर से शमा-सुषमा और देहलवी परिवार की करें तो माना जा सकता है कि यह दिल्ली के सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा रहा। शमा कोठी, जो कभी दिल्ली का सांस्कृतिक केंद्र थी, ने कई पीढ़ियों को प्रेरित किया। अफसोस कि अब शमा घर, शमा कोठी और शमा प्रकाशन सब कुछ यादों में ही सिमट कर रह गया है।