भारतीय एयरफोर्स के जाबांजों को प्रेरणा मिलती है राजधानी के 23 अकबर रोड के बंगले में रहने वाले एक योद्धा से। ये भारतीय एयर फोर्स के एयर चीफ मार्शल का बंगला है। देश की स्वंतत्रता से भी पहले से ही 23 अकबर रोड को भारत के एयर फोर्स के प्रमुख का आवास बना दिया गया था। इसमें अंतिम रायल इंडियन एयर फोर्स के एयर वाइस मार्शल मेरिडिथ थामस रहे थे। 

इस ओहदे पर रहने वाला अफसर ब्रिटेन की साउथ ईस्ट एऱिया कमांड का प्रमुख होता था। 1950 में भारत के गणतंत्र देश बनने के बाद रॉयल शब्द को हटा दिया गया था। 23 अकबर रोड के बंगले में एयर फोर्स चीफ अपने सहयोगयों के साथ देश की सरहदों और आकाश की रखवाली करने के सवाल पर बैठकें भी करते हैं।

सबसे पहले कौन सा भारतीय एयर चीफ मार्शल रहा

23 अकबर रोड में भारतीय एयरफोर्स के पहले एयर चीफ मार्शल सुब्रतो मुखर्जी रहे। उनको ‘फादर ऑफ द इंडियन एयर फोर्स’ कहा जाता है। सुब्रतो मुखर्जी के पिता सतीश चंद्र मुखर्जी आईसीएस अफसर थे। सुब्रत मुखर्जी 1932 में एयर फोर्स में शामिल हुए। उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध में भाग लिया। भारत की आजादी के बाद उन्होंने देश की एयरफोर्स का आधुनिकीरण करने में अहम रोल अदा किया। वे जाबांज फाइटर पायलट थे। 

Subroto Mukherjee
सुब्रतो मुखर्जी Photograph: ( Wikimedia Commons)

एयर चीफ मार्शल सुब्रतो मुखर्जी का 8 नवंबर 1960  को टोक्यो में खाना खाते समय निधन हो गया था। उनके शव को दिल्ली लाया गया और पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। उसके बाद उनके नाम पर सुब्रतो पार्क बना। यहां पर एयऱफोर्स से जुड़े विभिन्न स्कूल, दफ्तर और आवास हैं। उनके जीवनकाल में ही राजधानी में एयरफोर्स स्कूल 1955 में खुल गया था। इसका उदघाटन एयर चीफ मार्शल सुब्रत मुखर्जी ने ही किया था। इस स्कूल को खोलने का मकसद ये था ताकि एयर फोर्स से जुड़े लोगों के बच्चों को स्तरीय शिक्षा उनके घरों के पास ही मिल जाए।

कौन-कौन रहे 23 अकबर रोड में

देश के आजाद होने के बाद 23 अकबर रोड में सुब्रतो मुखर्जी, अर्जन सिंह, इदरीस हसन लतीफ, पी.सी. लाल, एन.ए.के ब्राउन जैसे वायुसेनाध्यक्ष रहे। ये सभी फाइटर पायलट थे। इन सबने जंगों में दुश्मन के दांत खट्टे किए थे। अर्जन सिंह बताते थे कि वे एयर हाउस में पहली मर्तबा जनवरी, 1945 को गए थे। वे दूसरे विश्व युद्ध से लौटे थे। वे तब इस बंगले में एयर वाइस मार्शल मेरिडिथ थामस में मुलाकात करने के लिए गए थे। अर्जन सिंह इसमें 1964 से 1969 तक रहे।  उन्हें भारत सरकार ने मार्शल आफ इंडियन एयर फोर्स भी बनाया था। 

Arjan Singh
अर्जन सिंह Photograph: (IANS)

एयर हाउस में ही रहने का सौभाग्य 1971 की जंग के एक नायक एयर चीफ मार्शल पी.सी. लाल को भी मिला। दूसरे विश्वयुद्ध से लेकर 1971 की जंग को पीसी लाल ने देखा था। वर्ष 1969 में वायुसेना प्रमुख का दायित्व संभालने के बाद उन्होंने वायुसेना को भविष्य के युद्ध के लिए तैयार करने पर ध्यान लगाया औऱ इसका फायदा 1971 के युद्ध में मिला। उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।

बार-बार पाक की गर्दन मरोड़ने वाला

23 अकबर रोड में इदरीस हसन लतीफ भी रहे। उन्होंने 1971 की जंग में पाकिस्तानी सेना के गले में अंगूठा डाल दिया था। उस विजय का काफी हद तक श्रेय लतीफ को भी जाता है। वे जंग के समय शत्रु से लोहा लेने की रणनीति बनाने के अहम कार्य को अंजाम दे रहे थे। 

यदि भारत ने 1971 की जंग में पाकिस्तान की कमर तोड़ डाली थी, तो इसका कहीं ना कहीं श्रेय इदरीस हसन लतीफ को भी जाता है। वे 1971 के युद्ध के दौरान एयर वाइस मार्शलके पद पर थे। वे जंग के समय शत्रु से लोहा लेने की रणनीति बनाने के अहम कार्य को अंजाम दे रहे थे। 

लतीफ लड़ाकू विमानों के उड़ान भरने, युद्ध की प्रगति तथा यूनिटों की आवश्यकताओं पर भी नजर रख रहे थे। लतीफ शिलांग स्थित पूर्वी सेक्टर में थे जब पाकिस्तान ने हथियार डाले थे। दिल्ली कैंट में उस महान योद्धा के नाम पर एक सड़क भी है।

पहले फ्लाईपास्ट का थे हिस्सा

एयर चीफ मार्शल इदरीस हसन लतीफ का देश के पहले गणतंत्र दिवस से एक अलग और खास संबंध रहा। दरअसल उन्हीं के नेतृत्व में उस गणतंत्र दिवस पर फ्लाईपास्ट हुआ था जिसे देखकर देश मंत्रमुग्ध हो गया था। देश ने पहले कभी लड़ाकू विमानों को अपने सामने कलाबाजियां खाते नहीं देखा था। लतीफ तब स्क्वाड्रन लीडर थे। वे और उनके साथ हॉक्स टेम्पेस्ट लड़ाकू विमान उड़ा रहे थे। तब लड़ाकू विमानों ने वायुसेना के अंबाला स्टेशन से उड़ान भरी थी। 

Idris Hasan Latif
इदरीस हसन लतीफ Photograph: (फाइल फोटो)

लतीफ ने 1948 और 1965 की जंगों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था। लतीफ के एयर फोर्स चीफ के पद पर रहते हुए इसका बड़े स्तर पर आधुनिकीकरण हुआ। उन्होंने जगुआर लड़ाकू विमान की खरीद करने के लिए सरकार को मनाया था।

‘एयर हाउस’ शीर्षक से छपी  किताब

‘एयर हाउस’ शीर्षक से एक किताब सन 2011 में प्रकाशित हुई थी। ये तब के वायुसेना प्रमुख पी.वी. नाइक की पहल पर लिखी गई थी। इसमें एयर हाउस के इतिहास को समेटा गया है। 23 अकबर रोड पर हर साल 8 अक्तबर को एयर फोर्स डे पर एक कार्यक्रम आयोजित होता है। जिसमें देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री वगैरह भाग लेते हैं। 

एयर हाउस से कुछ दूर है वायु सेना भवन। ये रफी मार्ग पर है। इसके नाम से ही स्पष्ट है कि ये वायुसेना से संबंधित होगा। ये भारतीय वायुसेना का मुख्यालय है। इसमें वायुसेना प्रमुख और उनके वरिष्ठ सहयोगी देश की सुरक्षा की रणनीति को अंतिम रूप देते हैं। ये 1964 में बन गया था। इसके मेन गेट पर कुछ लडाकू  विमानों के म़ॉडल पड़े हैं। इन्हें देखकर समझ आ जाता है कि ये वायुसेना से संबंधित कोई जगह होगी। 

दरअसल वायु भवन, उद्योग भवन,कृषि भवन और रेल भवन 1965 तक बनकर तैयार हो गए थे। इनके डिजाइन गणेश भीखाजी देवोलिकर  और हबीब रहमान ने मिलकर तैयार किए थे। ये दोनों  केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी)  से जुड़े थे। इन दोनों को केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों की अहम इमारतों का डिजाइन करने का श्रेय़ जाता है।

कैसा है एयर फोर्स चीफ का बंगला?

राजधानी का अति महत्वपूर्ण एरिया माना जाता है अकबर रोड। यह क्षेत्र अपनी हरियाली, सुरक्षा, और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है।  एयर चीफ मार्शल के बंगला टाइप-8 होता है। यह बंगला विशाल है, जिसमें बड़ा लॉन, कर्मचारी क्वार्टर, और उच्च सुरक्षा व्यवस्था रहती है। ये आवास न केवल निवास के लिए, बल्कि आधिकारिक बैठकों और स्वागत समारोहों के लिए भी उपयोग किया जाता है। इसमें आधुनिक सुविधाएं, जैसे कि 24/7 सुरक्षा, बिजली और पानी की निरंतर आपूर्ति, रखरखाव कर्मचारी, और बागवानी सेवाएं शामिल होती हैं।

और क्या-क्या अकबर रोड पर?

पहले लोकसभा अध्यक्ष से लेकर मौजूदा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला 20 अकबर रोड के सरकारी बंगले में ही रहे हैं।  पहली लोकसभा के 1952 में गठन के साथ ही जामुन और अमलतास के पेड़ों से लबरेज अकबर रोड के 20 नंबर के बंगले का भारतीय संसद के निचले सदन से अटूट संबंध कायम हो गया था। वो रिश्ता अब भी बना हुआ है।दरअसल 1952 में कांग्रेस के गणेश वासुदेव मावलंकर लोकसभा के निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए थे। मावलंकर जी को 20 अकबर रोड का बंगला आवंटित हुआ। उसके बाद इसी डबल स्टोरी बंगले में लोकसभा अध्यक्ष रहते रहे।

कहां से कहां तक अकबर रोड

दरअसल अकबर रोड पर आजादी के बाद से ही सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण हस्तियां रहती रहीं हैं। अकबर रोड का आगाज इंडिया गेट से होता है और यह सड़क रेस कोर्स तक जाती है। करीब पौने तीन किलोमीटर लंबी इस सड़क के दोनों तरफ कुल जमा 26 सरकारी बंगले हैं। इधर कुछ प्राइवेट बंगले भी हैं।  इधर के बंगलों की छतों पर आपको सुबह-शाम मोर मंडराते हुए मिल जाएंगे।

Akbar Road

कांग्रेस से 24 अकबर रोड का भी जुड़ाव

संयोग से इसी अकबर रोड के 24 नंबर के बंगले में कांग्रेस का 1978 से लेकर हाल तक मुख्यालय भी चला। दरअसल एक जमाने में इस बंगले को बर्मा हाउस भी कहते थे। तब इसमें बर्मा ( म्यांमार ) की भारत में एंबेसेडर दा खिन केय रहा करती थीं। वो म्यांमार की शिखर नेता आंग सान सू की मां थीं। इसी सड़क पर इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट भी है।  इसी अकबर रोड के 12 नंबर के बंगले में विजय लक्ष्मी पंडित रहा करती थीं। वो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की छोटी बहन थीं।