लुटियंस दिल्ली के त्यागराज मार्ग (पहले डुप्ले रोड) में कोई पटौदी हाउस नहीं है, पर मंसूर अली खान पटौदी, उनकी पत्नी शर्मिला और इनके बच्चे- सैफ, सोहा और सबा यहां के 2 त्यागराज लेन के शानदार बंगले में लंबे समय तक रहे। मंसूर अली खान पटौदी इसी बंगले में शर्मिला टेगौर को 27 दिसंबर, 1968 में शादी के बाद बहू बनाकर लेकर आए थे। ये कैबिनेट मंत्रियों को मिलने वाला 8 बैड रूम का भव्य बंगला है। इसमें दर्जनों पेड़ लगे हुए हैं, जो गर्मियों में मीठी बयार देते हैं।  

दरअसल इफ्तिखार अली खान पटौदी सीनियर की 5 जनवरी 1952 को दिल्ली पोलो ग्राउंड में एक पोलो मैच के दौरान दुर्घटना होने के कारण मौत हो गई थी। उस समय उनके पुत्र मंसूर अली खान पटौदी भी वहीं थे। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मंसूर अली खान पटौदी की मां श्रीमती साजिदा सुल्तान के नाम पर त्यागराज लेन में बंगला आवंटित कर दिया था। साजिदा सुल्तान को समाज सेविका के कोटे से बंगला मिला। साजिदा सुल्तान की साल 2003 में मृत्यु के बाद पटौदी परिवार को उस बंगले को खाली करना पड़ा।

Sajida Sultan
साजिदा सुल्तान

 पटौदी के बाद कौन रहा वहां?

कहने वाले तो कहते हैं कि पटौदी साहब ने हरचंद कोशिश की थी कि बंगला उनकी पत्नी शर्मिला के नाम पर आवंटित हो जाए। पटौदी के बंगला खाली करने के बाद इसमें कई सालों तक कांग्रेस के नेता और केन्द्रीय मंत्री सुरेश कलमाडी भी रहे। इस सारे एरिया में बंदरों का कब्जा रहता है। वे सब बंगलो को अपने पिताजी का समझकर मौज-मस्ती करते रहते हैं। त्यागराज मार्ग राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, और अन्य प्रमुख सरकारी इमारतों के नजदीक है। यह सारा एरिया मुख्य रूप से राजनेताओं और विशिष्ट व्यक्तियों के लिए आवासीय बंगलों के लिए जाना जाता है। 

इस मार्ग का नाम संत त्यागराज के नाम पर रखा गया है, जो दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान संगीतकार थे। त्यागराज मार्ग से कुछ ही दूरी पर है इंडिया गेट। त्यागराज मार्ग और इसके आसपास का क्षेत्र लुटियंस दिल्ली की हरियाली के लिए जाना जाता है, जो इसे एक शांत और साफ-सुथरा वातावरण प्रदान करता है। 

क्रिकेट कमेंटेटर डॉ रवि चतुर्वेदी बताते हैं कि एक बार उन्हें नवाब पटौदी त्यागराज मार्ग के एक बंगले में आयोजित डिनर में मिले। तब नवाब पटौदी ने उन्हें कहा था, “हम इसके करीब के बंगले में रहा करते थे।”

जामिया में भोपाल और पटौदी कहां

मंसूर अली खान पटौदी अब जामिया मिलिया इस्लामिया में भी हैं। जामिया के जिस क्रिकेट स्टेडियम का पहले नाम भोपाल ग्राउंड था, वह अब मंसूर अली खान स्टेडियम कहलाता है। कहते हैं कि भोपाल रियासत ने जमीन जामिया को दी थी। इस बीच, इधर राजधानी दिल्ली में भोपाल राज परिवार का कोई अपना भवन या हाउस का ना होना हैरान जरूर करता है। भोपाल रियासत देश की खास रियासत थी। कहते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने भोपाल रियासत को यहां पर अपना भवन बनाने के लिए लैंड दी थी, पर उन्होंने भवन तामीर नहीं करवाया।

पटौदी ने क्यों छोड़ी दिल्ली क्रिकेट

मंसूर अली खान पटौदी के जलवे थे। नवाब थे। पर कुछ जानकार कहते हैं कि उन्होंने दिल्ली क्रिकेट के साथ ठीक नहीं किया था। नवाब पटौदी ने दिल्ली क्रिकेट को एक झटके में छोड़ दिया था। वे जब 1960 के आसपास दिल्ली के रणजी ट्रॉफी में कप्तान थे, तब उन्होंने हैदराबाद का रुख कर लिया था। फिर वे हैदराबाद की टीम से अपने मित्र एम.एल.जयसिम्हा की अगुवाई में खेलते रहे।  कुछ साल पहले पटौदी  का फिरोजशाह कोटला में 'हाल ऑफ फेम'  बनाया गया। पर ये सवाल तो पूछा ही जाएगा कि अकारण दिल्ली को छोड़ने वाले शख्स को यहां इतनी इज्जत क्यों मिल रही है? 

क्या पटौदी ने टेस्ट क्रिकेट से 1975 में सन्यास लेने के बाद कभी दिल्ली में स्कूल य़ा कॉलेज के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को बल्लेबाजी या फील्डिंग के गुर सिखाए? हालांकि वे यहां पर ही रहते थे। कहने वाले यह भी कहते हैं कि पटौदी ने दिल्ली को यहां की क्रिकेट के एक दौर के बेताज बादशाह राम प्रकाश मेहरा उर्फ लाटू शाह से खुन्नस के कारण छोड़ा था। दोनों में कभी नहीं पटती थी। पर संयोग देखिए कि राम प्रकाश मेहरा उसी पटौदी हाउस इलाके में रहते रहे जहां पटौदी हाउस है। उसी पटौदी हाउस में पटौदी सीनियर का जन्म हुआ था।

जुझारू क्रिकेटर थे पटौदी

बहरहाल, मंसूर अली खान पटौदी जुझारू क्रिकेटर थे। एक कार हादसे में उनकी दायीं आँख की रोशनी जाती रही थी। पर पटौदी ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक आँख से बल्लेबाजी करते हुए टेस्ट मैचों में 6 शतक और 16 अर्धशतक ठोके। कहा जाता है कि वे जब बल्लेबाजी करते थे तब उन्हें दो गेंदें अपनी तरफ आती हुई दिखती थीं। इन दोनों के बीच कुछ इंचों की दूरी भी रहती थी। पर पटौदी ने हमेशा उस गेंद को खेला जिसे उन्हें खेलना चाहिए था। दिल्ली क्रिकेट को जानने वाले कहते हैं कि पटौदी अपने बंगले में दिल्ली के अपने साथी खिलाड़ियों के महफिलें नहीं जमाते थे।

कनॉट प्लेस और पटौदी हाउस का रिश्ता

हरियाणा के पटौदी में पटौदी हाउस और अपने कनॉट प्लेस का एक करीबी संबंध है। दरअसल दोनों को महान और प्रयोगधर्मी आर्किटेक्ट रोबर्ट टोर रसेल ने डिजाइन किया था। कहते हैं कि इफ्तिखार अली खान पटौदी कनॉट प्लेस के डिजाइन से इस कद्र प्रभावित हुए थे कि उन्होंने निश्चय किया कि उनके पटौदी महल का डिजाइन रसेल ही तैयार करेंगे। नई दिल्ली के चीफ आर्किटेक्ट रसेल ने पटौदी हाउस का डिजाइन बनाते हुए भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। 

पटौदी हाउस

महल के आगे बहुत से फव्वारे लगे है। फव्वारों क साथ ही गुलाब के फुलों की क्यारियां हैं, जिधर बेशुमार गुलाब के फुलों से सारा माहौल गुलजार रहता है। इसके भीतर भव्य ड्राइंग रूम के अलावा सात बेडरूम, ड्रेसिंग रूम और बिलियर्ड रूम भी है। सारे पटौदी हाउस का डिजाइन बिल्कुल राजसी अंदाज में तैयार किया गया। इसका डिजाइन तैयार करते वक्त रसेल को आस्ट्रेलिया के आर्किटेक्ट कार्ल मोल्ट हेंज का भी पर्याप्त सहयोग मिला। रसेल ने ही वेस्टर्न  कोर्ट, ईस्टर्न कोर्ट, तीन मूर्ति भवन, सफदरजंग एयरपोर्ट को भी डिजाइन किया था।

दरियागंज के पटौदी हाउस का हीरो

इफ्तिखार अली खान पटौदी का जन्म दरियागंज के पटौदी हाउस में 16 मार्च, 1910 को हुआ था। इफ्तिखार अली खान पटौदी ने 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक खेलों में भाग लिया था। वे भारत की हॉकी टीम के सदस्य थे। उस भारतीय टीम में दादा ध्यानचंद भी थे। उस टीम ने गोल्ड मेडल जीता था। हालांकि उन्हें किसी भी मैच में खेलने का अवसर नहीं मिला था। 

Pataudi Senior
पटौदी सीनियर अपनी पत्नी के साथ

पटौदी ने आगे चलकर इंग्लैंड और भारत की तरफ से क्रिकेट टेस्ट मैचों में नुमाइंदगी की। उन्होंने इंग्लैंड और भारत से कुल जमा छह टेस्ट मैच खेले। उन्होंने 1932 में इंग्लैंड की टीम से आस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने जीवन का पहला टेस्ट खेला था। तब तक भारत को टेस्ट मैचों में खेलने का अवसर नहीं मिला था। 

भारत ने अपना पहला टेस्ट मैच 1934 में खेला था। वे बिलियर्ड और पोलो के भी बेहतरीन खिलाड़ी थे।इफ्तिखार अली खान पटौदी की शख्सियत कमाल की थी। वे शेरो-शायरी में भी दिलचस्पी लेते थे। वे शेर कहते भी थे। उर्दू के नामवर शायर कुंवर महेन्द्र सिंह बेदी ने अपनी किताब यादों का जश्न में लिखा है कि नवाब साहब हारमोनियम भी बेहद शानदार तरीके से बजाते थे। वे विलायत अली खान से सितार भी सीखते थे।

कहां हैं पटौदी हाउस के अवशेष

दिल्ली के दरियागंज में जिधर नवाब पटौदी सीनियर का जन्म हुआ था वहां पर अब एक स्कूल चलता है। यहां के सोशल वर्क मोहम्मद तकी कहते हैं कि उन्हें याद नहीं कि कभी इधर पटौदी कुनबे का कोई मेंबर आया हो। अब तक ये सिर्फ नाम से ही पटौदी हाउस है। क्या आपको पता है कि राजधानी में एक पटौदी हाउस आंध्र भवन के करीब कोपरनिकस मार्ग के पास और अशोक रोड के पीछे भी हुआ करता था? उसके अब वहां पर अवशेष ही बचे हैं। उस पर आंध्र प्रदेश सरकार का नियंत्रण है। नामवर फुटबॉल कमेंटेटर गौस मोहम्मद कहते हैं कि एक दौर में इस पटौदी हाउस में आकाशवाणी के आला अफसर भी रहा करते थे।