उस दिन हम मुंबई के छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से जुहू की तरफ जा रहे थे। वक्त दिन के तीन बजे के आसपास का रहा होगा। मुंबई अपने कामकाज पर निकली हुई थी। सब तरफ गहमा-गहमी थी। जुहू के आसपास हम पहुंच चुके थे। अचानक से हमारी निगाह एक साइन बोर्ड पर पड़ी। लिखा था ‘बलराज साहनी मार्ग’। हमने ड्राइवर अबू से फौरन पूछा कि यहां पर बलराज साहनी मार्ग क्यों है? उसने बताया, “साहब, आगे ही बलराज साहनी का बंगला है।” अब हमने उससे कहा, “पहले हम वहां ही जाएंगे।” अपने प्रिय अभिनेता का घर देखे बिना आगे जाने का सवाल ही नहीं था। अगले पांचेक मिनट के बाद हमारी कार एक खंडहरनुमा घर के सामने खड़ी थी।
अबू ने इशारा करते हुए कहा, “ये ही बलराज साहनी का घर।” हमें घर की जर्जर हालत देखकर यकीन नहीं हुआ कि यहीं कभी रहा करता था भारतीय सिनेमा का महान अभिनेता बलराज साहनी। हम एक तरफ बंगले को देख रहे थे, दूसरी तरफ जेहन में बलराज साहनी की काबुलीवाला, वक्त, दो बीघा जमीन जैसी फिल्में चल रही थीं। करीब 500 गज में बना घर खंडहर में बदल चुका है। बंगले की दुर्दशा देखकर उस सशक्त अभिनेता को चाहने वाला कोई भी शख्स उदास जरूरी होगा।
उन्होंने देखा था बलराज साहनी को
हमें बंगले के आगे कोलिंस नाम के एक सज्जन मिल गए। वे वहां ही अपने दोस्तों के साथ गप कर रहे थे। उधर ही रहते हैं। बताने लगे कि पिछले दस- पंद्रह सालों से इधर कोई नहीं रहता। बलराज साहनी के पुत्र परीक्षित साहनी साउथ मुंबई के अपने घर में या फिर अमरीका में रहते हैं। कोलिंस ने इकराम को तब भी देखा था जब यह गुलजार रहा करता था। उन्हें याद है जब बलराज साहनी यहां से पैदल ही जुहू बीच में घूमने के लिए जाया करते थे। इकराम से जुहू बीच 5 मिनट वाकिंग करने पर आ जाता है। वे भूले नहीं है जब बलराज साहनी का निधन हुआ था।
तस्वीर में विवेक शुक्ला के साथ कोलिंस (बाएं)
कोलिंस तब 10 बरस के थे। उनके पिता ने बताया था कि बलराज साहनी को हार्ट अटैक हुआ था। उस दिन यहां सैकड़ों लोग आए थे। हम और कोलिंस बलराज साहनी की बातें कर रहे थे तब ही उनके के एक और दोस्त भी आ गये। नाम था डेरिक। बताने लगे कि बलराज साहनी के पास एक फिएट कार थी। उसे वे ही चलाते थे।
बलराज साहनी के 'इकराम' का संसार
बलराज साहनी ने 'इकराम' नामक बंगले को 1960 के दशक में बनवाया था। इस सफेद बंगले का नाम 'इकराम' रखा गया, जिसका अर्थ है 'इज्जत', सत्कार या 'प्रतिष्ठा' या मेहमाननवाज़ी। यह नाम बलराज साहनी के व्यक्तित्व के बिल्कुल अनुरूप था, जो अपनी मेहमाननवाज़ी, उदारता और सभी के प्रति सम्मानजनक व्यवहार के लिए जाने जाते थे। यह बंगला उस समय सितारों की महफिलों का केंद्र था, जहां फिल्मी हस्तियां और दोस्त इकट्ठा होते थे। यह बंगला बलराज साहनी की शोहरत और उनके स्टारडम का प्रतीक था, क्योंकि उनके करीबी और दोस्तों ने उन पर एक घर बनाने का दबाव डाला था, जो उनकी शख्सियत और रुतबे के अनुरूप हो।
बलराज साहनी का 'इकराम' बंगला सिर्फ एक घर नहीं था, बल्कि उनके जीवन, व्यक्तित्व, कलात्मक रुचियों और सामाजिक सरोकारों का प्रतिबिंब था। यह बंगला मुंबई के साहित्यिक, कलात्मक और बौद्धिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था।यहाँ अक्सर साहित्यिक गोष्ठियाँ, काव्य पाठ और गंभीर विषयों पर चर्चाएँ होती थीं।
कितने कमरे इकराम में
बलराज साहनी ने इस बंगले में 10-12 कमरे थे, जो उस समय के हिसाब से काफी भव्य माना जाता था। इसका डिज़ाइन और निर्माण उस दौर की वास्तुकला को दर्शाता था, जिसमें खुली जगह और समुद्र के नज़ारे को महत्व दिया गया था। मुंबई के दिग्गज पत्रकार और नवभारत टाइम्स के मेट्रो एडिटर रहे विमल मिश्र कहते हैं कि उन्होने इस इस घर में बलराज साहनी की पत्नी संतोष साहनी का लम्बा इंटरव्यू किया था जो खुद एक सिद्ध लेखिका थीं। उन दिनों वे आस पास के गरीब बच्चों के किए एक स्कूल चलाती थी।
बलराज साहनी और संतोष साहनी
आते कैफी आजमी, साहिर और कौन?
प्रगतिशील लेखक संघ (PWA) और इप्टा (IPTA - इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन) से जुड़े कई लोग नियमित रूप से यहाँ आते थे। कैफ़ी आज़मी, इस्मत चुगताई, राजिंदर सिंह बेदी, साहिर लुधियानवी जैसी कई हस्तियों का यहाँ आना-जाना लगा रहता था। बलराज साहनी स्वयं एक प्रखर लेखक और विचारक थे, इसलिए उनके घर का माहौल बौद्धिक और कलात्मक चर्चाओं से जीवंत रहता था। हिन्दी और पंजाबी के कवि हरजिंदर सिंह सेठी कहते हैं, 'इकराम' बंगले में कई अवसरों पर बलराज साहनी जी से मुलाकात होती रही। कभी कभार पंजाबी साहित्य केंद्र की गोष्ठियां भी वहां होती थीं।
कौन- कौन रहा?
यह बंगला उनके पारिवारिक जीवन का भी साक्षी रहा। यहीं वे अपनी पहली पत्नी दमयंती साहनी (और बाद में संतोष साहनी) और बच्चों (जैसे परीक्षित साहनी) के साथ रहते थे। दमयंती साहनी की असामयिक मृत्यु के बाद का दुःख भी इसी घर ने देखा। कहते हैं कि 'इकराम' में हर किसी का खुले दिल से स्वागत होता था। यहाँ आने वालों को एक आत्मीय और बौद्धिक माहौल मिलता था। 'इकराम' बलराज साहनी की पहचान का एक अभिन्न हिस्सा बन गया था। यह उनके प्रगतिशील विचारों, साहित्यिक अनुराग और कला के प्रति समर्पण का प्रतीक था।
हालांकि, इस बंगले की कहानी दुखद रही। बलराज साहनी के बेटे, परीक्षित साहनी ने अपनी किताब "The Non-Conformist: Memories of My Father" में लिखा है कि इस बंगले ने उनके परिवार को बर्बाद कर दिया। सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उनकी जवान बेटी शबनम ने आत्महत्या कर ली, जिसका दुख बलराज साहनी कभी नहीं भुला पाए। यह बंगला उनके परिवार को रास नहीं आया।
परीक्षित के अनुसार, यह बंगला बलराज के कम्युनिस्ट विचारों और सादगी भरे जीवन के विपरीत था, जो उनके लिए और उनके परिवार के लिए एक वैचारिक और भावनात्मक संघर्ष का कारण बना। इस बंगले ने उनकी जिंदगी में कई बदलाव लाए, लेकिन यह उनके लिए एक दुखद अध्याय बन गया।
यादें बलराज साहनी की
बलराज साहनी के निधन के बाद, इकराम में उनका परिवार कुछ साल रहा। लेकिन 'इकराम' का नाम आज भी बलराज साहनी की स्मृतियों और उनके समय के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में याद किया जाता है। यह बंगला सिर्फ ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत का प्रतीक था।
बलराज साहनी अपने कम्युनिस्ट विचारों और सामाजिक सरोकारों के लिए जाने जाते थे। उनके बंगले में आसपास के मछुआरों, मजदूरों, और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों से उनका गहरा जुड़ाव था। उनकी मृत्यु के समय, इन लोगों ने उनके अंतिम दर्शन के लिए बंगले पर भीड़ लगाई थी, जो उनके जनसाधारण से जुड़ाव को दर्शाता है।
बंगले की वर्तमान स्थिति
बलराज साहनी के निधन (13 अप्रैल, 1973) के बाद इस बंगले की स्थिति खराब हो गई। एक समय जो सितारों की महफिलों का गवाह था, वह धीरे-धीरे उपेक्षा का शिकार होकर खंडहर में तब्दील हो गया। बलराज साहनी के बेटे, अभिनेता परीक्षित साहनी, द्वारा लिखित किताब द नॉन-कॉन्फॉर्मिस्ट: मेमोरीज़ ऑफ़ माई फादर के लॉन्च के दौरान, अमिताभ बच्चन ने कहा था कि जब भी वे जुहू में इस बंगले के सामने से गुजरते हैं, तो उन्हें निराशा होती है, क्योंकि यह एक ऐतिहासिक संपत्ति अब देखभाल के अभाव में खराब स्थिति में है।
दिल्ली यानी दूसरा घर किनका?
बलराज साहनी के लिए दिल्ली दूसरे घर की तरह थी। यहां उनके छोटे भाई और अप्रतिम कथाकार भीष्म साहनी रहते थे। भीष्म साहनी अपने दिल्ली प्रवास के दौरान अपने भाई के ईस्ट पटेल नगर वाले घर में ही रहा करते थे। भीष्म साहनी ने एक बार इस लेखक को बताया था कि बड़े भाई साहब के आने पर हमारे बहुत सारे रिश्तेदार भी उनसे मिलने के लिए आ जाते थे। वहां ही देश के बंटवारे से लेकर समाज, साहित्य और अन्य विषयों पर लंबी चर्चाएं होने लगती थीं।
बलराज साहनी और भीष्म साहनी
भीष्म साहनी देश के बंटवारे के बाद दिल्ली आए तो ईस्ट पटेल नगर में ही रहने लगे। फिर तो वे वहां ही रहे। उन्होंने लंबे समय तक जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाया। भीष्म साहनी के ईस्ट पटेल नगर में पड़ोसी रहे दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री रमाकांत गोस्वामी जी बताते हैं कि उनका (भीष्म साहनी) व्यक्तित्व बेहद गरिमामय था। ‘तमस’ जैसे कालजयी उपन्यास के लेखक भीष्म साहनी आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से थे। भीष्म साहनी मानवीय मूल्यों के लिए हिमायती रहे और उन्होंने विचारधारा को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया।
जेएनयू में बलराज साहनी
बलराज साहनी 1972 में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के पहले दीक्षांत समारोह में भाग लेने के लिए आए थे। वहां उनके दिए ओजस्वी भाषण को अब भी जेएनयू बिरादरी याद करती है। उन्होंने कहा था- “जेएनयू के प्रति मेरे मन में गहरा सम्मान का भाव है। जब आपने मुझे यहा बुलाया तो मैं मना नहीं कर सका। अगर आप मुझे यहां झाड़ू लगाने के लिए भी कहते, तो मैं भी मना नहीं करता। इतना ही सम्मानित महसूस करता। शायद मेरी योग्यता के हिसाब से वह काम ज्यादा सही होता।”
अपने भाषण के अंत में बलराज साहनी ने कहा था- “क्या हम कह सकते हैं कि गुलामी और हीनता का भाव हमारे मन से दूर हो चुका है? क्या हम ये दावा कर सकते हैं कि सामाजिक, व्यक्तिगत और राष्ट्रीय स्तर पर हमारे विचार, फैसले और कार्य हमारे अपने हैं ना कि किसी की नकल?”