30 जून 2025 को पंजाब के मोहाली स्थित भाषा विभाग कार्यालय में एक विशेष साहित्यिक आयोजन हुआ, जिसमें हिंदी कवि अमृत रंजन की काव्य-पुस्तक ‘जहाँ नहीं गया’ के पंजाबी अनुवाद 'ਜਿੱਥੇ ਨਹੀਂ ਗਿਆ' का लोकार्पण और विचार-गोष्ठी आयोजित की गई। यह अनुवाद पंजाबी कवि गुरिंदर सिंह कलसी ने किया है और इस आयोजन का उद्देश्य भाषायी सेतु निर्माण, साहित्यिक संवाद और कविता के विचार-तंतु को दो भाषाओं में विस्तार देना था।

कार्यक्रम की रूपरेखा और मुख्य अतिथि

इस आयोजन की अध्यक्षता साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त लेखक तरसेम बरनाला ने की और मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे प्रतिष्ठित लेखक-संपादक डॉ. प्रभात रंजन। डॉ. दर्शन कौर, जो ज़िला भाषा अधिकारी कार्यालय की खोज अधिकारी हैं, ने स्वागत भाषण में इस आयोजन की पृष्ठभूमि और महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि अनुवाद भाषाओं के बीच पुल का कार्य करता है और यह पुस्तक निश्चित ही पंजाबी पाठकों को अपनी जड़ों और सांस्कृतिक विरासत की ओर उन्मुख करेगी।

साहित्यिक चर्चा और वक्तव्य

डॉ. प्रभात रंजन ने अमृत रंजन की कविताओं की दार्शनिकता और नवीन दृष्टिकोण की सराहना करते हुए इसे पंजाबी में अनूदित होना एक शुभ संकेत बताया। उन्होंने विशेष रूप से इस बात को रेखांकित किया कि आज के दौर में ऐसी मौलिक और प्रश्नोन्मुख कविताएँ एक नई साहित्यिक चेतना का सूत्रपात करती हैं। हिंदी में अमृत की कविताओं की जिज्ञासा, अभिव्यक्ति कौशल, दर्शन, प्रश्नाकुलता ने बहुत लोगों का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि पंजाबी भाषा के लेखकों कवियों में स्पर्धा हो सकती है लेकिन वैमनस्य नहीं है जो सोशल मीडिया पर हिंदी लेखकों में बढ़ती जा रही है। पंजाबी भाषा के लेखकों में सहज ऊष्मा महसूस हुई, जिसे देखकर उन्हें बहुत अच्छा लगा।

तरसेम बरनाला ने कविता लेखन और अनुवाद—दोनों को ही चुनौतीपूर्ण कार्य बताते हुए कहा कि गुरिंदर सिंह कलसी ने इस कठिन कार्य को अत्यंत सहजता और सौंदर्य से संपन्न किया है। "कविता की रचना एक कठिन कार्य है, लेकिन उससे भी अधिक कठिन है कविता का अनुवाद। अनुवाद केवल भाषा का नहीं, बल्कि भावनाओं, विचारों और संदर्भों का होता है। गुरिंदर सिंह कलसी ने यह चुनौती बखूबी निभाई है।‘ਜਿੱਥੇ ਨਹੀਂ ਗਿਆ’ केवल एक अनूदित पुस्तक नहीं, बल्कि एक वैचारिक दस्तावेज़ है, जो मौन, असमाप्त यात्राओं और अस्तित्व से जुड़े प्रश्नों की पड़ताल करता है। अमृत रंजन जैसे युवा कवि की रचनाओं का पंजाबी में आना साहित्य के लिए शुभ संकेत है—यह नई आवाज़ों और नई दृष्टियों का स्वागत है। यह संग्रह पाठकों को सोचने पर मजबूर करता है, उन्हें भीतर की यात्रा पर ले जाता है। और यही सच्ची कविता की पहचान है।

मनमोहन सिंह दाऊं ने अपने वक्तव्य में कहा कि एक अच्छे अनुवाद के लिए जिस संवेदनशील कल्पना, चिंतन और भाषा कौशल की आवश्यकता होती है, वह एक सच्चे कवि में ही होता है, और कलसी ने इस काम को बखूबी निभाया है।

जसविंदर सिंह काइनौर ने अनुवाद में बिंबों, प्रतीकों और दृश्य-चित्रण की सटीकता की सराहना की।  लिपि दा महादेव ने कहा कि अमृत रंजन की कविताएँ पाठकों को मौन, एकांत और दर्शन की ओर ले जाती हैं। ये कविताएँ अनुभूति का दर्शन रचती हैं। उन्होंने गुरिंदर सिंह कलसी के अनुवाद को सधा हुआ और शब्दों की आत्मा को पकड़ने वाला बताया, जो बेहद महत्त्वपूर्ण है।

डॉ. मेहर माणक ने कहा कि आज के समय में सत्ता और व्यवस्थागत ताक़तों के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाली कविता का अनुवादित होना आवश्यक है। गुरमान सैणी ने अनुवाद प्रक्रिया की बारीकियों और उसके पीछे की दृष्टि को साझा किया। डॉ. गुरविंदर अमन और डॉ. राजिंदर सिंह कुराली ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

डॉ. दविंदर सिंह बोहा, जो कार्यक्रम संयोजक भी रहे, ने अपने धन्यवाद वक्तव्य में आयोजन की सफलता पर प्रसन्नता जताई और अनुवाद की गुणवत्ता की भूरी-भूरी प्रशंसा की। अपने धाराप्रवाह वक्तव्य में उन्होंने मूल हिन्दी किताब और पंजाबी अनुवाद की भूरि-भूरि प्रशंसा की। 

मूल कवि और अनुवादक की सहभागिता

मूल रूप से हिन्दी में छपी “जहाँ नहीं गया” के  अनुवादक गुरिन्दर सिंह कलसी ने कहा कि जब उन्होंने अमृत रंजन की कविताएँ पढ़ीं, तो वे सीधे भीतर तक उतर गईं। गुरिंदर सिंह कलसी ने इस पुस्तक की कविताओं को चुनने और अनुवाद की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने बताया कि अमृत की कविताओं में जीवन, मृत्यु, ब्रह्मांड, स्मृति और समय जैसे विषयों को एक नई दृष्टि से देखा गया है और यह प्रयास उन विचारों को एक दूसरी भाषा में सजीव करने का माध्यम बना। 

गुरिंदर सिंह कलसी मुरिंडा (पंजाब) के प्रसिद्ध पंजाबी कवि और चित्रकार हैं। वे 20 से अधिक पुस्तकों (कविता, बाल साहित्य, अनुवाद) के लेखक हैं और त्रैमासिक ‘रूप’ पत्रिका के संपादक हैं। वे एक समर्पित शिक्षक और कलाकार भी हैं। कलसी ने कहा कि अमृत की कविताएँ प्रश्न उठाती हैं, लेकिन उत्तर थोपती नहीं—मौन की भाषा बोलती हैं। यह अनुवाद केवल शब्दों का नहीं, बल्कि संवेदना का सेतु है। उन्होंने कहा कि मेरी कोशिश रही कि वे कविताओं की आत्मा को ज्यों का त्यों पंजाबी में उतार सकें। अमृत की कविता जीवन, मृत्यु, ब्रह्मांड, स्मृति और समय से संवाद करती है — इसमें एक गहरी दार्शनिकता है। अनुवादक का काम केवल भाषा नहीं, दृष्टि और संस्कृति को भी जोड़ने का होता है। मुझे यह पुल बनने का अवसर मिला, यह मेरे लिए सम्मान की बात है। उन्होंने यह भी बताया कि उनके पास अमृत से संपर्क के लिए उनके पास फ़ोन नंबर नहीं था और उस स्थिति में कैसे उन्होंने अपने एक मित्र के माध्यम से जानकीपुल, जहाँ पर अमृत की अधिकतर कविताएँ छपी थीं, के संपादक प्रभात जी से संपर्क कर अमृत के पिता का फ़ोन नंबर लिया और संपर्क किया। 

“जहाँ नहीं गया” कविता संग्रह के लेखक अमृत रंजन, जिन्होंने बारह वर्ष की आयु से कविता लेखन शुरू किया था, ने अपनी रचना-प्रक्रिया पर काव्यात्मक ढंग से बात करते हुए कहा कि कविता और कला के साथ जुड़ाव उन्हें भीतर से समृद्ध करता है। अमृत ने बताया कि कैसे उन्होंने कम उम्र में कविताएँ लिखना शुरू किया था। कविता उनके लिए अभिव्यक्ति नहीं, एक ज़रूरत बन गई थी। एक ऐसी जगह, जहाँ वह अपने प्रश्न रख सकता थे, बिना डरे, बिना किसी उत्तर की अपेक्षा के। उन्होंने बताया कि कैसे कविता उनके लिए वह जगह है जहाँ वह खुद से बातें कर सकते थे। 

अमृत ने बताया कि जब उन्होंने देखा कि कलसी जी ने उनकी हिन्दी कविताओं का पंजाबी में अनुवाद किया है, तो उनके भीतर एक भरोसा फिर से लौटा — शब्दों पर, उनके असर पर। अक्सर हमें लगता है कि हम जो लिखते हैं, वह कहाँ तक पहुँचेगा? किसे छुएगा? लेकिन जब कोई दूसरा व्यक्ति — वह भी किसी और भाषा का कवि — आपकी कविताओं से इतना जुड़ जाए कि उनका अनुवाद कर डाले, तो यह बहुत बड़ी बात होती है। अमृत ने गुरिंदर सिंह कलसी जी का दिल से आभार व्यक्त किया और कहा कि उन्होंने उनके शब्दों को अपनी भाषा में नई ज़िंदगी दी। यह उनके लिए गर्व की बात है कि उनकी कविताएँ अब पंजाबी पाठकों तक पहुँचेंगी। उन्हें यह भी बहुत अच्छा लगा कि इस आयोजन में इतने सारे लेखक, कवि और पाठक शामिल हुए — यह दिखाता है कि कविता आज भी हमारे जीवन में ज़रूरी है। और यह भी कि भाषा की सीमाएँ केवल भौगोलिक नहीं होतीं, उन्हें संवेदना से लांघा जा सकता है।

कविता, संवाद और सामूहिकता

इस कार्यक्रम में उपस्थित रणजीत कौर स्वी, दविंदर ढिल्लों, गुरदर्शन सिंह मावी, कुलविंदर खैराबाद, नरिंदर लौंघिया, हरजीत सिंह, ध्यान सिंह काहलों जैसे रचनाकारों ने अपनी कविताएँ प्रस्तुत कर आयोजन को और भी जीवंत बना दिया।रजिंदर कौर मोहाली ने भी विशेष रूप से काव्य-पाठ किया। संचालन का दायित्व डॉ. यतिंदर कौर माहल ने बेहद प्रभावी रूप से निभाया।

हिन्दी-पंजाबी संवाद की सराहनीय पहल

यह कार्यक्रम केवल एक पुस्तक विमोचन नहीं था, बल्कि हिंदी और पंजाबी भाषाओं के बीच एक गहरे साहित्यिक संवाद की मिसाल था। हिंदी के युवा कवि अमृत रंजन की काव्य-दृष्टि, जो परंपरागत चौखटों को तोड़ने की आकांक्षा से भरी हुई है, जब पंजाबी में अनूदित हुई, तो उसकी मौलिकता और अधिक मुखर होकर सामने आई।

कार्यक्रम में मौजूद लेखकों और कवियों के बीच आत्मीयता, रचनात्मक आदान-प्रदान और वैचारिक गरिमा देखकर यह स्पष्ट हुआ कि साहित्य के क्षेत्र में भाषाएँ एक-दूसरे की विरोधी नहीं, बल्कि सहयोगी बनकर उभर सकती हैं।

‘जहाँ नहीं गया’ से 'ਜਿੱਥੇ ਨਹੀਂ ਗਿਆ' तक की यह यात्रा केवल भाषायी अनुवाद नहीं, बल्कि विचार, संवेदना और संस्कृति का सुंदर सम्मिलन थी—जहाँ कविता पुल बनी, और भाषा बंधन नहीं रही।