नई दिल्लीः भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई ने गुरुवार, 6 नवंबर को केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। सरकार द्वारा न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 (ट्रिब्युनल रिफॉर्म्स एक्ट) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच को स्थगित करने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद नहीं थी कि सरकार ऐसी चाल चलेगी।
बी आर गवई ने कहा कि सरकार उनकी अध्यक्षता वाली पीठ से बचने का प्रयास कर रही है क्योंकि उनके रिटायरमेंट को कुछ ही दिन बचे हैं। इस मामले की सुनवाई 7 नवंबर, शुक्रवार को होगी। इस मामले में सुनवाई के स्थगन की मांग अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने की थी।
बी आर गवई की पीठ ने क्या कहा?
सीजेआई बी आर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस विपुल एम पंचोली की पीठ ने तब भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि को सीजेआई के रिटायरमेंट से पहले स्थगन की मांग को लेकर आड़े हाथों लिया।
उन्होंने कहा कि अदालत इस मामले में सुनवाई शुक्रवार को करना चाहती है और सप्ताहांत में फैसला लिखना चाहती है।
सीजेआई ने कहा “हम आपको पहले ही दो बार समायोजित कर चुके हैं। और कितनी बार? यदि आप 24 नवंबर के बाद चाहते हैं तो बताएं। अदालत के लिए बहुत अनुचित है। हर बार आप अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए समायोजन की मांग करते हैं। आपके पास वकीलों की टोली है और फिर आप बड़ी बेंचों की मांग के संदर्भ में आधी रात को आवेदन दायर करते हैं। जब हम उच्च न्यायालय में थे तो हमें जो भी संक्षिप्त विवरण छोड़ना पड़ा, हमें यहां आना पड़ा। हमारे मन में सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय के लिए सर्वोच्च सम्मान था। हमने कल के लिए कोई अन्य मामला नहीं लिया। हमने सोचना था हम कल सुनवाई करेंगे और सप्ताहांत में फैसला लिखेंगे।”
इसके बाद अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार से शुक्रवार को अपनी दलीलें जारी रखने को कहा। दातार मद्रास बार एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यह इस मामले में एक याचिकाकर्ता है।
3 नवंबर को भी, जस्टिस गवई ने कहा था कि केंद्र सरकार उन्हें मामले में निर्णय लेने से रोकना चाहती है।
इससे पहले की सुनवाई में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने प्रारंभिक आपत्ति जताई थी कि मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। हालांकि, सीजेआई गवई ने इस आपत्ति को लेकर सवाल किया कि यह पहले नहीं उठाई गई थी।
सीजेआई ने कहा था “पिछली सुनवाई में आपने ये आपत्तियां उठाईं थीं…आपने व्यक्तिगत आधार पर स्थगन की मांग की थी। आप गुण-दोष के आधार पर पूरी सुनवाई के बाद ये आपत्तियां नहीं उठा सकते।”
अटॉर्नी जनरल ने क्या कहा था?
इस पर अटॉर्नी जनरल ने जवाब दिया था कि प्रारंभिक आपत्तियों पर सीमाएं नहीं खींची जा सकतीं, सीजेआई गवई ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था “यदि हम आपके द्वारा दिए गए आवेदन को खारिज कर देते हैं तो हम मानेंगे कि केंद्र सरकार इस पीठ से बचने की कोशिश कर रही है। गुण-दोष के आधार पर एक पक्ष को सुनने के बाद अब हम यह सब नहीं सुनेंगे।”
सीजेआई गवई ने कहा “हमें उम्मीद नहीं थी कि केंद्र सरकार इस तरह की चाल चलेगी। ऐसा तब है जब हम एक पक्ष को पूरी तरह सुन चुके हैं और अटॉर्नी जनरल को व्यक्तिगत आधार पर शामिल कर चुके हैं।”
जस्टिस चंद्रन भी सीजेआई के साथ सहमत दिखे और कहा कि आपत्ति पहले ही उठाई जानी थी। सीजेआई ने तब यह स्पष्ट कर दिया था कि प्रारंभिक आपत्ति खारिज कर दी जाएगी। हालांकि, अटॉर्नी जनरल ने संदर्भ बिंदु पर जोर दिया। न्यायालय को आश्वस्त करने में असमर्थ वेंकटरमणि ने बाद में न्यायालय से बाद में अनुरोध किया कि उन्हें गुण-दोष के आधार पर आगे बढ़ने की अनुमति दी जाए।
सीजेआई की इस टिप्पणी पर कि इस पीठ से बचने के लिए बड़ी पीठ के पास भेजने का आवेदन किया गया था, इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि “नहीं, कृपया ऐसा न समझें। अधिनियम उचित विचार-विमर्श के बाद पारित किया गया था… हम केवल यह कह रहे हैं कि क्या इन मुद्दों के कारण अधिनियम को रद्द कर दिया जाना चाहिए। इसे स्थिर होने के लिए कुछ समय दें…”

