नई दिल्लीः हर दशक में भारत में होने वाली जनगणना की प्रक्रिया 2025 में शुरू होगी और 2026 में इसका डेटा उपलब्ध कराया जाएगा। वहीं 2028 तक परिसीमन पूरा होने की संभावना है। भारत में जनगणना हर दशक में एक बार होती है, जो देश की सामाजिक, आर्थिक और जनसंख्या के पहलुओं का अहम डेटा प्रदान करती है। पिछली बार 2011 में हुई जनगणना के बाद 2021 में इसे दोबारा शुरू किया जाना था, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया। अब, चार साल के लंबे इंतजार के बाद, सरकार ने संकेत दिया है कि अगली जनगणना 2025 में डिजिटल माध्यम से शुरू होगी और 2026 में इसके आंकड़े प्रकाशित किए जाएंगे।
जनगणना चक्र में हुआ बदलाव
इंडिया टुडे ने सरकार के उच्च सूत्रों के हवाले से बताया है कि जनगणना का नया चक्र अब 2025 से 2035, फिर 2035 से 2045 और इसी प्रकार हर 10 साल का चक्र होगा। भारत सरकार जनगणना प्रक्रिया के लिए व्यापक तैयारी कर रही है, जिसमें पहली बार डिजिटल पद्धति का उपयोग होगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी अगस्त में संकेत दिया था कि अगली जनगणना पूरी तरह से डिजिटल होगी और इसमें मोबाइल एप्लीकेशन का सहारा लिया जाएगा।
संप्रदाय को लेकर भी हो सकता है सवाल
आगामी जनगणना में परंपरागत धार्मिक और सामाजिक सर्वेक्षण के साथ ही सामान्य, अनुसूचित जाति (एससी), और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की विस्तृत गणना शामिल होगी। सूत्रों के अनुसार, इस बार जनगणना में सामान्य और एससी-एसटी वर्गों के भीतर उप-समुदायों का भी सर्वेक्षण किया जा सकता है। आपसे आपके संप्रदाय के बारे में भी सवाल किया जा सकता है। मसलन कर्नाटक में सामान्य वर्ग में आने वाले लिंगायत खुद को अलग संप्रदाय के मानते हैं। इसी तरह अनुसूचित जाति में भी वाल्मीकि, रविदासी, जैसे अलग-अलग संप्रदाय के अनुयायी मिलते हैं।
जाति आधारित जनगणना की मांग और सरकार का रुख
जहां एक ओर कांग्रेस, आरजेडी और कुछ अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं, वहीं बीजेपी के सहयोगी दल जैसे जेडीयू ने भी इस पर अपने समर्थन का इजहार किया है। हालांकि, केंद्र सरकार का रुख इस मुद्दे पर अभी स्पष्ट नहीं है। केंद्रीय स्तर पर अंतिम फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट पर छोड़ दिया गया है। बीजेपी की दूसरी सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी भी मानती है कि जनगणना होनी चाहिए। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू आम जनता, खासकर युवा आबादी के फायदे के लिए ‘कौशल जनगणना’ की सक्रिय वकालत कर रहे हैं। आरएसएस भी जाति जनगणना के पक्ष में है, बशर्ते कि यह किसी पार्टी द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए न किया जा रहा हो।
जनगणना के बाद सीमांकन की प्रक्रिया
सूत्रों के अनुसार, 2026 में जनगणना के डेटा के प्रकाशन के बाद देश में लोकसभा क्षेत्रों का सीमांकन (delimitation) किया जाएगा। इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की योजना को आगे बढ़ाने का रास्ता साफ होगा। विशेष रूप से दक्षिण भारतीय राज्य, जो सख्त जनसंख्या नीति का पालन करते हैं, उनके लिए सीमांकन में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने पर भी विचार किया जा रहा है।
पिछली बार 2011 में हुई थी जनगणना
जनगणना का भारत सरकार की नीतियों और संसाधनों के समान वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या 121.1 करोड़ थी, जिसमें 52 प्रतिशत पुरुष और 48 प्रतिशत महिलाएं थीं। इसी जनगणना में पहली बार ट्रांसजेंडर जनसंख्या का रिकॉर्ड किया गया था। उत्तर प्रदेश उस समय सबसे अधिक आबादी वाला राज्य था और सिक्किम की जनसंख्या सबसे कम थी।
2011 की जनगणना में भारत की साक्षरता दर 74 प्रतिशत थी, जिसमें पुरुष साक्षरता 82 प्रतिशत और महिला साक्षरता 65 प्रतिशत थी। धार्मिक आधार पर हिंदू जनसंख्या 79.8 प्रतिशत, मुस्लिम जनसंख्या 14.23 प्रतिशत, ईसाई जनसंख्या 2.30 प्रतिशत, और सिख जनसंख्या 1.72 प्रतिशत थी। भारत में जनगणना की शुरुआत 1872 में हुई थी, जबकि स्वतंत्रता के बाद पहली जनगणना 1951 में संपन्न हुई थी।