नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने कच्चे तेल पर विंडफॉल टैक्स में भारी कटौती की है। सरकार ने इसे 3,250 रुपये प्रति टन कर दिया है। पिछले पखवाड़े यह 5,200 रुपये प्रति टन था। सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक, कर की नई दर 15 जून से प्रभावी हो गई है। डीजल, पेट्रोल और विमान ईंधन (एटीएफ) पर विंडफॉल टैक्स को शून्य बरकरार रखा गया है।
सरकार द्वारा हर 15 दिन में विंडफॉल टैक्स की समीक्षा की जाती है। हाल के महीनों में कई बार कच्चे तेल पर विंडफॉल टैक्स कम किया जा चुका है। एक जून को इसे 5,700 रुपये प्रति टन से घटाकर 5,200 रुपये प्रति टन किया गया था। वहीं, 16 मई को सरकार ने कच्चे तेल पर विंडफॉल टैक्स 8,400 रुपये से घटाकर 5,700 रुपये प्रति टन कर दिया था। इससे पहले 1 मई को इसे 9,600 रुपये से घटाकर 8,400 रुपये प्रति टन किया गया था।
विंडफॉल टैक्स क्या है?
विंडफॉल टैक्स को बिना किसी अतिरिक्त प्रयास या व्यय के आय में अप्रत्याशित लाभ के रूप में परिभाषित किया गया है। यह किसी अभूतपूर्व घटना के बाद किसी कंपनी को होने वाले मुनाफे पर लगाए जाने वाला कर है। हालांकि कंपनी किसी निवेश या व्यवसाय के विस्तार के बाद होने वाले मुनाफे पर यह लागू नहीं होता। यहां ‘विंडफॉल’ शब्द का अर्थ है कि एक कंपनी या व्यवसाय के मुनाफे में अचानक वृद्धि से है। विंडफॉल टैक्स उस मुनाफे पर लगाया गया कर है।
विंडफॉल टैक्स विशेष रूप से कच्चे ते की ऊंची कीमतों पर लगाया जाता है। भारत सरकार इस कर को लागू करती है ताकि बदले में वे अपना राजस्व बढ़ा सकें। जब सरकार इस कर में कटौती करती है तो इसका सीधा फायदा घरेलू स्तर पर पेट्रोलियम उत्पादक कंपनियों जैसे ओएनजीसी और ऑयल इंडिया को मिलता है। भारत सरकार ने जुलाई 2022 में विंडफॉल टैक्स का प्रस्ताव रखा था, लेकिन यह टैक्स 1 सितंबर 2022 से लागू हुआ था।
2022 से लागू विंडफॉल टैक्स विशेष रूप से कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के कारण तेल कंपनियों के अप्रत्याशित मुनाफे पर लगाया गया था। इसका कारण रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी वैश्विक घटना थी। सरकार ने इस टैक्स को अपने व्यापार घाटे को कम करने के लिए लगाया था। ध्यान दें कि विंडफॉल टैक्स को सीधे तौर पर कमी को पूरा करने के लिए नहीं लगाया गया था, बल्कि इसका उद्देश्य थोड़ा अलग था।
आसान भाषा में समझें तो, पहले तेल कंपनियां कच्चा तेल विदेशों में ज्यादा मुनाफे में बेच रही थीं, जिससे भारत में पेट्रोल और डीजल की कमी हो रही थी। विंडफॉल टैक्स दरअसल एक तरह का जुर्माना था, ताकि कंपनियां भारतीय तेल कंपनियों को कम दाम पर तेल बेचने के लिए प्रोत्साहित हों। इससे भारतीय बाजार में पेट्रोल और डीजल की कमी को कम किया जा सके। जुलाई 2022 के बाद रिफाइनरों को रिलायंस जैसी कंपनियों से कम दाम पर तेल मिलने लगा और उन्हें अतिरिक्त टैक्स नहीं देना पड़ा।
सरकार कब लगाती है विंडफॉल टैक्स
हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सरकार केवल तभी विंडफॉल टैक्स को लगा सकती है यदि कोई कंपनी बाहरी कारणों से मुनाफे में अचानक वृद्धि का अनुभव करती है। यदि कोई कंपनी एक नियोजित रणनीति के कारण मुनाफा कमाती है, तो कोई विंडफॉल टैक्स नहीं लगाया जा सकता है। विंडफॉल टैक्स को समझने का एक आसान उदाहरण है रूस और यूक्रेन का युद्ध। इस युद्ध की वजह से दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ीं तो 2022 में कच्चा तेल निकालने वाली कंपनियों को काफी फायदा हुआ। इसी अचानक से आए मुनाफे पर सरकार विंडफॉल टैक्स लगा सकती है।
कब विंडफॉल टैक्स नहीं लगता
विंडफॉल टैक्स उन कंपनियों द्वारा दिया जाता है जिन्हें किसी अनियंत्रित घटना से अचानक लाभ हुआ है। भारत में, विरासत या लॉटरी जीत से होने वाले लाभ पर विंडफॉल टैक्स नहीं लगता है।
सरकार कब विंडफॉल टैक्स में कटौती और वृद्धि करती है
जब कच्चे तेल या अन्य वस्तुओं की कीमतें स्थिर होती हैं या घटती हैं, तो कंपनियों के मुनाफे में भी कमी आती है। ऐसी स्थिति में सरकार विंडफॉल टैक्स में कटौती कर सकती है। अगर किसी उद्योग को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा हो या उसमें निवेश घट रहा हो, तो सरकार टैक्स में कटौती कर सकती है ताकि उद्योग में निवेश और विकास को प्रोत्साहित किया जा सके।
वहीं, जब कच्चे तेल, गैस, या अन्य संसाधनों की कीमतें अचानक बढ़ जाती हैं और कंपनियों को अत्यधिक मुनाफा होता है, तो सरकार टैक्स बढ़ा सकती है ताकि इस मुनाफे का एक हिस्सा सरकारी खजाने में जा सके। अगर सरकार को अतिरिक्त राजस्व की जरूरत होती है, जैसे किसी विशेष परियोजना या योजना के लिए, तो विंडफॉल टैक्स में वृद्धि की जा सकती है।
विंडफॉल टैक्स के नुकसान क्या हैं?
विंडफॉल टैक्स सिर्फ उन्हीं मुनाफों पर लगता है जो किसी अनिश्चित घटना से आए हों। इस टैक्स के चलते कंपनियों को लग सकता है कि भविष्य में भी इसी तरह के टैक्स लगाए जा सकते हैं, जिससे बाजार में अनिश्चितता का माहौल बन सकता है। विंडफॉल टैक्स को लोकलुभावन और मौकापरस्त कर माना जाता है। इस टैक्स की वजह से किसी क्षेत्र में भविष्य का निवेश कम हो सकता है। कंपनियों को डर रहता है कि कहीं इसी तरह के और टैक्स न लगा दिए जाएं, जिससे निवेशक निवेश करने से बचे। इस बारे में तो थोड़ी स्पष्टता की कमी है कि किन कंपनियों पर और कितने मुनाफे पर ये टैक्स लग सकता है।