नई दिल्लीः अमेरिका द्वारा रूसी ऊर्जा क्षेत्र पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों का असर अब भारत को होने वाली तेल आपूर्ति पर भी दिखने लगा है। भारत की सरकारी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) ने मार्च के लिए पर्याप्त तेल कार्गो की अनुपलब्धता पर चिंता जताई है।
10 जनवरी, 2025 को अमेरिका ने रूसी ऊर्जा क्षेत्र पर व्यापक प्रतिबंध लगाए। इनमें प्रमुख रूसी तेल उत्पादकों गजप्रोम नेफ्ट और सर्गुटनेफ्टेगैस पर प्रतिबंध, 183 जहाजों की ब्लैकलिस्टिंग, और तेल व्यापारियों, टैंकर मालिकों, बीमा कंपनियों व ऊर्जा अधिकारियों पर कड़े प्रतिबंध शामिल हैं।
बीपीसीएल के निदेशक ने क्या कहा?
बीपीसीएल के निदेशक (वित्त) वत्सा रामकृष्ण गुप्ता ने 23 जनवरी को विश्लेषकों के साथ बातचीत में कहा कि जनवरी और फरवरी के लिए रूसी तेल की बुकिंग पहले की जा चुकी थी, लेकिन मार्च के लिए पर्याप्त कार्गो उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में बीपीसीएल द्वारा संसाधित कच्चे तेल में रूसी तेल का हिस्सा 31% था, जो मार्च में घटकर 20% रह सकता है।
भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है रूस
रूस, जो मार्च 2022 तक भारत के कुल तेल आयात का मात्र 0.2% हिस्सा था, 2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। 2024 में भारत ने प्रति दिन 1.7 मिलियन बैरल रूसी तेल का आयात किया, जिससे रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। हालांकि, बीपीसीएल ने बताया कि रूसी तेल पर मिलने वाली छूट घटकर 3-3.2 डॉलर प्रति बैरल रह गई है, जबकि 2023-24 में यह 8.5 डॉलर प्रति बैरल तक थी।
प्रतिबंधित टैंकरों से तेल आयात पर रोक
भारत ने इस महीने यह निर्णय लिया कि अमेरिकी प्रतिबंधित टैंकरों से तेल की डिलीवरी स्वीकार नहीं की जाएगी। ये वही टैंकर हैं, जिनके जरिए रूस अपने “शैडो फ्लीट” का उपयोग करके भारत और चीन को तेल सप्लाई कर रहा था। भारत में केवल 10 जनवरी से पहले बुक किए गए रूसी तेल कार्गो, जो 12 मार्च तक अनलोड होंगे, को छूट दी जाएगी।
प्रतिबंधों के कारण वैश्विक तेल कीमतें 83-84 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ गई हैं। हालांकि, बीपीसीएल को उम्मीद है कि कीमतें जल्द ही 75-80 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर स्थिर हो जाएंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्थिति और खराब होती है तो भारत को रूस से तेल छूट पर मिलना बंद हो सकता है।
प्रतिबंधों का व्यापक प्रभाव
2022 में जी7, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया ने रूस पर 60 डॉलर प्रति बैरल का मूल्य सीमा लगाई थी, जिससे रूस को नए बाजार और परिवहन उपाय तलाशने पड़े। पहले वर्ष में रूस को अपने यूरल्स ग्रेड क्रूड के निर्यात राजस्व में औसतन 23% मासिक घाटा हुआ, जबकि दूसरे वर्ष यह आंकड़ा 9% तक कम हो गया। इसका कारण रूस का “शैडो फ्लीट” के जरिए नए बाजारों तक तेल की आपूर्ति करना था।