नई दिल्लीः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में तूफान ला दिया है। भारत-चीन समेत कई देशों के शेयर बाजार में गिरावट का दौर जारी है। सोमवार को भारतीय शेयर बाजार ने 'ब्लैक मंडे' की याद ताजा कर दी, जब कारोबार की शुरुआत में ही सेंसेक्स और निफ्टी 5 प्रतिशत से ज्यादा लुढ़क गए।
यह गिरावट ऐसे समय आई है जब कुछ दिन पहले ही अमेरिका के मार्केट विश्लेषक और टीवी शख्सियत जिम क्रैमर ने चेतावनी दी थी कि टैरिफ युद्ध अमेरिका को 1987 के 'ब्लैक मंडे' जैसी मंदी की ओर धकेल सकता है। उन्होंने कहा था कि 7 अप्रैल को बाजारों में भारी गिरावट आ सकती है और सोमवार को जो कुछ हुआ, वह उनकी भविष्यवाणी के बेहद करीब नजर आया।
क्या है 1987 का 'ब्लैक मंडे'?
विशेषज्ञों को डर है कि यह व्यापार युद्ध वैश्विक मंदी की शुरुआत हो सकता है। अगर ऐसा होता है, तो मौजूदा गिरावट महज एक संकेत है और बाजारों में इससे भी बड़ी गिरावट आ सकती है। 1987 के 'ब्लैक मंडे' की बात करें तो उस दिन, यानी 19 अक्टूबर 1987 को अमेरिका का डाउ जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज 22.6 प्रतिशत गिरा था- जो अब तक की एक दिन में सबसे बड़ी गिरावट है। एसएंडपी 500 में भी उस दिन 30 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। यह गिरावट वैश्विक बाजारों में हड़कंप मचा गई थी और असर नवंबर तक बना रहा।
1987 और 2025 में क्या हैं समानताएं?
क्रेमर का कहना है कि 1987 और 2025 की परिस्थितियों में कई समानताएं हैं। दोनों ही समय बाजार में तेजी आई थी और निवेशकों का भरोसा ऊंचाई पर था। लेकिन जैसे 1987 में ब्याज दरें बढ़ीं और व्यापार घाटा गहराया, वैसे ही 2025 में ट्रंप द्वारा अचानक शुल्क बढ़ाने से व्यापार युद्ध की आशंका ने माहौल को बिगाड़ दिया। इसके साथ ही, निवेशकों के मन में डर बैठ गया और आज की तेज रफ्तार ट्रेडिंग तकनीक ने हालात को और भी खराब कर दिया।
जैसे 1987 में टोक्यो, लंदन और फ्रैंकफर्ट जैसे बड़े बाजारों में भारी गिरावट आई थी, वैसे ही 2025 में हांगकांग, चीन और जापान के शेयर बाजारों में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। कच्चे तेल की कीमतें भी गिर गई हैं, क्योंकि सऊदी अरब ने दाम घटा दिए हैं।
लेकिन 1987 की गिरावट के बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने तुरंत कदम उठाए थे और बाजार ने कुछ ही महीनों में सुधार कर लिया था। लेकिन उस समय की मानसिक चोट गहरी थी और निवेशकों को बाजार की नाजुकता का अहसास हो गया था। 2025 में भले ही नीतियां और नियम पहले से बेहतर हैं, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता, तेज ट्रेडिंग सिस्टम और अर्थव्यवस्था पर ध्रुवीकरण का माहौल रिकवरी को मुश्किल बना सकता है।
बाजार खुलते ही 19.44 लाख करोड़ रुपये स्वाहा
भारत में सोमवार को हुई गिरावट से निवेशकों के 19.44 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो गए। बीएसई पर सूचीबद्ध कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण अब घटकर ₹383.95 लाख करोड़ रह गया है, जो शुक्रवार को ₹403.09 लाख करोड़ था। ट्रंप द्वारा 2 अप्रैल को 'रेसिप्रोकल टैरिफ' की घोषणा के बाद से अब तक सेंसेक्स 4,000 अंकों से ज्यादा गिर चुका है और निवेशकों की संपत्ति में करीब ₹29 लाख करोड़ की कमी आई है।
इस वैश्विक तनाव का असर रुपये पर भी पड़ा है। सोमवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 19 पैसे कमजोर होकर 85.63 प्रति डॉलर पर पहुंच गया। शेयर बाजार की बात करें तो बीएसई सेंसेक्स में 3,939.68 अंकों (5.22 प्रतिशत) की गिरावट दर्ज की गई और यह 71,425.01 पर पहुंच गया। वहीं, एनएसई निफ्टी 1,160.80 अंकों (5.06 प्रतिशत) की गिरावट के साथ 21,743.65 पर बंद हुआ।
एशियाई बाजारों में भी भारी गिरावट देखने को मिली। टोक्यो का निक्केई 225 सूचकांक कारोबार की शुरुआत में करीब 8 प्रतिशत गिर गया, हालांकि दोपहर तक यह 6 प्रतिशत नीचे था। चीन के बाजार, जो अक्सर वैश्विक रुझानों से प्रभावित नहीं होते, इस बार भी नहीं बच पाए। हांगकांग का हैंगसेंग 9.4 प्रतिशत और शंघाई कंपोजिट 6.2 प्रतिशत गिरा। दक्षिण कोरिया का कोस्पी 4.1 प्रतिशत और ऑस्ट्रेलिया का ASX 200 सूचकांक 3.8 प्रतिशत लुढ़क गया, हालांकि यह शुरुआती 6 प्रतिशत की गिरावट से कुछ उबर चुका था।