आरबीआई ने पांच साल बाद घटाया रेपो रेट, किन चीजों पर पड़ेगा इसका असर?

मौद्रिक नीति समिति के बयान के अनुसार, देश में महंगाई दर में गिरावट देखी गई है। खाद्य कीमतों के सकारात्मक अनुमानों और पूर्व मौद्रिक नीतियों के प्रभावों के चलते 2025-26 में और नरमी की उम्मीद है, जिससे महंगाई लक्ष्यों की ओर बढ़ने की संभावना है।

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आरबीआई। फोटोः IANS

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने शुक्रवार को बड़ा फैसला लेते हुए रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट (bps) की कटौती कर इसे 6.25% कर दिया। इससे पहले, यह दर 6.5% थी। यह कटौती पांच साल बाद हुई है, पिछली बार मई 2020 में आरबीआई ने रेपो दर में कमी की थी।

आरबीआई के इस फैसले से आम उपभोक्ताओं को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। रेपो रेट में कटौती का सीधा असर होम लोन, ऑटो लोन और अन्य कर्जों की ब्याज दरों पर पड़ेगा। बैंक अब अपने बाहरी बेंचमार्क लेंडिंग रेट (EBLR) को कम कर सकते हैं, जिससे कर्जदारों की मासिक किस्तें (EMI) घटेंगी।

RBI की एमपीसी ने रेपो रेट क्यों घटाई?

मौद्रिक नीति समिति के बयान के अनुसार, देश में महंगाई दर में गिरावट देखी गई है। खाद्य कीमतों के सकारात्मक अनुमानों और पूर्व मौद्रिक नीतियों के प्रभावों के चलते 2025-26 में और नरमी की उम्मीद है, जिससे महंगाई लक्ष्यों की ओर बढ़ने की संभावना है।

समिति ने यह भी स्वीकार किया कि आर्थिक वृद्धि दर में सुधार की संभावना है, हालांकि यह अभी भी पिछले वर्ष की तुलना में कम बनी हुई है। इन परिस्थितियों को देखते हुए, एमपीसी ने विकास को प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत दरों में कटौती का निर्णय लिया, जबकि महंगाई को लक्षित स्तरों के भीतर बनाए रखने की प्रतिबद्धता जताई।

इसके अलावा, वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता, व्यापार नीतियों को लेकर अनिश्चितता और प्रतिकूल मौसम की परिस्थितियां विकास और महंगाई के लिए संभावित चुनौतियां बनी हुई हैं। ऐसे हालात में एमपीसी ने सतर्क रुख अपनाते हुए अपनी मौद्रिक नीति को लचीला बनाए रखने का फैसला किया है, ताकि आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार नीतिगत बदलाव किए जा सकें।

रेपो रेट में कटौती से क्या प्रभाव पड़ता है?

जब भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट में कटौती करता है, तो सभी बाहरी बेंचमार्क लेंडिंग रेट (EBLR) जो रेपो रेट से जुड़े होते हैं, कम हो जाते हैं। इससे कर्ज लेने वालों को राहत मिलती है क्योंकि उनके मासिक किस्तों (EMI) में कमी आती है।

इसके अलावा, बैंक उन ऋणों की ब्याज दरों में भी कटौती कर सकते हैं जो मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड-बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) से जुड़े होते हैं। हालांकि, मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच रेपो रेट में 250 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी का पूरा प्रभाव अभी तक ग्राहकों तक नहीं पहुंचा है, ऐसे में नई कटौती से कुछ राहत मिल सकती है।

आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने क्या कहा?

आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने सभी हितधारकों को आश्वस्त किया कि केंद्रीय बैंक नीतियों को तैयार करने में अपने परामर्शी दृष्टिकोण को जारी रखेगा। उन्होंने कहा कि हितधारकों के सुझाव मूल्यवान हैं और किसी भी बड़े निर्णय से पहले उन्हें गंभीरता से विचार में लिया जाएगा।

मल्होत्रा ने यह भी कहा कि नए नियमों को लागू करते समय यह सुनिश्चित किया जाएगा कि उनका कार्यान्वयन सुचारू रूप से हो और बदलाव के लिए पर्याप्त समय दिया जाए। जहां किसी नियम का बड़ा प्रभाव पड़ेगा, वहां इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।

मौजूदा आर्थिक स्थिति पर चर्चा करते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक औसत से नीचे बढ़ रही है, हालांकि उच्च आवृत्ति संकेतकों से व्यापार विस्तार और मजबूती के संकेत मिल रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें घटने के कारण डॉलर मजबूत हुआ है, जिससे बॉन्ड यील्ड में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप उभरते बाजारों से बड़े पैमाने पर पूंजी बहिर्वाह हुआ है, जिससे उनकी मुद्राओं में तेज गिरावट आई है और वित्तीय परिस्थितियां कड़ी हो गई हैं।

मल्होत्रा ने यह भी कहा कि प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीतियों की असमान गति, लगातार भू-राजनीतिक तनाव और व्यापार व नीतिगत अनिश्चितताओं ने वित्तीय बाजार की अस्थिरता को और बढ़ा दिया है। ऐसे में उभरती अर्थव्यवस्थाओं को नीति निर्धारण में असमंजस का सामना करना पड़ रहा है।

वैश्विक अनिश्चितता के बीच लिया गया फैसला

यह फैसला ऐसे समय में आया है जब वैश्विक आर्थिक माहौल अस्थिर बना हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कनाडा, मैक्सिको और चीन पर टैरिफ लगाने की घोषणा ने वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका बढ़ा दी है। हाल ही में, डॉलर की मजबूती के कारण रुपया 87 के स्तर से नीचे गिर गया था, जो अब थोड़ा सुधरकर 87.43 पर पहुंच गया है।

सरकार द्वारा हाल ही में घोषित किए गए आयकर कटौती के बाद रेपो दर में यह कमी, उपभोक्ता खर्च को बढ़ावा देने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इस फैसले से भारतीय अर्थव्यवस्था में मांग और निवेश को गति मिलने की उम्मीद है।

विश्लेषकों के अनुसार, इस नीति का असर आने वाले महीनों में बैंकिंग और वित्तीय बाजारों पर दिख सकता है। बाजार अब इस फैसले का जवाब किस तरह देते हैं, इस पर निवेशकों की भी नजर बनी रहेगी।

रेपो रेट में कब-कब हुई वृद्धि

 मई 2022 में रेपो दर 4.00% से बढ़ाकर 4.40% की गई थी। इसके बाद, जून 2022 में इसे 4.90%, अगस्त 2022 में 5.40%, और सितंबर 2022 में 5.90% किया गया। दिसंबर 2022 में दर को बढ़ाकर 6.25% किया गया, और आखिरकार, फरवरी 2023 में इसे 6.50% तक बढ़ा दिया गया।

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