नई दिल्ली: फिक्की और क्वेस कॉर्प की ताजा रिपोर्ट के अनुसार पिछले चार साल में प्राइवेट सेक्टर की कम्पनियों के मुनाफे में 400 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है मगर इन निजी कम्पनियों के कर्मचारियों के वेतन में नाम मात्र की वृद्धि हुई।

फिक्की और क्वेस कॉर्प द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 से 2023 के बीच इंजीनियरिंग, मैन्युफैक्चरिंग, प्रोसेसिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर (EMPI) क्षेत्र की निजी कंपनियों में यह वृद्धि मात्र 0.8 प्रतिशत रही, जबकि एफएमसीजी सेक्टर में यह दर 5.4 प्रतिशत तक रही।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और बीमा क्षेत्र (BFI) में 2.8 प्रतिशत, रिटेल में 3.7 प्रतिशत, आईटी में चार प्रतिशत और लॉजिस्टिक्स में 4.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार बीती तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत रही।

महंगाई की तुलना में वेतन नहीं बढ़ने से दिक्कत

साल 2019-2023 के दौरान महंगाई दर औसतन पांच फीसदी से अधिक रही, लेकिन अधिकतर सेक्टरों में सैलरी इससे भी कम दर पर बढ़ी। इसका परिणाम यह हुआ कि कर्मचारियों की क्रय शक्ति घट गई और उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई।

सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन ने निजी क्षेत्र की इस स्थिति पर चिंता जताई। उनका कहना है कि कंपनियों के मुनाफे और कर्मचारियों की आय के बीच संतुलन बनाना जरूरी है।

अगर कर्मचारियों की आय नहीं बढ़ती, तो अर्थव्यवस्था में मांग घटेगी, जिससे लंबे समय में कॉरपोरेट सेक्टर को नुकसान होगा। उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना महामारी और वैश्विक परिस्थितियों ने आर्थिक असमानता को बढ़ा दिया है।

  आर्थिक असमानता का समाधान जरूरी

केंद्र सरकार के मुताबिक, भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र का मुनाफा साल 2008 के उच्चतम स्तर 5.2 फीसदी के करीब पहुंच गया है। कोविड-19 और वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, यह 2024 में 4.8 फीसदी तक पहुंचा। वर्ष 2019-2023 के बीच कंपनियों के मुनाफे में चार गुना वृद्धि दर्ज की गई है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय उद्योग जगत को इस समस्या का समाधान निकालने के लिए अपने कार्यों की समीक्षा करनी होगी। कर्मचारियों को बेहतर वेतन देना और अधिक लोगों को रोजगार देना आवश्यक है।

इससे न केवल उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी, बल्कि आर्थिक असमानता को भी कम किया जा सकेगा। मुनाफे और आय के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था और निजी क्षेत्र दोनों के लिए नुकसानदायक साबित होगा।