वॉशिंगटन डीसी: वैश्विक स्वच्छ-ऊर्जा में इंटरनेशनल बैटरी मेटल्स (आईबीएटी) ने एक बड़ी उपलब्धी हालिस की है। कंपनी ने एक नई फिल्टरेशन तकनीक का इस्तेमाल कर कमर्शियल रूप से लिथियम का उत्पादन करने वाली पहली कंपनी बन गई है।
इसी हफ्ते से पोर्टेबल डायरेक्ट लिथियम एक्सट्रैक्शन (DLE) जैसे नई तकनीक की मदद से कंपनी हर साल पांच हजार मीट्रिक टन लिथियम का उत्पादन शुरू किया है।
आईबीएटी की यह उपलब्धी अब तक रिपोर्ट नहीं की गई थी। नई तकनीक डीएलई के इस्तेमाल से आईबीएटी ने जिस तरीके से लिथियम का उत्पादन शुरू किया है, इससे कंपनी ने स्टैंडर्ड लिथियम और रियो टिंटो जैसे बड़े कंपीटीटरों को भी पीछे छोड़ दिया है।
जानकारों का क्या कहना है
विश्लेषकों का यह कहना है कि डीएलई तकनीक में वह क्षमता है जिससे लिथियम के उत्पादन में क्रांति ला सकती है। लिथियम के उत्पादन के लिए जो पुराने तरीके हैं, उससे डीएलई काफी बेहतर है जो काफी कम समय, लागत और स्वच्छ तरीके से ये लिथियम के उत्पादन को अंजाम दे सकता है।
जानकारों का कहना है कि जिस तरीके से कम लागत और समय में अमेरिका में कच्चे तेल को निकालने के लिए फ्रैकिंग ड्रिलिंग का बड़ा योगदान रहा है, उसी तरीके से डीएलई तकनीक भी लिथियम के उत्पादन में एक अहम रोल अदा कर सकती है।
पुराने तरीके से कैसे होता है लिथियम का उत्पादन
अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण का अनुमान है कि दुनिया के 70 फीसदी लिथियम भंडार नमकीन बरीन भंडार में पाए जाते हैं। लिथियम के उत्पादन में पुराने तरीके में तलाबों के पानी को भाप बनाकर उड़ाया जाता है फिर इसे निकाला जाता है। यही नहीं बड़े-बड़े गड्ढे की खुदाई के जरिए भी लिथियम का उत्पादन होता है। ये सब लिथियम के उत्पादन के पुराने तरीके हैं।
डीएलई करता है ऐसे लिथियम का उत्पादन
वहीं अगर बात करें डायरेक्ट लिथियम एक्सट्रैक्शन तकनीक की तो इसे इस तरीके से डिजाइन किया गया है कि यह पुराने तरीके के मुकाबले काफी तेज और कुशल तरीके से लिथियम के उत्पादन कर सकता है।
डीएलई तकनीक खारे पानी (नमकीन पानी) से लगभग 90 फीसदी लिथियम निकाल सकता है, जबकि पुराने तरीकों से तालाबों के पानी को भाप बनाकर उड़ाने के बाद केवल 50 फीसदी ही लिथियम निकाला जा सकता है। यही नहीं डीएलई पर्यावरण के लिए कम हानिकारक साबित होता है और लिथियम की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए यह एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
डीएलई तकनीक के फायदे
1980 के दशक में डॉव केमिकल से जुड़े जॉन बर्बा आईबीएटी के अध्यक्ष हैं। डीएलई तकनीक में जॉन का भी योगदान है। डीएलई तकनीक में छोटे और एक जगह से दूसरे जगह ले जाने वाले प्लांट को तैयार किया जाता है जिससे लिथियम के उत्पादन की लागत को कम करने में मदद मिलती है।
लिथियम का उत्पादन करने वाली अन्य कंपनियां जो इस तकनीक का इस्तेमाल नहीं करती है वे बड़े-बड़े और एक जगह पर प्लांट बनाती हैं जिससे उनकी लागत और समय ज्यादा लगती है।
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लुइसियाना से यूटा में शिफ्ट किया गया प्लांट
आईबीएटी का प्लांट पहले लुइसियाना में बनाया गया था और बाद में इसे 13 भागों में अमेरिका के यूटा में शिफ्ट कर दिया गया था। इसे तैयार करने में 18 महीने लगे थे और हर भाग की लागत 50-60 मिलियन डॉलर (लगभग 39 से 47 करोड़) थी। ये भाग इस तरीके से बनाए गए हैं कि इन्हें दोबारा इस्तेमाल के लिए अन्य जगह पर शिफ्ट किया जा सकता है।
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आईबीएटी तकनीक को और कंपनी कर रही है इस्तेमाल
आईबीएटी तकनीक की सफलता को देखते हुए इसे यूएस मैग्नीशियम द्वारा भी इस्तेमाल किया गया है। इस तकनीक में प्लांट को एक जगह से दूसरे जगह शिफ्ट करने के इसके फायदे इसे और भी सरल बनाती है।
पिछले कुछ सालों में लिथियम की कीमतों में उल्लेखनीय गिरावट और उद्योग में छंटनी के बावजूद आईबीएटी का इन प्लांटों को विश्व स्तर पर प्रमोट करने का प्लान है।