नई दिल्लीः भारत और अमेरिका के बीच दो दशक पहले हुए असैन्य परमाणु समझौते को अब व्यावसायिक रूप से अमल में लाने का रास्ता साफ हो गया है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग (DoE) ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अमेरिकी कंपनी होल्टेक इंटरनेशनल को भारत में परमाणु रिएक्टर के निर्माण और डिजाइन की अनुमति दे दी है। इस मंजूरी के बाद भारत में पहली बार अमेरिकी तकनीक से छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) का निर्माण संभव हो सकेगा। 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी "10CFR810" (परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1954) नियमों के तहत, इस मंजूरी के बाद होल्टेक इंटरनेशनल को भारत में तीन कंपनियों- होल्टेक एशिया, टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड और एलएंडटी- को एसएमआर तकनीक स्थानांतरित करने की अनुमति मिल गई है।

सरकारी कंपनियों को मंजूरी नहीं

हालांकि, अमेरिका ने भारत की सरकारी कंपनियों- न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल), एनटीपीसी और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी)- को इस तकनीक की ट्रांसफर की अनुमति फिलहाल नहीं दी है। भारत सरकार से इन कंपनियों के लिए गैर-प्रसार (Non-Proliferation) की आवश्यक गारंटी नहीं मिलने के कारण यह निर्णय लिया गया है। हालांकि, भविष्य में एनपीसीआईएल, एनटीपीसी और एईआरबी को भी शामिल करने के लिए मंजूरी में संशोधन की संभावना बनी हुई है।

यह मंजूरी 10 वर्षों के लिए दी गई है, जिसमें हर 5 साल में समीक्षा की जाएगी। भारत सरकार ने यह आश्वासन दिया है कि होल्टेक की तकनीक का उपयोग केवल शांतिपूर्ण परमाणु उद्देश्यों के लिए होगा और इसका सैन्य उपयोग नहीं किया जाएगा। अब अमेरिकी कंपनियों को भारत में परमाणु उपकरण बनाने और डिजाइन करने की अनुमति मिल गई है, जो पहले प्रतिबंधित था।

भारत को कैसे होगा फायदा?

भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता में वृद्धि होगी और उसे वैश्विक स्तर पर छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर बाजार में प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिलेगा। अमेरिका के साथ तकनीकी हस्तांतरण से भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता में इजाफा होगा। इससे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण की गति तेज होगी, जो अभी तक धीमी रही है।

चीन भी छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर तकनीक पर वैश्विक नेतृत्व पाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में, भारत और अमेरिका का यह सहयोग चीन के प्रभाव को चुनौती देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

भारत में SMR तकनीक का भविष्य

एसएमआर यानी छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर 30MWe से 300MWe क्षमता तक के होते हैं और इन्हें तेजी से स्थापित किया जा सकता है। बढ़ती ऊर्जा मांग और स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एसएमआर को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

भारत-अमेरिका 123 परमाणु समझौता (2007) अब तक लागू नहीं हो सका था, लेकिन अब इसे नई दिशा मिल सकती है। न्यूक्लियर डैमेज लॉ (2010) के कारण विदेशी कंपनियां निवेश से हिचक रही थीं, लेकिन अब भारत सरकार इसे संशोधित करने की योजना बना रही है। भारत के निजी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा उत्पादन में शामिल करने के लिए एटॉमिक एनर्जी एक्ट, 1962 में संशोधन भी जरूरी होगा।