डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में भारत ने की टैरिफ में कटौती? क्या बात आई सामने

टैरिफ उस कर को बोला जाता है जो देश में प्रवेश करने वाले सामानों पर लगाया जाता है, जो आयात के मूल्य के अनुपात में होता है। जब एक देश किसी दूसरे देश से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ लगाता है और दूसरा देश भी उसी अनुपात में उस देश के उत्पादों पर लगा दे तो उसे पारस्परिक टैरिफ कहा जाता है।

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13 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच व्हाइट हाउस में बैठक हुई थी। Photograph: (IANS)

नई दिल्लीः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल से "रिसिप्रोकल टैरिफ" (पारस्परिक शुल्क) लागू करने की चेतावनी दी है। इस बीच, भारत ने कई महत्वपूर्ण उत्पादों पर टैरिफ में कटौती कर दी है। हालांकि, सरकारी सूत्रों ने साफ किया है कि यह फैसला ट्रंप के दबाव में नहीं, बल्कि भारत की व्यापक व्यापार रणनीति के तहत लिया गया है।

 

इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि भारत पहले भी ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), स्विट्जरलैंड और नॉर्वे जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों (Bilateral Trade Agreements) के तहत टैरिफ कम कर चुका है। फिलहाल यूरोपीय संघ (EU) और ब्रिटेन के साथ भी इसी तरह के समझौतों पर बातचीत जारी है। ऐसे में अमेरिका के साथ हो रही चर्चा को ट्रंप की चेतावनी से जोड़ना सही नहीं होगा।

अमेरिका की मांग: टैरिफ खत्म, लेकिन रियायतें नहीं

अमेरिकी प्रशासन चाहता है कि भारत अधिकांश उत्पादों पर टैरिफ हटा दे, हालांकि कृषि उत्पादों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। अगर भारत इस मांग को स्वीकार करता है, तो उसे अपनी व्यापार सुरक्षा नीतियों से समझौता करना पड़ेगा, जबकि अमेरिका से कोई रियायत नहीं मिलेगी।

गौरतलब है कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। बीते वित्तीय वर्ष में द्विपक्षीय व्यापार का आंकड़ा 118.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। भारत और अमेरिका ने इस साल के अंत तक "बहु-क्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते" (Bilateral Trade Agreement - बीटीए) के पहले चरण पर बातचीत करने का फैसला किया है। इस समझौते के तहत, 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य है।

मोदी-ट्रंप की मुलाकात और व्यापार वार्ता

13 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच व्हाइट हाउस में बैठक हुई थी, जहां बीटीए पर वार्ता शुरू करने पर सहमति बनी थी। इस दौरान भारत ने बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका को वरिष्ठ व्यापार प्रतिनिधि नियुक्त करने की शर्त रखी थी।

इसके बाद, 26 फरवरी को अमेरिकी सीनेट ने जेमिसन ग्रीयर को अमेरिका का नया व्यापार प्रतिनिधि नियुक्त किया। इसके तुरंत बाद, भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल 3-6 मार्च के बीच वॉशिंगटन डीसी पहुंचे, जहां उन्होंने ग्रीयर और अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक के साथ विस्तृत चर्चा की।

ट्रंप का आरोप: "भारत हमें व्यापार करने नहीं देता"

शुक्रवार रात ओवल ऑफिस से ट्रंप ने बयान दिया कि "भारत हम पर भारी टैरिफ लगाता है, हमारे उत्पाद वहां नहीं बिकते। अब भारत अपने टैरिफ में भारी कटौती करना चाहता है, क्योंकि हमने उनकी असलियत उजागर कर दी है।"

भारत ने इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जैसवाल ने साफ किया कि "भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता जारी है और इसे पारस्परिक लाभ के रूप में देखा जाना चाहिए।"

उधर कांग्रेस ने ट्रंप के बयान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र पर निशाना साधा। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले में बयान देना चाहिए। उन्होंने कहा, अमेरिका के राष्ट्रपति यह बयान देते हैं कि भारत शुल्क कटौती के लिए तैयार हो गया है। आखिर भारत ने यह सहमति क्यों दी? जयराम ने पूछा किय क्या भारतीय किसानों और उद्योग क्षेत्रों के हितों के साथ समझौता किया जा रहा है?

क्या भारत ट्रंप की चाल में फंसेगा?

विश्लेषकों के अनुसार, ट्रंप अपने दबाव की नीति के तहत यह बयान दे रहे हैं। वे पहले भी चीन, दक्षिण कोरिया और कनाडा जैसे देशों पर टैरिफ लगाने की धमकी दे चुके हैं। लेकिन भारत ने अभी तक किसी भी त्वरित प्रतिक्रिया से बचने की रणनीति अपनाई है।

सूत्रों के मुताबिक, भारत बिना किसी जल्दबाजी के द्विपक्षीय वार्ता के जरिए अपनी शर्तें मनवाने की कोशिश कर रहा है। भारत का मानना है कि हर उत्पाद, हर सेक्टर को तौलकर ही कोई फैसला लिया जाएगा।

भारत और अमेरिका के बीच "बहु-क्षेत्रीय व्यापार समझौते" के पहले चरण पर इस साल के अंत तक बातचीत पूरी करने का लक्ष्य है। वहीं, बाजार पहुंच बढ़ाने, टैरिफ कम करने और सप्लाई चेन को मजबूत करने के मुद्दों पर गहन चर्चा होगी। ट्रंप ने हाल ही में कनाडा और मैक्सिको के लिए टैरिफ में एक महीने की छूट दी है। भारत भी इस उम्मीद में है कि जब तक कोई समझौता नहीं हो जाता, तब तक ट्रंप कोई कठोर कदम नहीं उठाएंगे।

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