नई दिल्लीः ICICI बैंक की पूर्व सीईओ चंदा कोचर को एक अपीलीय न्यायाधिकरण ने वीडियोकॉन समहू को 300 करोड़ रुपये के लोन देने के बदले 64 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के मामले में दोषी करार दिया है। 

न्यायाधिकरण ने 3 जुलाई को इस मामले में एक विस्तृत आदेश जारी कर कहा था कि यह भुगतान स्पष्ट रूप से 'क्विड प्रो क्वो' का मामला था। इसे चंदा कोचर के पति दीपक के माध्यम से वीडियोकॉन से जुड़ी एक कंपनी के माध्यम से किया गया था। 

ट्रिब्युनल ने क्या कहा?

न्यायाधिकरण ने कहा "अपीलकर्ताओं (ईडी) द्वारा दिया गया इतिहास पीएमएलए की अधिनियम की धारा 50 के तहत बयानों के संदर्भ के आलोक में साक्ष्य द्वारा वर्णित और समर्थित है, जो स्वीकार्य है और जिस पर भरोसा किया जा सकता है।"

न्यायाधिकरण ने भी प्रवर्तन निदेशालय (ED) के मामले को बरकरार रखते हुए कहा कि कोचर ने अपने हितों के टकराव का खुलासा नहीं किया और ऋण स्वीकृति आईसीआईसीआई बैंक की आंतरिक नीतियों का उल्लंघन थी।

दरअसल, यह मामला साल 2009 का है जब आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन को 300 करोड़ रुपये का ऋण स्वीकार किया था। ऋण मिलने के दूसरे दिन एसईपीएल ने चंदा के पति दीपक कोचर की कंपनी एनआरपीएल को 64 करोड़ रुपये भेज दिए। इसे ही क्विड प्रो क्वो यानी एक तरकीब बताया गया। जहां इसका इस्तेमाल कर्ज के बदले रिश्वत के रूप में किया गया था। गौरतलब है कि एसईपीएल, वीडियोकॉन ग्रुप की ही एक कंपनी है। 

78 करोड़ रुपये की संपत्ति की थी जब्त

इससे पहले ईडी ने इस मामले में चंदा कोचर और उनके पति से जुड़ी 78 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की थी। ट्रिब्युनल ने सुनवाई के दौरान इस जब्ती को सही ठहराया। 

चंदा और उनके पति फिलहाल जमानत पर बाहर हैं, हालांकि, अदालत में उन पर मामला जारी है। वीडियोकॉन को दिया गया ऋण भी बाद में डूब गया। इससे बैंक को भी नुकसान हुआ। 

यह मामला मीडिया में आने के बाद साल 2018 में चंदा कोचर ने बैंक के सीईओ पद से इस्तीफा दे दिया था।