नई दिल्ली: नीति आयोग ने देश में वैश्विक निवेश परिदृश्य में एक बड़े नीतिगत बदलाव की सिफारिश की है। इसमें प्रस्ताव दिया गया है कि चीनी कंपनियों को अतिरिक्त सुरक्षा मंजूरी के बिना भारतीय कंपनियों में 24% तक हिस्सेदारी हासिल करने की अनुमति दी जाए। इस कदम से पड़ोसी देश यानी चीन की कंपनियों के लिए भारत निवेश प्रक्रिया आसान हो सकती है, जिन्हें वर्तमान में अनिवार्य सरकारी मंजूरी के कारण लंबी देरी का सामना करना पड़ता है। 

मौजूदा नियमों के तहत चीनी कंपनियों के किसी भी निवेश के लिए भारत सरकार से सुरक्षा मंजूरी की आवश्यकता होती है। ये प्रतिबंध जुलाई 2020 में गलवान घाटी में दोनों देशों की सेना के बीच हुए झड़प के बाद लागू किए गए थे। भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं और 'शत्रुतापूर्ण अधिग्रहण' से बचने की आवश्यकता का हवाला देते हुए चीनी कंपनियों को सरकारी खरीद अनुबंधों में भी भाग लेने से रोक दिया था। 

सरकार ने नियम लगा दिया था कि चीनी के ऐसे निवेशकों को उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा गठित एक समिति के साथ पंजीकरण कराना होगा। साथ ही विदेश और गृह मंत्रालयों से राजनीतिक और सुरक्षा मंजूरी प्राप्त करनी होगी। 

नीति आयोग की रिपोर्ट का किया जा रहा रिव्यू

बहरहाल, इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार नीति आयोग की ताजा सिफिरिश सरकार को भेज दी गई है। अखबार की रिपोर्ट के अनुसार एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'रिपोर्ट भेज दी गई है। हमें देखना होगा कि क्या होता है।' उन्होंने संकेत दिया कि प्रस्ताव का अभी रिव्यू किया जा रहा है। फिलहाल, वित्त, वाणिज्य और उद्योग, और विदेश मंत्रालयों सहित प्रमुख मंत्रालय इस रिपोर्ट की जाँच कर रहे हैं।

गौर करने वाली बात है कि इस प्रस्ताव से जुड़ी जानकारी विदेश मंत्री एस जयशंकर की पांच वर्षों में पहली चीन यात्रा के तुरंत बाद सामने आई है। बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ अपनी बैठक के दौरान जयशंकर ने प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं और आर्थिक सहयोग में बाधाओं पर चिंता जताई थी। यह विशेष रूप से चीन की ओर से भारत को रेयर अर्थ मैग्नेट के निर्यात करने को लेकर पड़ोसी देश के प्रतिबंधों के संदर्भ में कहा गया था। 

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस दौरे के दौरान पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तेजी से तनाव कम करने के मुद्दे पर भी चर्चा की, जिस पर, दोनों पक्ष कथित तौर पर तनाव कम करने के लिए अतिरिक्त और व्यावहारिक कदम उठाने पर सहमत हुए।

आर्थिक सर्वेक्षण 2024 ने भी चीनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर प्रतिबंधों में एक संतुलित ढील देने की सिफारिश की थी। इसमें यह तर्क दिया गया था कि यह वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की भागीदारी को बढ़ावा देगा और निर्यात बढ़ाने में मदद करेगा। जाहिर है यदि चीन की कंपनियों के निवेश के नियमों में ढील का प्रस्ताव लागू होता है, तो यह भारत के 'सतर्क रुख' में बदलाव का संकेत होगा।