नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र की जहाजरानी एजेंसी इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (आईएमओ) ने शुक्रवार को समुद्री परिवहन क्षेत्र पर दुनिया का पहला वैश्विक कार्बन टैक्स लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इस ऐतिहासिक फैसले के पक्ष में भारत, चीन और ब्राजील सहित 62 देशों ने मतदान किया, जबकि सऊदी अरब, रूस, यूएई और वेनेजुएला जैसे तेल-समृद्ध देशों ने इसका विरोध किया। अमेरिका ने वार्ता में हिस्सा नहीं लिया और अंतिम मतदान में अनुपस्थित रहा।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इस नए कर ढांचे के तहत, जहाजों को या तो कम-उत्सर्जन वाले ईंधन अपनाने होंगे या फिर अपने कार्बन उत्सर्जन के आधार पर शुल्क देना होगा। यह कर 2028 से लागू होगा और अनुमान है कि 2030 तक इससे 40 अरब डॉलर (34.44 लाख करोड़) तक की राशि एकत्र की जा सकती है।
आईएमओ का लक्ष्य है कि इस नीति के जरिए जहाजरानी से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2030 तक 10 प्रतिशत तक कम किया जा सके, हालांकि यह एजेंसी के घोषित 20 प्रतिशत कटौती के लक्ष्य से कम है।
विकासशील देशों की नाराजगी
हालांकि यह निर्णय जलवायु नीति की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, लेकिन कई विकासशील और छोटे द्वीपीय देशों ने इसकी आलोचना भी की है। इन देशों की मांग थी कि कर से प्राप्त धन का कुछ हिस्सा जलवायु परिवर्तन से निपटने, अनुकूलन और हानि-नुकसान की भरपाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाए, न कि केवल जहाजरानी उद्योग के डीकार्बनाइजेशन में।
टुवालु और वानुअतु जैसे प्रशांत द्वीप देशों ने प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और स्वच्छ ईंधनों को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त प्रावधान न होने पर निराशा जताई। वानुअतु के जलवायु मंत्री ने सऊदी अरब और अमेरिका पर मजबूत कदमों में बाधा डालने का आरोप लगाया।
कर का ढांचा
आईएमओ द्वारा प्रस्तावित कर ढांचा चरणबद्ध तरीके से लागू होगा। 2028 में पारंपरिक ईंधन का उपयोग करने वाले जहाजों को अत्यधिक प्रदूषण के लिए 380 डॉलर प्रति टन और निर्धारित सीमा से अधिक उत्सर्जन पर 100 डॉलर प्रति टन शुल्क देना होगा। इसका उद्देश्य धीरे-धीरे फॉसिल फ्यूल और एलएनजी जैसे ईंधनों की खपत को हतोत्साहित करना है।
हालांकि मूलभूत ढांचा तय हो चुका है, लेकिन राजस्व के उपयोग और वितरण से जुड़ी तकनीकी जानकारियाँ अभी तय नहीं हुई हैं। नीति को अक्टूबर 2025 में औपचारिक रूप से अपनाया जाना है।
यूरोपीय क्लाइमेट फाउंडेशन की सीईओ और पेरिस समझौते की वास्तुकार लॉरेंस टुबियाना ने इस फैसले को “सही दिशा में एक कदम” बताया, लेकिन इसे अपर्याप्त भी कहा। उन्होंने कहा, “प्रदूषण करने वालों को उसकी कीमत चुकानी चाहिए, लेकिन यह एक चूक गया अवसर था।”