नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से सोमवार को पेश किए गए आर्थिक सर्वे 2023-24 में कहा गया है कि लेबर मार्केट इंडिकेटर्स में पिछले छह वर्षों में काफी सुधार हुआ है। इस कारण वित्त वर्ष 2022-23 में बेरोजगारी दर घटकर 3.2 प्रतिशत रह गई है।
भारत की अनुमानित वर्कफोर्स 56.5 करोड़ है। इसमें 45 प्रतिशत लोग कृषि, 11.4 प्रतिशत लोग मैन्युफैक्चरिंग, 28.9 प्रतिशत लोग सर्विसेज और 13 प्रतिशत लोग निर्माण क्षेत्र में रोजगार कर रहे हैं।
सर्वे में अनुमान जताया गया है कि बढ़ते हुए कार्यबल को रोजगार देने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को गैर-कृषि क्षेत्र में करीब 78.51 लाख रोजगार वार्षिक तौर पर पैदा करने की आवश्यकता है।
इस आर्थिक सर्वे से यह पता चलता है कि भारत किस सेक्टर में ग्रोथ कर रहा है और इसके सामने कौन सी चुनौतियां हैं। केवल रोजगार ही नहीं बल्कि सर्वेक्षण में भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़ी कई और पहलुओं पर भी प्रकाश डाला जाता है। ऐसे में क्या है आर्थिक सर्वे और इसकी क्या है जरूरत, आइए इसे जान लेते हैं।
सर्वेक्षण में क्या कहा गया है
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024 में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था का विस्तार जारी है। वित्त वर्ष 2024 में वास्तविक रूप से जीडीपी 8.2 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। सर्वे में यह भी कहा गया है, “जून में एक नई सरकार ने पदभार संभाला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार तीसरे कार्यकाल के लिए ऐतिहासिक जनादेश के साथ सत्ता में लौटी। अभूतपूर्व तीसरा लोकप्रिय जनादेश राजनीतिक और नीतिगत निरंतरता का संकेत देता है।”
मजबूत स्थिति में है भारतीय अर्थव्यवस्था- सर्वे
सर्वेक्षण में कहा गया है, “भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है और भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने में मजबूती दिखा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था ने कोविड के बाद की अपनी रिकवरी को मजबूत किया है, जिससे आर्थिक और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित हुई। फिर भी, लोगों की आकांक्षाओं को देखते हुए देश के लिए परिवर्तन ही एकमात्र स्थिरता है।”
रोजगार और स्वरोजगार के लिए उठाए गए हैं कई कदम
सर्वेक्षण में कहा गया कि सरकार ने रोजगार और स्वरोजगार को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। साथ ही कर्मचारियों के कल्याण को बढ़ावा दिया है। सर्विस सेक्टर नौकरी पैदा करने में सबसे आगे रहा है। सरकार द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर दिए जाने के कारण निर्माण क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर बढ़े हैं।
संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या अनुमान के आधार पर भारत में काम करने योग्य आबादी (15 से 59 वर्ष) 2044 तक लगातार बढ़ती रहेगी। अनुमान में कहा गया कि 51.25 प्रतिशत युवा रोजगार योग्य हैं।
हर दो में से एक युवा है रोजगार के लिए अयोग्य-सर्वे
सर्वेक्षण में नोट में कहा गया कि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हर दो में से एक युवा अभी भी रोजगार के योग्य नहीं है। हालांकि, पिछले एक दशक में यह आंकड़ा 34 प्रतिशत से बढ़कर 51.3 प्रतिशत हुआ है। इस आंकड़े के बढ़ने की वजह सरकार की ओर से कौशल विकास प्रोग्राम ‘स्किल इंडिया’ का चलाया जाना है।
कौशल विकास पर किया जाएगा फोकस
सर्वे में कहा गया कि छोटी से मध्यम अवधि में नीतियों का फोकस नौकरी और कौशल विकास के अवसर पैदा करना, कृषि क्षेत्र की पूरी क्षमता का इस्तेमाल करना, एमएसएमई सेक्टर में रुकावटों की पहचान करना, कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट को बड़ा करना, असमानता को दूर करना और युवा आबादी के स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार करना है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के बारे में
सोमवार को मानसून सत्र का पहला दिन था और इस दिन केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 को पेश किया है। आमतौर पर इससे पहले ऐसा देखा गया है कि केंद्रीय बजट के पेश होने से एक दिन पहले यानी 31 जनवरी को सर्वे को जारी किया जाता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया था।
2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस बार केंद्र सरकार ने “द इंडियन इकोनॉमी – ए रिव्यू” शीर्षक से एक छोटी रिपोर्ट पेश की थी और फरवरी में एक अंतरिम बजट भी पेश की थी।
ऐसे में जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के तीसरे कार्यकाल शुरू होने और एक नई सरकार बनने के बाद आज आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 को पेश किया गया है। इसके बाद कल यानी 23 जुलाई को बजट 2024 पेश किया जाएगा।
आर्थिक सर्वेक्षण किसे कहते हैं?
आर्थिक सर्वेक्षण एक तरह की विस्तृत रिपोर्ट होती है जिसमें इसकी पूरी जानकारी होती है कि देश ने पिछले वित्तीय वर्ष में आर्थिक मोर्चे पर कैसा प्रदर्शन किया है। यह खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर एक डिटेल रिपोर्ट होती है।
दूसरी भाषा में इसे अगर समझे तो यह सर्वे एक तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था का पिछले एक साल का लेखा-जोखा होता है। इस सर्वे को मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) के मार्गदर्शन में केंद्रीय वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) के आर्थिक प्रभाग द्वारा तैयार किया जाता है जिसे वित्त मंत्री द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
भारत में कब हुआ था पहले सर्वे
देश में सबसे पहले 1950-51 आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया गया था और साल 1964 तक इसके आम बजट के साथ ही पेश किया जाता था। परंपरागत रूप से पहले सर्वे को एक भाग में पेश किया जाता था जिसमें देश की अर्थव्यवस्था के विभिन्न प्रमुख क्षेत्रों जैसे सेवाएं, कृषि और मेन्यूफेक्चरिंग के साथ साथ राजकोषीय विकास, रोजगार और महंगाई जैसे प्रमुख नीति क्षेत्रों की डिटेल रिपोर्ट जारी होती है।
दो भागों में कब हुआ था सर्वे पेश
वित्तीय वर्ष 2010-11 और 2020-21 में इस सर्वो को दो भागों में पेश किया गया था। इस दौरान जो दूसरा भाग पेश किया गया था उसमें देश की अर्थव्यवस्था के सामने आने वाले अहम मुद्दों और उनसे जुड़ों बहस को कवर किया जाता है।
वहीं अगर बात करें वित्तीय वर्ष 2022-23 की तो इस बार एक खंड में सर्वे पेश किया गया था। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उस समय सीईए के ऑफिस में बदलाव हुआ था और वी अनंत नागेश्वरन ने कार्यभार संभाला था।
क्यों खास है आर्थिक सर्वेक्षण
भारतीय अर्थव्यवस्था की सही रिपोर्ट के लिए आर्थिक सर्वेक्षण बहुत ही जरूरी है क्योंकि इससे देश की अर्थव्यवस्था का एक आधिकारिक और व्यापक विश्लेषण मिलता है।
सर्वे द्वारा दिए गए रिपोर्ट के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आने वाले चुनौतियों का पता चलता है और उस पर क्या और कैसे कदम उठाए जाएंगे, इसे लेकर चर्चा की जाती है। हालांकि सर्वे द्वारा किया गया आकलन और सिफारिशें देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक रिपोर्ट होती है जो बजट पर बाध्यकारी नहीं होती हैं।
अर्थशास्त्रियों ने भारत के ग्रोथ में गिरावट का दिया है तर्क
सोमवार को पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था में विस्तार जारी है और वित्त वर्ष 2024 में वास्तविक रूप से जीडीपी 8.2 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था 2017-18 के बाद से तेजी से बढ़ने के लिए संघर्ष कर रही है।
साल 2020-21 के कोरोना काल के दौरान देश की ग्रोध प्रभावित हुई थी और उसके बाद के सालों में तेज विकास दर देखा गया था लेकिन इसके बावजूद कई विदेशी अर्थशास्त्रियों ने तर्क दिया था कि भारत की संभावित वृद्धि आठ फीसदी से गिरकर छह फीसदी हो गई है।
चुनौतीपूर्ण वैश्विक और घरेलू आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद देश के ग्रामीण क्षेत्रों में निजी खपत में सुधार देखा गया है। इस सुधार को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए भारत के विकास दर को पहले 6.8 फीसदी अनुमानित किया था जिसे अब हाल में संशोधन करते हुए उसे सात फीसदी कर दिया है।
आईएमएफ की विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट में भी भारत के वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए 6.5 फीसदी का ग्रोथ रेट रहने का अनुमान लगाया है।
भारत के सामने क्या हैं चुनौतियां
कोरोना काल से ही भारत की अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हुई है जिससे पिछले कुछ सालों में देश में ऐतिहासिक रूप से उच्च बेरोजगारी और गरीबी और असमानता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
इससे असंगठित क्षेत्र ज्यादा प्रभावित हुआ है जिससे आर्थिक रूप से कमजोर तब्के के रोजगार पर भी असर पड़ा है। पिछले सात सालों में कई अनौपचारिक इकाइयां भी बंद हुई है जिससे असंगठित उद्यमों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASUSE) के हालिया आंकड़ों में लगभग 16.45 लाख नौकरियों के खत्म होने की बात सामने आई है।
समाचार एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ