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वॉशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को एक और अहम फैसला लेते हुए अमेरिका में आयातित कारों और कार के पुर्जों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है। तीन अप्रैल से लागू होने वाले ये टैरिफ अमेरिका में भेजे जाने वाले तैयार वाहनों और अमेरिकी असेंबली प्लांट में इस्तेमाल होने वाले आयातित पुर्जों दोनों पर लागू होंगे।
जानकार मानते हैं कि अमेरिकी ऑटो उत्पादन को बढ़ावा देने के मकसद से उठाए गए इस कदम से ऑटोमोटिव बाजार में कीमतों में वृद्धि होने की उम्मीद है। व्हाइट हाउस में ट्रंप ने कहा, 'जिस किसी के पास अमेरिका में प्लांट हैं, उसके लिए यह अच्छा होगा।'
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल अमेरिका ने करीब 80 लाख कारें आयात कीं। इसका व्यापार करीब 240 अरब डॉलर रहा जो कुल बिक्री का करीब आधा हिस्सा था। मेक्सिको अभी अमेरिका को कारों का सबसे बड़ा विदेशी आपूर्तिकर्ता है। इसके बाद दक्षिण कोरिया, जापान, कनाडा और जर्मनी का स्थान है।
ऑटो सेक्टर में मचेगी उथल-पुथल
बहरहाल, इन टैरिफ के लागू होने से बाजार में उथल-पुथल मचने की आशंका है। खासकर ऑटो सेक्टर में यह प्रभाव नजर आएगा। वैश्विक निर्माताओं और उपभोक्ताओं के लिए समान रूप से कीमतें बढ़ सकती हैं। आधुनिक ऑटो उद्योग गहराई से आपस में जुड़ा हुआ है, जो कई देशों में फैली आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भर करता है।
अमूमन वाहनों और उनके पूर्जों को अक्सर कई अलग-अलग देशों में असेंबल किया जाता है। यह दशकों के चली आ रही मुक्त व्यापार समझौतों की वजह से है। अमेरिका में बिकने वाले लगभग आधे वाहन आयातित होते हैं, जबकि अमेरिका में असेंबल की गई कारों में इस्तेमाल होने वाले लगभग 60 प्रतिशत पुर्जे बाहरी देशों से मंगाए जाते हैं।
ऑटो सेक्टर के शेयरों में गिरावट
टैरिफ की घोषणा की खबर से अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट नजर आई। खासकर प्रमुख वाहन निर्माताओं के शेयरों में गिरावट आई। जनरल मोटर्स के शेयर में करीब 7 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जबकि फोर्ड और स्टेलेंटिस दोनों में 4 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई। एलन मस्क की टेस्ला जो आयात पर कम निर्भर है, उसमें मामूली 1 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
ट्रंप का तर्क है कि टैरिफ कंपनियों को अमेरिका में उत्पादन स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। दूसरी ओर अर्थशास्त्री और उद्योग विशेषज्ञ अल्पकालिक प्रभाव को लेकर सतर्क हैं। जानकारों के अनुसार अमेरिका में नई उत्पादन सुविधाओं के निर्माण में वर्षों और अरबों डॉलर लग सकते हैं। इसका मतलब है कि घरेलू विनिर्माण में कोई भी बड़ा बदलाव तत्काल नजर आने की संभावना नहीं है।
टैरिफ से संभवतः अमेरिकी ऑटोमोटिव बाजार में कीमतें और बढ़ सकती हैं। विश्लेषकों का अनुमान है कि नए वाहनों की लागत अमेरिकी निर्मित कारों के लिए 3,000 डॉलर (करीब ढाई लाख रुपये) तक और मेक्सिको और कनाडा में निर्मित मॉडलों के लिए 6,000 डॉलर (पांच लाख रुपये) तक बढ़ सकती है।
दूसरे देशों से रिश्तों पर भी असर
ट्रंप के फैसले का असर पिछले कुछ दिनों से चले आ रहे ट्रेड वॉर को और बढ़ा सकते हैं। अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों, खासकर यूरोप और एशिया के साथ व्यापार में तनाव बढ़ने की आशंका है। जर्मनी, जापान और दक्षिण कोरिया के ऑटो निर्माता अमेरिका को बड़ी मात्रा में वाहन भेजते हैं, इन्हें भारी नुकसान हो सकता है।
मर्सिडीज-बेंज के सीईओ ओला कैलेनियस ने कहा कि कंपनी अपने अमेरिकी परिचालन में निवेश करना जारी रखेगी, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि टैरिफ से उनका कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। कैलेनियस ने कहा, 'टैरिफ से निश्चित रूप से लागत बढ़ेगी।'
इसी बीच कुछ विदेशी वाहन निर्माता अमेरिका में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए भी कदम उठा रहे हैं। हुंडई मोटर ने हाल ही में अपने अमेरिकी परिचालन में 21 बिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा की है। इसमें लुइसियाना में एक नया स्टील प्लांट स्थापित करना भी शामिल है। इसका उद्देश्य आयातित सामग्रियों पर कंपनी की निर्भरता को कम करना है। मर्सिडीज-बेंज और अन्य विदेशी कार निर्माताओं ने भी अपने अमेरिकी विनिर्माणके संभावित विस्तार का संकेत दिया है।