नई दिल्ली: आजाद भारत का पहला केंद्रीय बजट 1947 में आरके शनमुखम चेट्टी ने पेश किया था। देश की दशा और दिशा क्या होगी, इसका बड़ा संकेत बजट से मिल जाता है। जनता की अलग उम्मीदें होती हैं, उद्योग जगत भी टकटकी लगाए यह देखता है कि उसके क्षेत्र के लिए क्या कुछ है। भारत में बजट की कहानी को खंगालेंगे तो इसमें कई ऐसे मोड़ आए हैं, जिसने इस देश को अलग राह दी और भारत के आर्थिक विकास में मील का पत्थर साबित हुए। आज हम आपको आजाद भारत के ऐसे ही 5 सबसे ऐतिहासिक बजट के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नया आकार देने में बड़ी भूमिका निभाई।
1957-58 का बजट
टीटी कृष्णामाचारी के 1957-58 के बजट में संपत्ति कर (वेल्थ टैक्स) लगाने सहित कुछ अभूतपूर्व कर सुधार पेश किए गए थे। यह कर व्यक्तिगत संपत्ति के कुल मूल्य पर लगाया गया था, जो भारत की कर नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव था। साल 2015 में हालांकि इसे खत्म कर दिया गया। इससे पहले तक संपत्ति कर विभिन्न रूपों में भारतीय कर प्रणाली का हिस्सा बना रहा।
1991-92 का बजट
इसकी चर्चा सबसे ज्यादा होती है। उस समय पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तुत 1991 का केंद्रीय बजट कई मायनों ऐतिहासिक साबित हुआ। इस बजट का उद्देश्य देश के सामने मौजूद गंभीर आर्थिक संकट को दूर करना था। मनमोहन सिंह के इस बजट ने सीमा शुल्क को 220 प्रतिशत से घटाकर 150 प्रतिशत कर दिया। इससे भारतीय व्यापार विश्व स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी हो गया। साथ ही मनमोहन सिंह ने सरकारी नियंत्रण को कम करने और आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए अभूतपूर्व उदार नीतियां पेश की। इस ऐतिहासिक बजट का गहरा प्रभाव पड़ा और दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा में तेजी से सुधार हुआ। ‘लाइसेंस राज’ समाप्त हुआ। इस बजट ने विदेशी निवेश को भी आकर्षित किया, जिससे देश में तेजी से पैसे आने लगे। कुल मिलाकर भारत को एक प्रमुख आर्थिक शक्ति बनाने में इस बजट का योगदान बेहद अहम है।
👉Dr. Manmohan Singh (1991-96)
At 18,650 words, #ManmohanSingh delivered the longest Budget speech in terms of words in 1991 under the Narasimha Rao government. #BudgetWithHT #Budget2023 pic.twitter.com/7lFzmLqtm8
— Hindustan Times (@htTweets) February 1, 2023
1997-98 का बजट
पीवी नरसिम्हा राव की कैबिनेट में मनमोहन सिंह के अधीन काम करने वाले पी. चिदंबरम ने 1997 का बजट पेश किया। विशेषज्ञों ने इसे ‘ड्रीम बजट’ करार दिया गया था। व्यक्तिगत आयकर और कॉर्पोरेट कर को कम करने का कदम इस बजट की सबसे विशेष बात थी। पी. चिदम्बरम ने व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट करों दोनों में महत्वपूर्ण कटौती की। इसमें उच्चतम व्यक्तिगत आयकर दर को 40 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया। सरचार्ज को हटाने और रॉयल्टी दरों में कमी के साथ इस कदम ने करदाताओं को बड़ी राहत प्रदान की और इसे भारत के सबसे बेहतरीन बजटों में से एक माना जाता है।
साल 2000-01 का बजट
अटल बिहारी वाजपेई के कार्यकाल में यशवन्त सिन्हा ने बजट पेश किया। उनके इस बजट में कंप्यूटर सहित 21 वस्तुओं पर सीमा शुल्क कम करने का फैसला हुआ। इस वजह से आईटी क्षेत्र में बड़ी तेजी से विकास हुआ। इससे उद्योग में तेजी आई और भारत आईटी ग्रोथ का केंद्र बन गया।
2016-17
अरुण जेटली के बजट में केंद्रीय बजट और रेलवे बजट को विलय करके एक ऐतिहासिक बदलाव किया गया। इस बदलाव से 92 वर्षों की लंबी परंपरा समाप्त हो गई। वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटली ने एकीकृत बजट पेश किया और उसके बाद से यही होता रहा है। इससे पहले रेल बजट और केंद्रीय बजट अलग-अलग पेश होते थे। इसके बाद 2019 में निर्मला सीतारण की ओर से पेश बजट भी बेहद खास रहा था। बड़े आर्थिक सुधार के तहत कॉरपोरेट टैक्स को 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी किया गया। इससे अर्थव्यवस्था को नोटबंदी और जीएसटी लागू से झटके से उबरने में मदद मिली।