नई दिल्लीः भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2024 के अंत तक बैंकों का कुल बकाया ऋण (Gross Non-Performing Assets, GNPA) अनुपात 13 सालों में सबसे कम 2.5% पर आ गया है। इसका मतलब है कि बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों में से कम प्रतिशत हिस्सा अब गैर-कार्यशील (जिन्हें वापस नहीं किया जा रहा) है।
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2024 के वित्तीय वर्ष (FY24) में बैंकों का कामकाज मजबूत रहा, जिसमें ऋण और जमा दोनों में वृद्धि देखी गई। बैंकों के बकाया ऋण में सुधार मुख्य रूप से बेहतर रिकवरी (लोन वापस मिलना) और ऋण के स्तर में सुधार के कारण हुआ है।
कृषि क्षेत्र में उच्चतम जीएनपीए अनुपात
कृषि क्षेत्र का जीएनपीए अनुपात सबसे अधिक 6.2 प्रतिशत रहा, जबकि खुदरा ऋणों का अनुपात मात्र 1.2 प्रतिशत था। शिक्षा ऋणों में भी सुधार देखा गया, लेकिन यह अभी भी खुदरा ऋणों के सबसे बड़े खंड के रूप में सामने आया। वहीं, औद्योगिक क्षेत्र में भी सुधार देखा गया, जहां जीएनपीए अनुपात मार्च 2018 के बाद से लगातार घट रहा है।
बैंकों के शुद्ध एनपीए अनुपात में गिरावट
बैंकों के शुद्ध एनपीए (NNPA) अनुपात में भी महत्वपूर्ण गिरावट आई है, जो मार्च 2024 के अंत में 0.62 प्रतिशत तक पहुंच गया और सितंबर 2024 के अंत में यह और भी बेहतर होकर 0.57 प्रतिशत हो गया। यह बैंकों के मजबूत प्रावधान बफर की वजह से संभव हुआ है।
स्लिपेज अनुपात और विशेष उल्लेख खातों में सुधार
स्लिपेज अनुपात, जो नए एनपीए के प्रवेश को मापता है, 2023-24 में सुधार दर्शाता है। निजी क्षेत्र के बैंकों (PVBs) का स्लिपेज अनुपात सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) से अधिक रहा, क्योंकि निजी बैंकों में नए एनपीए का अधिक निर्माण हुआ।
मार्च 2024 के अंत तक, बड़े उधारी खातों (5 करोड़ रुपये और उससे अधिक के कुल ऋण) का एससीबी के कुल उधारी में हिस्सा घटकर 43.9 प्रतिशत रह गया, जो पिछले वर्ष के अंत में 46.5 प्रतिशत था। इसके साथ ही, विशेष उल्लेख खाते-1 (SMA-1) का अनुपात भी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों में घटा है, जो कि 31-60 दिनों तक की बकाया राशि वाले खातों को दर्शाता है।